संविधान पर बहस में सब कुछ तहस-नहस

संविधान पर बहस में सब कुछ तहस-नहस

लोकसभा में संविधान पर बहस के बाद माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी का उत्तर सुनकर समझा में आ गया कि उन्होंने संघ की साखा में संविधान के  बारे में जो कुछ पढ़ा-लिखा उससे ज्यादा वे संविधान  के बारे में जानते नहीं हैं। संविधान पर बहस के दौरान उठाये गए एक भी सवाल का उत्तर देने के बजाय वे अपने सिर पर सवार जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गाँधी और राजीव गांधी के भूत को बिदारते नजर आये। वे नहीं बता पाए कि  उनके युग में संविधान कैसे मजबूत हो रहा है ?

मै माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदार दास मोदी के भाषण को दत्त-चित्त होकर सुनता हूँ। शनिवार को भी मैंने उन्हें लोकसभा में सुना।  वे प्रधानमंत्री के स्तर का भाषण देने में हमेशा की तरह विफल हुए ,उन्होंने संविधान पर भाषण देते समय संविधान पर अपने गहन अध्ययन का प्रदर्शन करने के बजाय सिर्फ वो सब उद्घाटित किया जो संघ  की शाखाओं   में स्वयं सेवकों को पिछले 100  साल से दीक्षित किया जा रहा है। मोदी जी संघ के प्रचारक हैं ये हकीकत है लेकिन वे देश के प्रधानमंत्री हैं इसलिए उन्हें शाखाओं के ज्ञान से ज्यादा सिखने की जरूरत है।उन्हें देश को बताना चाहिए था कि  पिछले दस साल में उनकी सरकार में संविधान की रक्षा के लिए क्या कदम उठाये ?

 संविधान संशोधनों को लेकर माननीय मोदी जी ने पिछली सरकारों के कामकाज को संविधान के साथ खिलवाड़ बताया, लेकिन जोर देकर कहा कि  उनकी सरकार ने संविधान के साथ जो भी किया तो डंके की चोट किया। यानि वे परोक्ष रूप से कह रहे हैं कि  -वे  करें तो करेक्टर ढीला, हम  करें  तो रास लीला। संविधान के साथ किस पार्टी और सरकार ने खिलवाड़ किया ये पूरा देश जानता है। कांग्रेस ने आपातकाल लगाया ये सभी को पता है।  मोदी जी कहते हैं कि  आपातकाल का कलंक कांग्रेस के माथे से कभी मिट नहीं सकता ,लेकिन वे भूल जाते हैं कि  इसी देश की जनता ने,विपक्ष की खिचड़ी  जनता सरकार के गिरने के बाद  मशीन और मशीनरी के बिना हुए आम चुनाव में कांग्रेस को विजय श्री देकर इस कलंक को मिटा दिया था।

मेरा दृढ विश्वास है कि  मोदी जी जब तक प्रधानमंत्री रहेंगे तब तक उनके सिर से  जवाहर लाल नेहरू का,इंदिरा गाँधी का ,राहुल गांधी का यहां तक की राहुल गांधी का भूत उतरने वाला नहीं है और जब तक ये भूत उनके सर पर सवार रहेगा वे न चैन से काम कर पाएंगे और न संविधान के विधान को  समझ पाएंगे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी देश को आश्वस्त नहीं कर पाए कि  उनके लिए संविधान  बड़ा है या मनु स्मृति ? वे ये स्पष्ट नहीं कर पाए की उन्हें धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द से तकलीफ है या नहीं? वे ये भी नहीं बता पाए की संविधान को लेकर वीर सावरकार साहब जो सोचते थे ,क्या वे उससे सहमत हैं या नहीं ?

वे तमाम प्रश्नों का उत्तर देने के बजाय जम्मू-कश्मीर से धारा 370  हटाने को ही अपनी सबसे बड़ी संविधान की सेवा बताते हुए नहीं थकते। संविधान  का सम्मान करना और संविधान की धज्जियां करना दो अलग-अलग काम हैं। मौजूदा सरकार ने पिछले  एक दशक में संविधान की सेवा किस तरह से की है ,देश और दुनिया जानती है। जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनना, मणिपुर को डेढ़ साल से अनाथ छोड़ना संविधान की सेवा नहीं है। देश में अल्पसंख्यक समाज को आतंकित करना,उन्हें लक्ष्य बनाकर बुलडोजर दौड़ा देना संविधान की सेवा नहीं है। तमाम मंदिरों-मस्जिदों की खुदाई का अभियान  चलाना संविधान  की सेवा नहीं है। संविधान समदृष्टा है ,लेकिन सरकार नहीं है। सरकार लगातार हिन्दू-मुसलमान का खेल खेलती आ रही है।

सोमवार को राज्य सभा में भी यदि संविधान पर बहस हुई तो आप तय मानिये कि  केंद्रीय गृहमंत्री भी प्र्धानमंत्री जी के भाषण को ही दोहराएंगे। विसंगति ये है कि  संविधान को लेकर डींगे हांकने वाले लोग वे हैं जिनकी मात्र संस्थाओं का ,पूर्वज नेताओं का देश   के संविधान  के निर्माण में कोई योगदान नहीं रहा। वे तो दूसरे तरह का संविधान चाहते थे।यानि आज का संविधान आज की सरकार के मन का   संविधान नहीं है। संविधान की प्रस्तावना ही आज की सरकार को पसंद नहीं है ।  आज की सरकार को पूर्व की सरकारों द्वारा किये गए संशोधन पसंद नहीं है। संसद में संविधान की प्रति का लहराना पसंद नहीं है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि  सरकार के पास इतनी ताकत नहीं है कि  वो विरासत में मिले संविधान  को बदल सके।

संसद में माननीयों के भाषण से ये जाहिर हो गया है कि  आज की सरकार के लिए कल का संविधान केवल शपथ लेने की एक किताब है ,लेकिन कोई भी संविधान में लिखे विधान का अनुशरण करना नहीं चाहता। इस समय देश की सरकार के सिर पर एक देश,एक चुनाव का भूत सवार है ।  सरकार देश में एक विधान,एक निशान ,एक भाषा,,एक धर्म और अंत में एक नेता के सिद्धांत पर आगे बढ़ना चाहती है। केंद्र सरकार का हर कदम देश के सांविधान के खिलाफ उठाया जा रहा है। प्रधानमंत्री जी के भाषण से उनकी संविधान  के प्रति आस्था और समर्पण का अनुमान लगाया जा सकता है। मोदी जी की तकलीफ है कि  आजादी के बाद सरदर पटेल के बजाय नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया गया था। लेकिन वे भूल जाते हैं कि  उन्हें भी लालकृष्ण आडवाणी को धकियाकर प्रधानमंत्री बनाया गया था। यानि जो कल हुआ ,वो ही आज भी हो रहा है।

यदि कांग्रेस अपनी पार्टी के संविधान  को नहीं मान रही तो भाजपा कौन से आपने संविधान को मान रही है ।  भाजपा भी कांग्रेस का अनुशरण करते हुए अपनी पार्टी के संविधान की धज्जियां उड़ा रही है। बहरहाल इस देश के संविधान  की अनदेखी करना किसी भी सरकार को महंगा पड़ सकता है ।  कांग्रेस ने यदि संविधान के बाहर जाकर काम करने की कोशिश की तो जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया और यदि यही गलती भाजपा करेगी तो उसे भी सत्ता से बाहर जाना ही पड़ेगा ।  साम,दाम ,दंड और भेद एके सीमा तक ही काम आते हैं। देश के लिए ' एक देश एक चुनाव ' उतना आवश्यक नहीं है जितना कि  'एक देश एक दाम ' आवश्यक है ।  देश में किसानों की फसल के दाम का मामला हो या देश के बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का मामला एकसाथ चुनाव करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। सरकर और सरकारी पार्टी बार-बार मंदिर-मस्जिद करके देश की समस्याओं से बचकर नहीं निकल सकती।

राकेश अचल   

 
 

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