स्वास्थ्य की दुश्मन, अर्थव्यवस्था पर बोझ: वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण, भारत में एक बहुआयामी और गंभीर संकट के रूप में उभर रहा है, जिसका प्रभाव पर्यावरण से लेकर स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे तक हर क्षेत्र में महसूस किया जा रहा है। यह संकट शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में गहराई तक व्याप्त है, जहाँ स्वच्छ वायु एक दुर्लभ वस्तु बन चुकी है। हाल के आंकड़े यह उजागर करते हैं कि वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियाँ और मौतें लगातार बढ़ रही हैं, जो इस समस्या की भयावहता को रेखांकित करती हैं।
इस संकट के प्रमुख कारणों में औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, कृषि अपशिष्ट जलाना और वाहनों से निकलने वाला धुआं शामिल हैं। उद्योगों से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें वायुमंडल को विषाक्त बना रही हैं। शहरी क्षेत्रों में वाहनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण को और विकट बना रही है। विशेष रूप से, पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे कण श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों का मुख्य कारण बन रहे हैं। दिल्ली जैसे शहरों में सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का खतरनाक स्तर पर पहुँचना इस समस्या की गहराई को दर्शाता है। उत्तर भारत में पराली जलाने की समस्या भी वायु प्रदूषण के बड़े स्रोतों में से एक है। फसल अवशेष जलाने से उत्पन्न धुएं में हानिकारक यौगिक होते हैं, जो स्थानीय ही नहीं, बल्कि सुदूर क्षेत्रों में भी प्रदूषण फैलाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए किसानों को वैकल्पिक तकनीक और सहायता प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है।
स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव गहरा और व्यापक है। यह अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग और बच्चों में शारीरिक विकास की समस्याओं जैसे गंभीर परिणाम देता है। विशेष रूप से सूक्ष्म कणों के फेफड़ों में प्रवेश से स्वास्थ्य को दीर्घकालिक क्षति होती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, वायु प्रदूषण से हर वर्ष लाखों लोग जान गंवाते हैं। आर्थिक दृष्टि से, वायु प्रदूषण स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ डालता है और कार्यक्षमता घटाकर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाता है। स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव बढ़ने के साथ-साथ उत्पादकता में गिरावट, और पर्यटन क्षेत्र में कमी इस समस्या के अन्य परिणाम हैं। पर्यावरण पर भी इसके प्रभाव गहरे हैं, जैसे अम्लीय वर्षा, जलवायु परिवर्तन, और जैव विविधता का ह्रास। बढ़ता तापमान और पिघलते ग्लेशियर भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी हैं।
इस संकट से निपटने के लिए व्यापक और समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना, इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देना, और सार्वजनिक परिवहन को सुदृढ़ करना प्रदूषण नियंत्रण में सहायक हो सकता है। औद्योगिक उत्सर्जन मानकों को कड़ाई से लागू करना और किसानों को पराली जलाने के विकल्प प्रदान करना दीर्घकालिक समाधान हो सकते हैं। साथ ही, शहरी हरित पट्टियों का विकास और निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के उपाय महत्वपूर्ण हैं।
जनजागरूकता इस लड़ाई में केंद्रीय भूमिका निभा सकती है। पर्यावरण संरक्षण को शिक्षा प्रणाली में प्राथमिकता देना और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास, जैसे पौधारोपण, कार-पूलिंग, और ऊर्जा बचत, सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। अंततः, वायु प्रदूषण से निपटना केवल सरकार का नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक का दायित्व है। स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में उठाए गए ठोस कदम ही वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं। यदि आज हमने जागरूक होकर कार्य नहीं किया, तो इसके दूरगामी परिणाम असहनीय होंगे।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (म.प्र.)
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