’यह प्रकृति का चुनरी मनोरथ नहीं है, फसल बचाने का टोटका है’

-फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों को धोखा देने की है कोशिश

’यह प्रकृति का चुनरी मनोरथ नहीं है, फसल बचाने का टोटका है’

मथुरा। ब्रज में यमुना नदी में नावों की मदद से चुनरी की लम्बी श्रृंखला बनाने की परंपरा को चुनरी मनोरथ कहा जाता है। ऐसी श्रृंखला अब आपको खेतों में भी यहां वहां दिखाई देगी। हालांकि यह प्रकृति का चुनरी मनोरथ बिल्कुल नहीं है। यह किसानों का उन जंगली जानवरों को धोखा देने का उपक्रम में जो उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों ने जंगली सूअरों, नीलगाय जैसे जानवरों से फसलों के बचाव के लिये एक नया उपाय खोज है। जिसमें खेतांे के चारों ओर साड़ियांे की बाड़ लगानी होती है जिसे देखकर जंगली सूअर आदि पास नही आते हैं।

फसल भी उनकी आंखों से ओझल रहती है। अब किसानों के लिए यह टोटका काम कर  रहा है। क्षेत्रीय किसान पुरानी साड़िया इक्कट्ठी करने मे जुटे है। काफी किसानों ने तो अपने खेतो में गेहू, जौ, आलू आदि की फसल के चारांे ओर साड़ियो की बाड़ लगादी है। झटका (एसी करंट) के तार भी किसान लगा रहे हैं लेकिन इनसे बचाव के लिए किसानो ने पिछले दिनों बहुत ही साधारण उपाय खोज निकाला है जो अभी काम कर रहा है। गंगनहर के आसपास के खेत जगंली सुअरांे का अभ्यारण्य बन गये हैं रात मंे ग्रामीणो पर हमलावर रहने वाले सुअर पूरे क्षेत्र मे सैकड़ों बीघा फसल नष्ट कर देते हैं।

आलू के खेत में घुसे सुअरो को भगाने के लिए किसानों को इकठ्ठा होकर प्रयास करना होता है। जहां आलू की खेती नहीं है वहां जिस फसल में घुस जाते है बडा नुकसान करते हैं। निचली मांट ब्रान्च गंगनहर के खायरा, महमूगड़ी, लोहई, भालई, डडीसरा, डडीसरी, खजंरावास, कराहरी, वीरवला, हरनौल, नशीटी, जैसवा, जावरा, दरबै, राया, कारब होती हुई बल्देब तक जाती है। नशीटी तक गंगनहर के साथ गंगनहर की समांतर शाखा नहर, कराहरी ड्रेन भी साथ बहती है तथा गंगनहर से निकले दर्जनांे माइनर व राजवाह इनके आसपास बहते हैं। इन्हीं राजवाह गंगनहर, नालों के आसपास के क्षेत्रो में जंगली सुअरों का आतंक है। दिन मंे यह नहर नालों के आसपास घनी झाड़ियों में अपनी भाट मंे रहते हैं और शाम को सूरज छिपते ही खेतों मंे झुण्ड बनाकर फसलो पर टूट पड़ते हैं।

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