जानवर से बदतर स्वार्थी मनुष्य प्रकृति के विनाश पर आमादा

जानवर से बदतर स्वार्थी मनुष्य प्रकृति के विनाश पर आमादा

यह सभी प्रकृति को क्षीण कर हमारे मानव जीवन को कमजोर बना रहे


आज 21वीं सदी में मानव जीवन अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। कंक्रीट के जंगल, वाहनों और खनिजों का दोहन, मोबाइल क्रांति, टावर, रसायनों का अति प्रयोग, जंक फूड, फैशन, यांत्रिक उपकरणों का बढ़ना, प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग, बढ़ता प्रदूषण, ई–कचरा, जानलेवा कचरे में लगातार वृद्धि, वनों की कटाई, खाद्यमिलावट, भ्रष्टाचार, जानवरों का अवैध शिकार, जैव विविधता का ह्रास, यह सभी प्रकृति को क्षीण कर हमारे मानव जीवन को कमजोर बना रहे हैं।

 इंसान कितनी भी तरक्की कर ले, फिर भी प्रकृति के सामने वह शून्य है। हम कितने भी उन्नत क्यों न हों, परन्तु जीवित रहने के लिए सर्वाधिक आवश्यक तत्त्व अर्थात अनाज, ऑक्सीजन, पानी, सूर्यप्रकाश मनुष्य खुद से नहीं बना सकता, वो प्रकृति हमें मुफ्त देती है। मानव हजारों वर्षों से विज्ञान के बिना जी रहा है, लेकिन प्रकृति के बिना एक भी क्षण जीवित नहीं रह सकता है। आज के आधुनिक समय में लालच के कारण स्वार्थी लोग प्रकृति के विनाश पर आमादा हैं।

 एक वक्त था जब चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर हम सुबह उठते थे, लेकिन अब ध्वनिप्रदूषण के कारण वाहनों का शोर हमें जगाता है। आवश्यकता से ज्यादा स्टेटस सिंबल के लिए संसाधनों का उपभोग होता है, लोगों से ज्यादा वाहन सड़क पर दौड़ते नजर आते हैं। पहले बहुत हरा-भरा वातावरण हुआ करता था, हमारे आँगन में पक्षी स्वछंद विचरण करते थे। हर ओर घने जंगल थे, फिर वहां खेती शुरू हुई, नए गांव और बस्तियां बस गईं, बढ़ती आबादी व शहरीकरण के कारण अब खेती की भूमि पर नए लेआउट, फैक्ट्री तैयार हो रहे है, जैसे-जैसे वन क्षेत्र कम होता गया, वैसे-वैसे पक्षी, जानवर और वनोषधी भी घटते गये। वन क्षेत्र कम होकर कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे है। वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। पृथ्वी पर से मूल्यवान खनिज भंडार तेजी से खत्म हो रहे है। प्रशासन ने प्रकृति के संरक्षण के लिए स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक नियम बनाए हैं लेकिन नियमों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हो रहा है।  

भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, 2009 से 2011 के बीच देश में कुल 367 वर्ग किमी वन नष्ट हो गए। भारत के प्राकृतिक वन प्रतिवर्ष 1.5 से 2.7 प्रतिशत की दर से घट रहे हैं। इस प्रकार हम एक ओर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर प्रदूषण रोकने वाले वनों को नष्ट कर रहे हैं। 2000 के बाद से दुनिया भर में प्रदूषण से होने वाली मौतों में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इनमें से करीब 65 फीसदी मौतें एशिया में होती हैं।

 बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग के कारण जानवरों और पौधों की लगभग 10 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं, ऐसा “इंटरगव्हर्नमेंटल सायन्स पॉलिसी प्लॅटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्व्हिसेस” की एक प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया। ग्लोबल लीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय कानूनी वन्यजीव व्यापार के मूल्य में 2005 से 500 प्रतिशत और 1980 से 2,000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विश्व बैंक का अनुमान है कि 20वीं सदी की शुरुआत से अब तक लगभग 3.9 मिलियन वर्ग मील (10 मिलियन वर्ग किलोमीटर) जंगल नष्ट हो चुके हैं।

2018 में, द गार्डियन ने दर्शाया कि हर सेकंड, फुटबॉल के मैदान के आकार का जंगल का एक हिस्सा खत्म हो जाता है। विकास के नाम पर हरित क्षेत्रों से पेड़ काटकर हाईवे, कंपनियां, फार्महाउस, होटल बनाए जा रहे हैं। नतीजतन, जानवरों के आने-जाने के मार्ग अवरुद्ध होते है, उनके प्राकृतिक आवास नष्ट होते है। हरे-भरे प्रकृति के सानिध्य में घूमना हर किसी को पसंद होता है लेकिन इसके संरक्षण के लिए किसी के पास समय नहीं है।

दुनिया का सबसे खतरनाक प्राणी मनुष्य है, वह अपने स्वार्थ और लालच के कारण किसी को भी नुकसान पहुंचाने से नहीं डरता। प्रकृति अनादि काल से मनुष्य को सुखमय जिंदगी और जीवनउपयोगी वस्तुएं प्रदान करती रही है। प्रत्येक वस्तु के उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा माल भी प्रकृति द्वारा प्राप्त किया जाता है लेकिन मनुष्य प्रकृति को अपने अधिकारों और अपेक्षाओं से भी परे लूटने लगा है जबकि प्रकृति पर ही संपूर्ण जीवन निर्धारित है।

 मानव के कल्याण, उच्च जीवनस्तर और विकास के लिए प्रशासन, शिक्षा, कानून, आयोग, संस्थाएं, मतदान, पैसा, रिश्ते-नाते और सभी प्रकार की अत्याधुनिक सुख-सुविधाएं हैं, फिर भी मनुष्य किसी न किसी समस्या से ग्रस्त होकर समाधान के लिए भटकता रहता है। अगर शहर में एक दिन भी नलों में पानी नहीं आता है तो इंसान की दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है। गर्मी के दिनों में शहरो में पानी की समस्या आम हो जाती है, पानी के लिए दूर-दूर तक भटकना पड़ता है, तो ऐसी स्थिति में वन्यजीवों का क्या हाल होता होगा? जरा सोचिए, वन्य जीवों को अगर समस्याएं है तो वे इंसाफ के लिए कहां जाएं?

पृथ्वी पर प्रत्येक जीव का खाद्य श्रृंखला में एक विशिष्ट स्थान है, जो पर्यावरण में संतुलन स्थापित करने अपने विशेष तरीके से योगदान हेतु मददगार साबित होते है। लेकिन, दुर्भाग्य से, आज कई जानवर और पक्षी संकटग्रस्त हैं। भूमि विकास और कृषि के लिए मनुष्यों ने वनौषधियों, जानवरों और पंछियों के प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर दिया है। “कॉन्सर्वेशन लेन्सेस एंड वाइल्ड लाइफ” रिपोर्ट के अनुसार, 2021 के पहले 81 दिनों में 39 बंगाल बाघों ने अपनी जान गंवाई,

जबकि आधिकारिक सूत्रों ने मरने वालों की संख्या 16 बताई। 2019 में, ब्राजील में मानव निर्मित आग की संख्या आसमान छू गई। अगस्त 2019 तक, अमेज़न में 80,000 से अधिक आग लग चुकी थी, नेशनल ज्योग्राफिक के अनुसार, 2018 की तुलना में यह लगभग 80% की वृद्धि है। वैश्विक वन लक्ष्य रिपोर्ट-2021 में विश्व स्तर पर जैव विविधता के नुकसान का भी उल्लेख है। दुनिया भर में लगभग 1.6 अरब लोग अपनी आजीविका और दैनिक आवश्यकताओं के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। शीर्ष पांच वनक्षेत्र देशों (रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका और चीन) में दुनिया के 54% से अधिक वन हैं।

हमारे द्वारा उपयोग की जाने वाली 25 प्रतिशत से अधिक दवाएं वर्षावन पौधों में बनाई जाती हैं, फिर भी केवल 1 प्रतिशत वर्षावन पौधों का उनके औषधीय गुणों के लिए अध्ययन किया गया है। जमीन पर औसतन 40 प्रतिशत वर्षा पौधों से वाष्पन के कारण होती है।

2018 FAO की रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी के ताजे पानी का तीन-चौथाई हिस्सा वन जलक्षेत्रों से आता है और पौधों की क्षति पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। संयुक्त राष्ट्र की “स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट 2018” रिपोर्ट में पाया गया कि, दुनिया की आधी से अधिक आबादी अपने पीने के पानी के साथ-साथ कृषि और उद्योग के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी के लिए जंगल के पानी पर निर्भर है।

प्रवासी पक्षी और अन्य वन्यजीव दुनिया भर में हजारों मील की यात्रा करके भी कभी रास्ता नहीं भटकते। पक्षी, सुंदर नक्काशीदार घोंसले तयार करते हैं, प्रत्येक मौसम की सटीक जानकारी रखते है। अगर पक्षियों और जानवरों को प्रशिक्षित किया जाये, तो वे इंसानों से ज्यादा वफादार होते हैं। अधिकतर वन्यपशु पक्षी समूहों में रहते हैं और समूह के नियमों का पालन करते हैं और प्रकृति का संरक्षण करते हैं। वन्यजीवों और पक्षियों द्वारा निर्मित गंदगी भी प्रकृति के लिए वरदान है। वन्य जीव आपस में संवाद करते हैं, एक दूसरे की भावना समझते है, परिवार के प्रति भी उनमे बहुत लगाव होता है जो अब मनुष्यों में घट रहा है।

 वास्तव में वन्य जीवन और पक्षी ही हैं जो वनों और प्रकृति को समृद्ध करते हैं और मानव जीवन को गति प्रदान करते हैं। जहां प्रकृति समृद्ध है, वहां शुद्ध जल और शुद्ध ऑक्सीजन के स्रोत समृद्ध हैं, प्राणी, वनौषधी, जंगल समृद्ध हैं। मिट्टी उपजाऊ और फसल गुणवत्तापूर्ण तैयार होती है, ऐसी जगहों पर बीमारियां कम और इंसान का सेहतमंद आयुष्यमान दीर्घ होता है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या कम होकर ओजोन परत की सुरक्षा बढ़ती है।

खुशनुमा वातावरण और पौष्टिक भोजन मिलता है, मौसम का चक्र भी सुचारु रूप से चलता है। मनुष्य प्रकृति को समाप्त न करके अपने ही अस्तित्व को समाप्त कर रहा है, यह वास्तविक सत्य को समझना बहुत जरूरी है। प्रकृति जीवित रहेगी, पृथ्वी बचेगी तो मनुष्य जीवित रहेगा।

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