hindi kavya darshan
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी|

संजीव-नी| क्योंकि आज उसने खाना नहीं खाया|क्योंकि आज हरिया ने खाना नहीं खाया,हथौड़े की तेज आवाज से भी तेज,मस्तिष्क के तंतु कहीं तेजी सेशून्य में विलीन हो जाते,फिर तैरकर,वापसी की प्रतीक्षा किए बिना,आकर वापस...
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भगवती वंदना 

भगवती वंदना  मां भगवती सदैव आपकी शरण रहूँ  भले दुखों का प्रहार हो  भले सुखों की बाहर हो। मां भगवती सदैव आपकी चरणवन्दना करुँ  भले लोग मेरे खिलाफ़ हो भले लोग मेरे साथ हो। मां भगवती सदैव आपका चिंतन मनन करुँ  भले...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। एक दिया इधर भी। एक दिया छत की मुंडेर पर जला आना, जहां साया होता है गहन तमस का।     एक दिया उस बूढ़ी मां के कमरे के आले पर जला आना, जहां बेटे,बहू ,नाती,नातीने जाने से कतराते हों।     एक दिया...
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दीप 

दीप  दीप जलते नहीं  जलाए जाते है। मोहब्बत की नहीं निभाई जाती है। खुशियां आती नहीं  लाई जाती है। अपने बनते नहीं   बनाए जाते है। कर्म दिखाए नहीं किए जाते है। हमसफर दिखाया नहीं  बनाया जाते है। सत्य समझाया नहीं  समझा...
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संजीव-नीl

संजीव-नीl कौन दस्तक देता है दर पर संजीव।मैं तो अपनी शर्तों पर जीता हूं.पराये दर्द के अश्कों को पीता हूं।रातें तो सितारों संग बीत जाती हैं,दिन के उजालों से बचता रहता हूं।अब चले ना चले कोई...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  मुझे कोई गम नहीं रहा संजीव।     आरजू आखरी सांस तलक नेकी की शर्त ही थी हर लम्हा पूरा जीने की।     आबरू खुद बचा ली इस तूफ़ां ने  मेरी जिंदगी के टूटे हुए सकिने की।     दिल को तस्कीन सी मिली है...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  इतनी बे-असर दुआएं क्यों हैं। ?     इतनी खामोश हवाएं क्यों है,  इतनी गमगीन फिजाएं क्यों है।     बीमार ए-दिल में बे-असर दवाएं अब इतनी बे-असर दुआएं क्यों हैं।     दर्द हमारा तो ला- इलाज है, बे-असर इतनी दवाएं क्यों हैं ।    नजरें...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। मस्तियां सी घोल दी बरसात ने।     क्या दिया है मोहब्बत के जज्बात ने कितना पीसा हमको इस हालात ने।     मेरी तकदीर को चांद सा चमका दिया सचमुच् तेरी उस पहली मुलाकात ने ।     तेरी आंखों के हैं जाम तौबा शिकन...
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संजीव-नी। 

संजीव-नी।  विश्व युद्ध की कालिमा।     विश्व युद्ध की आशंका। सिर्फ युद्ध का उन्माद, डरा देता है अंदर तक, दिल और दिमाग  कांप जाते हैं, आने वाले कल की भयानक तस्वीर, विभीषिका मानव को कम्पित कर रख देती है। क्या हम भूल...
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संजीवनी।

संजीवनी। बंधन का इरादा है वफा का गांव चाहिए।     बला की धूप है सर पर घनेरी छांव चाहिए, थके मुसाफिर को सुकून का गांव चाहिए।     दुआएं निकली है दिल से तो पूरी होंगी, बंधन का इरादा है वफा का गांव चाहिए।...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। सामने आओ तो,पलकें झुका देना तुम।    एहसास दिल में न दबा देना तुम, होठों से तिरछा मुस्कुरा देना तुमl    ये दिल की लगी है, घबरा न जाना, सिर्फ आंखों में ही मुस्कुरा देना तुम।    नया नया रूप है तुम्हारे यौवन...
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कविता

कविता प्रभु पता बता सका न कोई।    बीत जाती है सदियां बदल जाते हैं युग पर नहीं विस्मृत हो रहा प्रभु रूप अनोखा तुम्हारा।    झर जाती पंखुरियाँ उड़ उड़ जाती सुगंध रूप ,सौंदर्य जिसका हमें घमंड मिट जाते हैं सदैव काल...
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