hindi kavya darshan
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

कविता

कविता प्रभु पता बता सका न कोई।    बीत जाती है सदियां बदल जाते हैं युग पर नहीं विस्मृत हो रहा प्रभु रूप अनोखा तुम्हारा।    झर जाती पंखुरियाँ उड़ उड़ जाती सुगंध रूप ,सौंदर्य जिसका हमें घमंड मिट जाते हैं सदैव काल...
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संजीव-नी।

संजीव-नी।    ईश्वर सब तेरी मेहरबानीl     वह दूसरों की खुशहाली से परेशान है, दुनिया की चमक धमक से हैरान हैl     खुद ने कभी ईमान का पसीना बहाया नहीं, बिना श्रम के कोई नहीं बना धन वान हैl     धन की लिप्सा चाहत किसे...
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कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी।

संजीव-नी। हिंदी पर न्योछावर हर दिल और जान है।हिंदी है हमारी प्यारी भाषा,हिंदी है एक शक्तिशालीऔर विशाल ज्ञान की भाषा,आओ बनाएं इसे राष्ट्रभाषा।हिंदी भाषा हमारा मान और अभिमान है,हिंदी राष्ट्र का वैभवशाली गौरव गान है।...
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संजीवनी।

संजीवनी। संजीवनी।    याद आती है।    याद आती है जिनकी मधुर सुगंध, समा गई सांसों और रग रग में।    याद आती है वह रतिया जो बस गई आंखों की मुंदी हुई मेरी पलकों में।    और याद आते हैं अधर सुमधुरस जिनका रस...
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संजीव-नी।।

संजीव-नी।। ईर्ष्या से कभी स्नेह का रिश्ता नही बनता ,    ईर्ष्या से कभी स्नेह का रिश्ता नही बनता , लोभ से कभी सच्चा रिश्ता नही बनता।    जहां राग, द्वेष और दुश्मनी व्याप्त हो, ऐसे में कोई निस्वार्थ रास्ता नही बनता।   कौन...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। ग़ुज़री तमाम उम्र उसी शहर में कोई जानता न था  वाक़िफ़ सभी थे,पर कोई पहचानता न था..    पास से हर कोई गुजरता मुस्कुराता न था, मेरे ही शहर में लोगों को मुझ से वास्ता न था।    मेरे टूटे घर में...
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संजीव-नी|

संजीव-नी| कितने कितने हिंदुस्तान ? नल पर अकाल की व्यतिरेक ग्रस्त जनानाओं की आत्मभू मर्दाना वाच्याएं। एक-दूसरे के वयस की अंतरंग बातों,  पहलुओं को सरेआम निर्वस्त्र करती,  वात्या सदृश्य क्षणिकाएं, चीरहरण, संवादों से  आत्म प्रवंचना, स्व-स्तुति, स्त्रियों के अधोवस्त्रों में झांकती...
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संजीव-नी|

संजीव-नी| उजालों में जो दूर से लुभाते हैं|    उजालों में जो दूर से लुभाते हैं, रात को वो ही ख़्वाबों में आते हैं |    कोई कतई मज़बूरी नहीं आदत है, हम तो सदैव ग़मों में भी मुस्कुरातें हैं|    तेरा तसव्वुर पानें...
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