होली,अतुलनीय रंगोंऔर समरसता का बेमिसाल,महान त्योहार।

होलिका दहन की अद्भुत कथा विश्व में अद्वितीय,

होली,अतुलनीय रंगोंऔर समरसता का बेमिसाल,महान त्योहार।

स्वतंत्र प्रभात। 
होली की अनंत बधाइयां, शुभकामनाये, फाल्गुनी रंगो से मनाई जाने वाली होली न सिर्फ भाईचारे ,सौहार्द्र और प्यार,स्नेह का त्यौहार है। यह महान पर्व शत्रुता हरण करने वाला भी पवित्र त्यौहार है। होलिका दहन और रंगों के खेलने की की परंपरा अलौकिक है ।होलिका दहन के रूप में समाज में व्याप्त बुराई को नष्ट करने की अद्भुत परंपरा सिर्फ हमारे देश में ही है। ऐसी विलक्षण तथा इस होलिका दहन तथा होली के इस पावन पर्व पर जुड़ी हुई है। प्राचीन सांस्कृतिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यपु नामक राक्षस राजा हुआ करता था।
 
प्राचीन काल मे ब्रम्हाजी की तपस्या से उसने वरदान प्राप्त कर लिया था,कि उसे न देवता मार सके न ही कोई अन्य जीव जन्तु ,न दिन मे मरे न रात मे ,न अस्त्र से न शस्त्रों से ,न धरती पर न आकाश मे उसकी मृत्यु हो ,इस तरह उसने अमरत्व प्राप्त कर लिया था। धीरे धीरे उसे इतना घमंड हो गया कि वह अपने को भगवान विष्णु और ब्रह्मा से बढकर भगवान समझने लगा ,राज्य मे कोई व्यक्ति किसी भगवान की पूजा नही कर सकता था ,केवल हिरण्कश्यपु की ही पूजा हो सकती थी।
 
कालांतर में उसके एक पुत्र हुआ ,बालक बडा ही धार्मिक प्रवृत्ति का था और भगवान विष्णु का भक्त भी,यह बात राजा को अत्यंत नागवार गुजरती थी ,उसने अपने पुत्र को बहुत समझाने का प्रयास किया कि उसका पिता राजा हिरण्यकषिपु ही एकमात्र भगवान है ,पर बालक अपने पिता के इस अधर्मी आदेश को नही मानता था,
बालक प्रह्लाद के ऊपर सख्ती करने हेतु उसके पिता हिरण्यकशयपु ने उसे समुद्र मे फेंकने का आदेश दिया ,उसे हाथी कुचलने का आदेश दिया,पहाड से नीचे फेंका गया पर भगवान विष्णु की भक्ति और दया से बालक प्रह्लाद जीवित सकुशल बच गया।
 
अंत मे राजा ने अपनी बहन और बालक प्रह्लाद की बुआ होलिका का सहारा लिया ,होलिका को जी तपस्या से एक ऐसे कपडे का वरदान प्राप्त था, जिसे पहनने पर वह अग्नि से जल नही सकती थी। इसी वरदान का फायदा उठाते हुए ,होलिका ने बालक प्रह्लाद को गोद मे लेकर अग्नि स्नान किया ,पर होलिका की चुनरी उड कर प्रह्लाद पर लिपट गई ,और दुष्ट होलिका जलकर भस्म हो गई,प्रह्लाद फिर बच गए। इस तरह होलिका दहन का त्यौहार होलीका नामक बुराई को अग्नि से खत्म करने की प्रथा चली आई है।
प्रह्लाद को राजा ने एक विशाल खंबे से बांध दिया और तलवार लेकर उसपर टूट पडा और पूछा बता तेरा भगवान कहां है ,बालक ने बड़ी निडरता से कहा भगवान हर जगह हैं ,आप मे, मुझ मे ,आपकी तलवार मे इस,इस खंबे मे भी।
 
तब हिरण्यकश्यपु ने क्रोध से कहा तो देख तेरा भगवान तुझे कैसे बचाता है और उसने उसे मारने के लिए तलवार उठाई ,तभी खंबे को फाड़कर एक भयानक जीव निकला ,जो न नर था न दानव उसने राजा को गोद मे लिया और अपने नुकीले नाखून से राजा का पेट फाड दिया। बालक प्रह्लाद की अनन्य भक्ति को देखकर उसको भक्त प्रह्लाद कहा जाने लगा। भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह भगवान ने हिरण कश्यप का वध कर अहम दंभ और बुराइयों को खत्म किया और तब से होली का त्योहार प्राचीन समय से भारत देश में मनाया जा रहा है।
 
होली पूरे विश्व में अनूठा, अद्भुत, अतुलनीय भाईचारे प्रेम रूप में मनाया जाता है, एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर खुशियां मनाई जाती है, एक दूसरे को मिठाई भी खिलाई जाती है। होलिका दहन के दूसरे दिन रंगों का त्योहार बहुत ही खुशी से आजादी तो क्यों मनाया जाता है देश की इस महान परंपरा को नमन प्रणाम।
 
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक

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