भारतीय रेल - सपने और हक़ीक़त
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तनवीर जाफ़री
भारतीय रेल मंत्रालय लोकलुभावन विज्ञापन जारी कर अपनी छवि गढ़ने की क़वायद में जुटा हुआ है। वंदेभारत श्रेणी की अलग अलग दिशाओं को जाने वाले एक एक रैक को प्रधानमंत्री द्वारा झंडी दिखाकर रवाना किया जाना और इन उद्घाटन समारोहों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिरकत के चलते इस इवेंट मैनेजमेंट पर जनता के करोड़ों रूपये ख़र्च करना हो या देश के कई रेलवे स्टेशंस का सौंदर्यीकरण या उनका विस्तार करना हो या स्टेशन के मुख्य द्वारा पर ऊँचे ऊँचे राष्ट्रीय ध्वज स्थापित करना हो, इनमें से किसी बात का सम्बन्ध सामान्य रेल यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं से हरगिज़ नहीं है। रेल यात्री को सबसे पहले सुरक्षित रेल यात्रा की दरकार है। समय पर ट्रेनों का आवागमन रेल यात्रियों की प्राथमिकताओं में एक है। प्रत्येक यात्री को आरक्षण मिले,उसकी वेटिंग कन्फ़र्म हो,स्वच्छ वाशरूम व वाशबेसिन,रेल से लेकर प्लेटफ़ॉर्म तक यात्रियों के सामान की सुरक्षा आदि यात्रियों की पहली ज़रूरतें हैं। रेल मंत्रालय द्वारा अपनी पीठ थपथपाने वाले विज्ञापन अख़बारों में प्रकाशित करा देने से रेल यात्रियों का क्या भला होगा ? रेल स्टेशन के सौंदर्यीकरण के जो निर्माण कार्य चल भी रहे हैं उनकी गुणवत्ता देखकर ही पता चलता है कि 'ख़ूब खाया और खिलाया' जा रहा है।
पहले रेल यात्री सुरक्षित व आरामदेह यात्रा की आस में ए सी के तृतीय या द्वितीय श्रेणी में आरक्षण कराकर यात्रा किया करते थे। परन्तु अब जैसे जैसे सरकार ट्रेन में सामान्य श्रेणी व स्लीपर क्लास डिब्बों की संख्या कम कर ,ए सी कोच बढ़ाती जा रही है वैसे वैसे स्लीपर व सामान्य श्रेणी के यात्रियों की समस्याओं में इज़ाफ़ा होता जा रहा है। हालात तो अब ऐसे हो रहे हैं कि स्लीपर क्लास में वेटिंग टिकट कन्फ़र्म न हो पाने वाले यात्री हों या सामान्य श्रेणी यात्री, अब वे सीधे ए सी क्लास रुख़ करते हैं। वे टिकट निरीक्षक को कुछ 'नज़राना ' थमा कर स्वयं को वातानुकूलित श्रेणी में यात्रा करने के लिये अधिकृत यात्री मान लेते हैं। उसके बाद ए सी कोच और उसके अधिकृत यात्रियों को जिस दुर्दशा का सामना करना पड़ता है उसकी तो कल्पना ही नहीं की जा सकती। भारतीय रेल इतिहास में वातानुकूलित श्रेणी के यात्रियों की ऐसी दुर्दशा पहले कभी नहीं देखी गयी।
गत 15 अप्रैल को अमृतसर से जयनगर जाने वाली ट्रेन संख्या 14650 के लगभग सभी ए सी कोच ख़ासकर कोच संख्या M1 ऐसी दुर्व्यवस्था का शिकार था कि पूरे डिब्बे में प्रवेश द्वारा व वाशरूम से लेकर कोच के भीतर पूरी गैलरी में यहाँ तक की साइड की बर्थ के बीच में भी अनिधकृत यात्री खचाखच भरे हुए थे। वातानुकूलित श्रेणी के अधिकृत यात्रियों का शौचालय या वाश बेसिन तक पहुंचना असंभव था। अनधिकृत यात्रियों का केवल कोच की गैलरी या कोच के बाहरी हिस्से पर ही नहीं बल्कि शौचालय तक में पूरा क़ब्ज़ा था। अम्बाला से लेकर शाहगंज तक यानी शाम लगभग 6 बजे से लेकर अगले दिन 1 बजे तक कोच की दुर्दशा का यही आलम था। कभी टिकट निरीक्षक किसी यात्री को थप्पड़ लगाता दिखाई दिया तो कभी किसी यात्री से पैसे ऐंठते। सारी रात कोच के आरक्षित अधिकृत यात्री घुसपैठी यात्रियों से लड़ते झगड़ते रहे।आरक्षण होने के बावजूद कोई भी यात्री सारी रात सो नहीं सका। कई यात्रियों ने चलती ट्रेन में ही फ़ोन कर शिकायत भी दर्ज की। मुरादाबाद में एक महिला पुलिस चीख़ती चिल्लाती बड़ी मुश्किल से कोच में घुसी और उन बर्थ पर गयी जहाँ से शिकायत की गयी थी। वह महिला पुलिस बजाये फ़ालतू सवारियों को नीचे उतारने के शिकायतकर्ता से यह कहती सुनी गयी कि 'आइये मैं आपको वाशरूम तक पहुंचा देती हूँ'। टिकट निरीक्षक भी अत्यधिक भीड़ देख अपना वसूली मिशन पूरा कर दुबारा डिब्बे में ही मुड़कर नहीं आया। इसी भीड़ के चलते पानी चाय आदि की आपूर्ति करने वाले हाकर्स भी नहीं आ जा सके।
यह हाल केवल 14650 का ही नहीं था बल्कि मुंबई से जयनगर जाने वाली 11061, पवन एक्सप्रेस के ए सी श्रेणी के यात्री भी उसी दिन इसी तरह की त्रासदी झेल रहे थे। मुंबई से लेकर प्रयागराज तक इस ट्रेन के ए सी कोच भी घुसपैठी यात्रियों से भरे पड़े थे। इसमें भी आरक्षित अधिकृत यात्री शौचालय तक नहीं पहुंच पा रहे थे। इस तरह के घुसपैठी यात्री केवल आरक्षित अधिकृत यात्री की सुख सुविधा में ही बाधक नहीं बनते बल्कि वे शौचालय और वाशबेसिन को भी इतना गन्दा कर देते हैं कि यदि धक्का मुक्की कर कोई यात्री शौचालय और वाशबेसिन तक पहुँच भी जाये तो उसे इतनी गंदिगी का सामना करना पड़ता है कि वह शौचालय या वाशबेसिन का प्रयोग ही नहीं कर सकता। किसी सफ़ाई कर्मचारी के आने और सफ़ाई करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। सोचा जा सकता है जब शिकायत करने के बावजूद पुलिस घुसपैठी यात्रियों को बाहर नहीं निकाल सकी,टिकट निरीक्षक मैदान छोड़ भाग खड़ा हुआ तो यात्रियों की सुध लेने वाला और उनके सामान की रक्षा करने वाला आख़िर कौन है?
रेल मंत्रालय के इवेंट मैनेजमेंट या स्टेशंस को चमकाने की क़वायद रेल यात्रियों की उपरोक्त समस्या का समाधान भला कैसे हो सकती है ? अपने वित्तीय आयबढ़ाने के लिये विभाग ए सी कोच की संख्या बढ़ा तो रहा है परन्तु वह शत प्रतिशत वेटिंग टिकट कन्फ़र्म करने की कोई तरकीब नहीं ढूंढता। उसके पास ए सी कोच में घुसपैठी यात्रियों के प्रवेश को रोकने और आरक्षित अधिकृत यात्री की सुखद व सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने की कोई तरकीब नहीं। देश के अनेक हिस्सों में रेल यात्री इसी दुर्दशा का शिकार हैं। परन्तु सरकार है कि विज्ञापनों के बल पर अपनी पीठ थपथपा कर और तरह तरह की लोकलुभावन बातें कर या मुफ़्त का राशन बांटकर या फिर धर्म ध्वजा बुलंद कर आम लोगों को अँधेरे में रखे हुये है। गोया भारतीय रेल देशवासियों को सपने तो बुलेट ट्रेन और स्टेशन के आधुनिकीकरण के दिखाती है जबकि यात्रियों के सामने पेश आने वाली हक़ीक़त कुछ और है।
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