संजीवनी।
हमने तनहाइयों को अपना हमसफर बना लिया।
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हमने तनहाइयों को अपना हमसफर बना लिया।
हमने अजनबीयों से मिलकर एक घर बना लिया,
बिखरे पत्तों टहनियों से एक सजर बना लिया।
लाख मिन्नतें भी हमारी काम ना आई उन पर,
हमने कैनवास पर रंगों का हसीन मंजर बना लिया।
उनकी खुशबू खयालों से भीगे हुए थे हम,
ख्वाबों ने मुझे आशिकों का सिकंदर बना लिया।
वादा करके भी लौट कर ना आए फिर,
अपने को उनके मकां का प्रस्तर बना लिया।
जमाने ने उनको सर आंखों पर रखा फिर भी,
दुनिया को पैरों से लुड़कता पत्थर बना दिया।
उनकी बेवफाई के किस्से अनगिनत हैं लेकिन,
हमने तनहाइयों को अपना हमसफर बना लिया।
संजीव ठाकुर,
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