hindi kavita or kahani
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Read More... संजीव-नीl
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By Office Desk Lucknow
मतदाता एक दिन का राजाl एक मतदान के पावन दिन लगाकर कपड़ों में चमकदार रिन एक पार्टी के उम्मीदवार लगते थे मानो है सूबेदार, बिना लंबा भाषण गाये मुस्कुरा कर मेरे पास आए, बोले- कृपया अपने मताधिकार का लोकतंत्र के...
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By Swatantra Prabhat Desk
मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखिए, l मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखिए, l रिश्तो की भावनाओं को जिंदा रखिए। संबंधों की नर्म ऊष्मा जिंदा रखिए, अहसासों के दर्द को जिंदा रखिए, चुप्पी दफ़्न करती कोमल रिश्तों को, लफ्जों की आकांक्षाओं को...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat Desk
व्यंग। हिंदी दिवस l नेशनल हिन्ढी डे ? एक अंग्रेज नुमा नेता जी हिंदी दिवस पर आये,करने भाषण बाजी । बोले, लेट अस सेलिब्रेट एन एन्जॉय हिंदी डे, मुझे हिंदी अच्छी नही आती मेरे पूरे परिवार को नही भाती, मेरा...
Read More... संजीव-नीl
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By Swatantra Prabhat UP
कविता, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं। रिश्ते अब अपने रिश्तों से दूर गए है, लोग आज कितने निष्ठुर हो गए हैं l दुश्मनो से दोस्त कर रहें गुजारिश, भोले चेहरे कितने मगरूर हो गए हैं। ज़माने की कैसी...
Read More... संजीव नी।
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By Swatantra Prabhat UP
कविता तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं । तेरे सामने मेंरा वजूद बेहतर भी नहीं , तू खुदा नहीं पर कमतर भी नहीं । यारों ने आईना दिखाया मुझे बार बार जानता हूँ वो फकत आईना तेरा भी नहीं।...
Read More... राहु
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By Swatantra Prabhat UP
राहु राहु हूँ नई राह दिखता हूँ। पथ पर अग्रसर कर अपार सफलता दिलवाता हूँ। कर्म बुरे करते तो रोग, शत्रुता और ऋण बढ़ाता हूँ। शुभ कर्मो पर धनार्जन के नये मौके दिखलाता हूँ। शुक्र, शनि, बुध मित्रों संग मिलकर...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
प्यारी मां तेरी जैसी l हर किसी की माँ हो, माँ हो मेरी जैसी, हर नारी लगती प्यारी मुझे मां जैसीl रोटी के इंतजाम में गई मां की बाट जोहता, लौटती हर औरत लगती शाम उसे मां जैसी। मां मेरी...
Read More... संजीव-नी।
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By Swatantra Prabhat UP
।प्राकृतिक विभीषिका । हवा में जहर मन में विषैला पन आखिर क्या है इसकी परिणति और भविष्य, प्राकृतिक विभीषिका, लाखों बच्चों बुजुर्गों की कर दी खत्म इह लीला, प्रकृति की अनुपम देन जल,वायु और हरियाली हमने मलिन इरादों से कर...
Read More... संजीवनी।
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By Swatantra Prabhat UP
हमने तनहाइयों को अपना हमसफर बना लिया। हमने अजनबीयों से मिलकर एक घर बना लिया, बिखरे पत्तों टहनियों से एक सजर बना लिया। लाख मिन्नतें भी हमारी काम ना आई उन पर, हमने कैनवास पर रंगों का हसीन मंजर बना...
Read More... गर्माहाट
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By Swatantra Prabhat Desk
गर्माहाट बहुत अच्छा लगता है न तुमको जीवों को पका कर स्वाद से खाना। प्रकृति भी तो पका रही हैं अब तुमको सूर्य की तप्त किरणों में। उसको भी तो थोड़ा स्वाद आना चाहिए तुम क़ो रुलाने में। बहुत अच्छा...
Read More... संजीव-नीl
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By Swatantra Prabhat UP
जो शांति के दे पैगाम,जो शांति के दे पैगाम,वक्त में जो काम आएवह सच्चा मित्र होता है।साथ साथ जो कंधेसे कंधा मिलाकरपसीना बहाए,वह अच्छा मित्र होता है।मित्र और शत्रु की पहचानबुरे...
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