कोटेदारों की व्यथा नहीं है कोई सुनने वाला

कोटेदारों की व्यथा  नहीं है कोई सुनने वाला

जब अधिकारी ही भ्रष्ट तो कोटेदार कैसे वितरित करेगा इमानदारी से उपभोक्ताओं को राशन -सूत्र विदित हो कि क्षेत्र के कोटेदार आम गरीब आदमी को सरकार द्वारा दी जाने वाली राशन आदि का वितरण उपभोक्ताओं तक पूरी ईमानदारी से देना तो चाहते है लेकिन कुछ भ्रष्टाचार मैं लिप्त संबंधित अधिकारियों व सफेद पोसो की वजह से

जब अधिकारी ही भ्रष्ट तो कोटेदार कैसे वितरित करेगा इमानदारी से उपभोक्ताओं को राशन -सूत्र

विदित हो कि क्षेत्र के कोटेदार आम गरीब आदमी को सरकार द्वारा दी जाने वाली राशन आदि का वितरण उपभोक्ताओं तक पूरी ईमानदारी से देना तो चाहते है

लेकिन कुछ भ्रष्टाचार मैं लिप्त संबंधित अधिकारियों व सफेद पोसो की वजह से मजबूरन कोटेदारों को घटतौली करना पड़ता है। माल खाएं भ्रष्टाचारी बदनाम हो कोटेदार।कोटेदारों की परेशानी यहीं नहीं समाप्त होती है सिलसिलेवार भ्रष्टाचार खाद्यान्न उठान को जावे तो वहां से वजन कर राशन नहीं मिलना 4 से 5 किलो बोरी में कम राशन  खाद्यान्न इंस्पेक्टर को भी पर्दे के पीछे से मोटी रकम चाहिए

खाद्यान्न वितरण रजिस्टर के सत्यापन पर संबंधित लेखपाल व सिक्रेटरी जिसकी भी ड्यूटी लगती हो उन्हें भी मोटी रकम चाहिए

 फिर ग्राम प्रधान को भी राजनीति करना है तो कोटेदार उनके कहने पर भी कुछ राशन कार्ड धारकों का राशन कटौती कर राशन उनके घर पहुंचाना और प्रधान द्वारा वोट बैंक के लिए कुछ लोगों को वही राशन फ्री में देना
 और कहना कि मैं अपने घर से फ्री में राशन बांट रहा हूं वितरण घर से करना ताकि वोट बैंक भी बना रहे
 ऐसे में कोटेदार उपभोक्ताओं के साथ घाटतौली नहीं करेगा तो नीचे से ऊपर वालों को कैसे मैनेज करेगा यह उसकी सबसे बड़ी मजबूरी है।
 क्योंकि उसकी व्यथा को शिकायत करने पर भी कोई खाद्यान्न से संबंधित अधिकारी सुनने वाला नहीं है।उल्टे कोटे से संबंधित अधिकारियों का कोटेदार के ऊपर ही कूट रचित कहानी रचकर कानून का चाबुक चला दिया जाता है कोटेदार का सरकारी गल्ले की दुकान को
 सस्पेंड कर उसे शिकायत करने का सबक दे दिया जाता है।
 ऐसे में उक्त कोटेदार कहां से खाद्यान्न लाकर उपभोक्ताओं को देगा। घटतौली करना उसकी मजबूरी भी है कोटेदार अगर शिकायत अपने अधिकारियों से उक्त अनियमितताओं की करें तो तुरंत कोटा सस्पेंड
 और जब कोटा बहाल कराने जाये तो मोटी रकम सस्पेंड बहाली के कुचक्र में भी कोटेदार बराबर फंसा रहता है

तो वहीं दूसरी तरफ खाद्यान्न माफियाओं की सक्रियता के चलते एक झूठी शिकायत पर कोटेदार की गल्ले की दुकान को निलंबित कर दिया जाता है पूंछे जाने पर क्षेत्र के कोटेदारों ने नाम न छापने की शर्त पर दबी जुबान से बताया कि हम लोगों का जबरदस्त उत्पीड़न हो रहा है कोटेदार कोटेदार शिकायत कर भी नहीं सकता है।शिकायत करने पर उल्टा डंडा कोटेदार के ऊपर ही पड़ने की पूरी संभावना रहती है


 इन्हीं कारणों से खाद्यान्न कार्ड धारक उपभोक्ताओं को यूनिट के हिसाब से बराबर राशन नहीं मिल रहा है आखिर इसका जिम्मेदार कौन है।ऐसा नहीं कि क्षेत्र के सभी कोटेदार बेईमान ही हैं कोटेदार ईमानदारी से कार्य करना चाहते हैं लेकिन उनको करने नहीं दिया जा रहा है।

यदि देखा जाए तो भ्रष्टाचार की जड़ नीचे से ऊपर तक पूरी तरह से जकड़ कर रखा है और तो और क्षेत्र में ग्रामीण कार्ड धारक उपभोक्ताओं के पास कार्ड भी नहीं है उनके हाथ में उन्हें पर्ची के ऊपर राशन दिया जाता है और अंगूठा मजबूरन कोटेदार भ्रष्टाचार के लिए पहले ही लगवा लेता है

और मशीन बता देती है कि उप भोक्ता को राशन मिल चुका है उसके बाद कोटेदार के ऊपर है कि आपको कितनी यूनिट के हिसाब से राशन दे क्योंकि आपकी कटौती का राशन उसे कई जगह मंदिर में चढ़ावे के माफिक चढ़ाना पड़ता हैं इसे कहते हैं भ्रष्टाचार का मकड़जाल।

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