बड़े मियां तो बड़े मियां,छोटे मियां सुभानअल्लाह

बड़े मियां तो बड़े मियां,छोटे मियां सुभानअल्लाह

आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने में बड़े मिया तो बड़े मिया,छोटे मियां सुभानअल्लाह ' की कहावत चरितार्थ होती दिखाई दे रही है ।  चुनावों में मतदाताओं को आतंकित करने के आरोपी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के बारे में उनकी पार्टी अध्यक्ष को जबाब देना है लेकिन इसके पहले उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री जी से भी आगे निकल गये ।  वे भाषण दे रहे हैं कि कांग्रेस मुसलमानों को गौमांस खाने का अधिकार देना चाहती है।


दरअसल हमारे यहां कौन ,किसको क्या आजादी देना चाहता है या दे चुका है ये किसी को पता नहीं है। केंद्रीय चुनाव दंतहीन,नखहीन ही नहीं अब श्रवणहीन भी हो चुका है। उसे केवल गैर भाजपाई दलों के नेताओं के भाषण सुनाई देते हैं। भाजपा नेताओं खासतौर पर प्रधानमंत्री जी के भाषणों को तो केंचुआ अपने श्रवण -रंध्रों  में प्रविष्ट ही नहीं होना चाहता। प्रधानमंत्री जी ने कहा की कांग्रेस आई तो महिलाओं का मंगलसूत्र छीन कर मुसलमानों को दे देगी। वे बोले कांग्रेस आई तो आपकी विरासत पर टैक्स लगा देगी ? तो क्या सचमुच प्रधानमंत्री जी को कांग्रेस सत्ता में आती हुई दिख रही है ? वो भी भाजपा और खुद प्रधानमंत्री जी की दस साल की दिन -रात की मेहनत के बाद आती दिख रही है।


मुझे कभी-कभी लगता है कि  कांग्रेस सत्ता में आये या न आये लेकिन भाजपा ने मान लिया है कि  कांग्रेस आ रही है। इसीलिए अब प्रधानमंत्री जी के प्रधान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सन्निपात की स्थिति में आकर आय-बांय बोलने लगे हैं।  सन्निपात में आदमी कुछ का कुछ बोल जाता है। उसे जो बोलना चाहिए वो बोल नहीं पाता और जो नहीं बोलना चाहिए उसे जोर देकर बोलता है।  योगी जी उत्तर  प्रदेश के उत्तरदायी मुख्यमंत्री है लेकिन गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे है।  जनता को बरगला रहे हैं की कांग्रेस अल्पसंख्यकों को गौमांस खाने का अधिकार देना चाहती है।
योगी जी को कौन बताये की दाने -दाने पर ,रेशे-रेशे पर खाने वाले का नाम लिखने वाला कोई और है।  कौन क्या खायेगा और क्या पहनेगा इसका फैसला कम से कम लोकतंत्र में सरकारें तो नहीं करतीं। पहले भी नहीं करतीं थीं आज भी नहीं करतीं। लेकिन योगी जी और मोदी जी मिलकर बहुसंख्यकों के सामने अल्पसंख्यक मुसलमानों का भय पैदा कर रहे हैं। इसके लिए भारत के नागरिक मुसलमानों को ही हौआ बनाया जा रहा है। हौआ बच्चों को भयभीत कर सुलाने के लिए अक्सर माताएं  बनाती रहतीं हैं ,किन्तु अब सरकारें अपनी कुरसी बचाये रखने के लिए हौआ बनाने पर उतर  आयीं हैं। जबकि हौआ का कोई वजूद होता ही नहीं है।  भारतीय मतदाता इतना बुद्धू भी नहीं है कि  हौआ के वजूद पर आसानी से यकीन कर  ले।


 कायदे से भाजपा के प्रबुद्ध नेताओं को बयानबाजी करने से पहले स्वाध्याय कर लेना चाहिये ।  गौमांस को लेकर भी योगी जी या उनकी पार्टी का ज्ञान अपूर्ण है ।  शायद वे नहीं जानते कि मांस निर्यात पर सरकारी रिपोर्ट क्या कहती है ?  ओएसडीए की सरकारी रिपोर्ट उठाकर देख लीजिये जिसमें कहा गया है कि   2014  में  भाजपा की सरकार केंद्र में आने के बाद के बाद  भारत का मांस का निर्यात बढ़ा है। सन् 2017 में मांस निर्यात को लेकर लोकसभा में सरकार की ओर से कहा गया था कि मांस निर्यात में 17,000 टन की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। यही नहीं, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014-2017 के बीच तीन सालों में बूचड़खानों के लिए लगभग 68 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी ।


देश में मांस का निर्यात [जिसमें गौमांस भी शामिल है ]आज से नहीं बहुत पहले से हो रहा है। मांस कि निर्यात से भारत 4  अरब डालर कमाता है। ये हकीकत है कि  वर्ष 2006 में  मनमोहन सरकार के समय से भारत से मांस के निर्यात में बढ़ोत्तरी आने का जो सिलसिला आरंभ हुआ, वह आज 2024  में नंबर  1 बीफ निर्यातक तक भारत को पहुंचा चुका है। ‘वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन’ की फरवरी, 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार बीफ निर्यात के क्षेत्र में वर्ष 2006 से 2016 के बीच भारत में जबरदस्त बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्ष 2006 में बीफ के विश्व व्यापार में भारत का योगदान महज 2 प्रतिशत था, जबकि 2016 में भारत 20 प्रतिशत से अधिक का भागीदार हो गया! 2022-23 में तो यह और भी बढ़ गया है।ये कांग्रेस ने नहीं भाजपा ने किया है। कोई योगी जी को बता दे कि  वर्तमान में भारत मांस निर्यात में जहां पांचवें नंबर  पर है, वहीं बीफ निर्यात में वह ब्राजील से होड़ करते हुए कभी पहले नंबर पर तो कभी दूसरे नंबर पर होता है।


बहरहाल अभी देश में अठारहवीं लोकसभा कि लिए मतदान कि केवल दो चरण समाप्त हुए हैं। पांच चरण अभी शेष है। इनमें  यदि आदर्श आचरण चुनाव संहिता का सख्ती से पालन न किया गया तो ये चुनाव इस सदी के सबसे दूषित चुनाव होंगे। मुझे 1971  से लेकर 2019  तक के तमाम चुनावों का स्मरण है। मुझे लगता है कि  ये पहला और शायद अंतिम चुनाव होगा जिसमें किसी दल की कोई आदर्श आचार संहिता नहीं है। हर दल कहीं न कहीं ,कम या ज्यादा  इस संहिता की धज्जियां उड़ा रहा है ।  कांग्रेस भी इस दोष से मुक्त नहीं है। बाकी के दलों के बारे में तो कहा ही क्या जाये ? लेकिन केंचुआ ले-देकर कांग्रेस और दूसरे दलों के ऊपर कार्रवाई की चड्डी गांठता है। सत्तारूढ़ दल के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर उसकी रूह कांपती है [ वैसे केंचुआ की कोई रूह बची  नहीं है ] ।


राजधर्म तो कहता है कि  केंचुआ मोदी जी और योगी जी को कम से कम एक चरण के लिए चुनाव प्रचार करने से रोके,प्रतिबंधित करे ।  इस समय में नेतागण आत्मचिंतन करें,स्वाध्याय करें ताकि आने वाले चुनाव प्रचार के समय किसी से कोई गलती न हो। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता ।  केंचुआ राजधर्म से अनभिज्ञ है। केंचुआ के प्रधान कोई शेषन नहीं है। जो है उसे भी सेवानिवृति  के बाद दोबारा से रोजगार हासिल करना है। ये कामना ही सभी को शेषन नहीं बनने देता। इस समय तमाम जिम्मेदारी मतदाताओं के ऊपर ह।  उन्हें जागरूक रहना है ।  अनर्गल भाषणों से प्रभावित नहीं होना है । चाहे वे भाषण कांग्रेसियों के हों या सत्तारूढ़ दलों के नेताओं के। लोकतंत्र को बचने का यही पहला और आखरी उपाय है ।  जागरूकता का कोई विकल्प है ही नहीं।


लोकतंत्र में कोई बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक कोई किसी से कुछ छीन नहीं सकत।  छीनने का अधिकार और शक्ति केवल सत्ता में होती है। सत्ता ही मंगलसूत्र छिनती है,सत्ता ही मंगलसूत्र बांटती है। सत्ता ही आपके नोट रद्दी कर देती है और सरकार ही उनमें प्राण फूंकती है। आज दुनिया में अमरीकी डालर के मुकाबले भारतीय रूपये की जो दुर्दशा है उसके लिए कोई अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक जिम्मेदार नहीं ह।  इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। देश का सोना कोई अल्पसंख्यक या बाहुसंख्यक नहीं बेचता सरकार बेचती है। इसलिए डरना है तो अपने पड़ौसी से मत डरिये । डरिये तो केवल उस सरकार से डरिये जो आततायी है। पक्षपाती है। समदर्शी  नहीं है। बात सबको साथ लेकर चलने की कहती है लेकिन चलती नहीं ह।  सबका विकास करने कीबात करती है किन्तु करती नहीं है। इसलिए जागो !


राकेश अचल 

 
 

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