क्या भाजपा का मिशन 400 पूरा होगा ?

क्या भाजपा का मिशन 400 पूरा होगा ?

स्वतंत्र प्रभात 
 - जितेन्द्र सिंह पत्रकार 
भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए नारा दिया है इस बार 400 पार। इस नारे में कोई विश्वास है या यह सिर्फ नारा ही है। यह समय आने पर पता चल जाएगा। लेकिन यह सत्य है कि पार्टी ने जिस तरह की मेहनत की है तो वह इसकी हकदार है। राजनीति में सबसे बड़ी बात है कि आप किस तरह से जनता तक अपनी बात को पहुंचा सकते हैं। और जनता तक आपकी बात पहुंच जाती है तो हर काम आसान हो जाता है। वकी की गणित तो हर पार्टी लगाती है कहीं धार्मिक मुद्दों पर तो कहीं जातिगत मुद्दों पर। इस चुनाव में ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष बार बार अपने मुद्दों से भटक रहा है। जिन मुद्दों को विपक्ष पांच साल से उठा रहा था वह पूरा समय गठबंधन और टिकट बंटवारे में ही लगा दे रहा है।
 
543 सदस्यों वाली लोकसभा में पिछले 2019 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को 303 सीटें प्राप्त हुईं थीं। यानि कि यदि वह 400 का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं तो उनको 97 सीटें अधिक चाहिए। लेकिन जिस तरह का माहौल दिख रहा है। 2019 के चुनावों का प्रदर्शन भारतीय जनता पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। और इस बार वह इसे भी पार करना चाहती है। इसका मतलब है कि विपक्ष पूरी तरह से साफ हो जाएगा। अभी हाल ही में सम्पन्न हुए मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को जिस तरह से बढ़त मिली है उससे तो यह लगता है कि इन क्षेत्रों में लोकसभा चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिल सकती है। लेकिन वहीं उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल और दक्षिण के राज्यों में उन्हें संघर्ष करना होगा। क्यों कि अपने ही सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पीछे छोड़ना इतना आसान नहीं होता है।
 
 दक्षिण का हिस्सा भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा कमजोर रहा है वहां हर बार क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को ही वोट मिलते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार दक्षिण के किले को फतह करने के उद्देश्य से काफी मेहनत करते दिखाई दे रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने दक्षिण के लिए जो योजना बनाई थी उसके लिए चुनाव की घोषणा से काफी पहले ही अमल में लाना शुरू कर दिया था। प्रधानमंत्री वहां कई रैलियां कर चुके हैं और भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद है कि इस बार दक्षिण भारत में उसे अच्छी सफलता हासिल होगी। लेकिन यह भी सत्य है कि दक्षिण भारत कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ है। क्यों कि हिंदी भाषी राज्यों में तो कांग्रेस काफी नीचे चली गई है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, दिल्ली, और पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय दल कांग्रेस से बहुत आगे हैं। तो यहां भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से ही होना है। हालांकि आम आदमी पार्टी जिसकी दो राज्यों में सरकार है अब राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है लेकिन दिल्ली, पंजाब छोड़कर अन्य राज्यों में अभी वह बहुत पीछे है। 
 
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। और 110 विधानसभा सीटों के साथ में वह प्रदेश में दूसरे नंबर पर है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी से वह बहुत पीछे है लेकिन चुनाव के समय में क्या समीकरण बन जाते हैं यह उसी समय पता चलता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा जाति और धर्म के नाम पर चलती चली आई है और यहां जिसने जातिगत समीकरणों को अच्छी तरह से संजो लिया वह जीत की तरफ आगे बढ़ जाता है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की ऐसी कई राजनैतिक पार्टियों को एनडीए में शामिल करवा लिया है जो एक विशेष वर्ग की राजनीति करती हैं। इनमें अपना दल सोनेलाल, ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा, संजय निषाद की निषाद पार्टी, और राष्ट्रीय लोकदल शामिल है। लेकिन अखिलेश यादव जिस तरह से पीडीए के सहारे चुनाव में आ रहे हैं तो यहां उनको भी कम करके नहीं आंका जा सकता है और उनका कांग्रेस पार्टी से गठबंधन भी है जिससे मुस्लिम मतों को साधने में काफी आसानी होगी। लेकिन मायावती अखिलेश यादव का खेल बिगाड़ सकती हैं। मायावती का दलित वोट किसी हालत में दूसरी जगह नहीं जा सकता और वह सर्वाधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतारतीं हैं। बसपा के इस संयोजन से समाजवादी पार्टी को परेशानी हो सकती है। जिसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है।
 
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति ठीक है लेकिन कांग्रेस और आप के गठबंधन से कुछ फर्क पड़ सकता है। क्यों कि दिल्ली की जनता ने पहले ही यह साबित कर दिया है कि उसे राज्य में केजरीवाल और केंद्र में मोदी सरकार पसंद है। पंजाब हमेशा से भारतीय जनता पार्टी के लिए कमजोर रहा है और वहां भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के सहारे ही चलती आ रही है। इस बार वहां विधानसभा में आम आदमी पार्टी की सरकार है। दूसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी है। तो वहां भारतीय जनता पार्टी को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। बिहार की राजनीति की बात की जाए तो यह पल पल में समीकरण बदलते रहते हैं।
 
नितीश कुमार के फिर से एनडीए में शामिल हो जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी को मजबूती मिली है। लेकिन वहां आज भी आरजेडी को लोग काफी पसंद कर रहे हैं। बिहार में एनडीए में कई दल शामिल हैं जब कि आरजेडी अकेले है तो यहां एनडीए को बढ़त मिलेगी। लेकिन तेजस्वी यादव की लोकप्रियता बढ़ रही है इस बात का भी ध्यान रखना होगा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एक ऐसा नाम है जो राजनीति की धुरंधर खिलाड़ी हैं। यहां भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर की पार्टी है। बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पूरी कोशिश करके देख ली है लेकिन ममता को टक्कर देना वहां इतना आसान नहीं है।
 
अब यदि आंकलन किया जाये तो यदि पिछले पांच वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने कुछ क्षेत्रों में बढ़त बनाई है तो कुछ क्षेत्रों को खोया भी है। अभी हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता में बढ़त हासिल की है तो वहीं कर्नाटक और असम में सत्ता खोई है। ऐसे में बहुत ज्यादा परिवर्तन की उम्मीद नहीं है। हां यह सत्य है कि वह अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा सकती है। माहौल भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में है। गुजरात उनका मजबूत गढ़ है और वहां वह बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।
 
क्षेत्रीय दलों को भी कोई बहुत ज्यादा फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। थोड़ा बहुत ऊपर नीचे ग्राफ हो सकता है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी पांच सीटों से ऊपर पहुंचेगी लेकिन बहुजन समाज पार्टी के लिए राह बहुत कठिन है। पिछले चुनाव में सपा से गठबंधन के कारण बहुजन समाज पार्टी को दस सीटों पर विजय मिली थी परंतु उसी के बाद हुऐ विधानसभा चुनावों में जब बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनाव लड़ी तो केवल एक प्रत्याशी ही जीत सका। हां यह अवश्य है कि बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी का नुक़सान कर सकती है। जिसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को होता नजर आ रहा है।
 
 
 

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