धर्म का उड़ता मजाक
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अपने समय की बोल्ड अदाकारा और बीते समय की बालीवुड टॉप हिरोइन ममता कुलकर्णी ने शुक्रवार को प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा ग्रहण की है। ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े के अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने आध्यात्मिक नाम श्रीयामाई ममता नंद गिरि दे महामंडलेश्वर की उपाधि से सम्मानित किया। किन्नर अखाड़े के इस कदम पर साधु-संतों ने गहरी नाराजगी जताई है। धर्माचार्यों ने किन्नर अखाड़े पर महाकुंभ में धार्मिक परंपराओं का मजाक बनाने का आरोप लगाया है।
ममता कुलकर्णी को किन्नर अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाने पर किन्नर समाज में भी गहरी नाराजगी है। महिला अखाड़े की किन्नर जगद्गुरु हिमांगी सखी ने कहा कि किन्नर अखाड़ा तो किन्नर समाज के लिए बना था। ऐसे में एक गैर किन्नर को कैसे उस अखाड़े से किन्नर महामंडलेश्वर बनाया जा सकता हैं। हिमांगी सखी ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि ममता कुलकर्णी पर अतीत में गंभीर आरोप लगे हैं।
अतीत की जांच किए बिना और परंपरा का पालन किए बिना महामंडलेश्वर जैसे पद पर उन्हें बैठा देना सनातन धर्म का मजाक है। महामंडलेश्वर उपाधि हिंदू धर्म की शैव, वैष्णव, और उदासी संप्रदायों के साधुओं को प्रदान की जाती है। पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में साधु-संत की परंपराओं का विस्तृत विवरण मिलता है। इसमें महामंडलेश्वर जैसे पद का उल्लेख भी मिलता है। यह निसंदेह एक निंदनीय कदम है। यह पूर्ण तौर पर अखाड़ा परंपरा का मजाक उड़ाने जैसा है।
ममता कुलकर्णी का नाम बहुत बड़े ड्रग रैकेट और डी कंपनी तक के साथ जुड़ा रहा है। निसंदेह किसी का भी कभी भी हृदय परिवर्तित हो सकता है, कोई कभी भी आध्यात्म की राह पर चलने के लिए प्रेरित हो सकता। यह सबका अधिकार है परन्तु किसी भी उपाधि को प्राप्त करने से पहले उस उपाधि के लायक खुद को साबित करना पड़ता है। यदि ऐसा नही होता है तो इससे उस उपाधि की गरिमा भंग होती है।
अखाड़े साधु-संतों के संगठन हैं, जो सनातन धर्म की रक्षा और आध्यात्मिक परंपराओं को बनाए रखने का कार्य करते हैं। अखाड़े केवल साधुओं का समूह नहीं हैं, बल्कि वे भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा के महान प्रतीक हैं। महाकुंभ के दौरान अखाड़ों के संतों का एकत्र होना धर्म और संस्कृति के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। महाकुंभ में 13 प्रमुख अखाड़े भाग लेते हैं, जिन्हें मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है - शैव अखाड़े, वैष्णव अखाड़े और उदासीन एवं निर्मल अखाड़े। भारत में एक समय ऐसा था जब विभिन्न मतों और उपासना पद्धतियों के बीच समाज में भटकाव था।
आदिशंकराचार्य ने इस विभाजन को समाप्त करने और धर्म को एकता में बांधने के लिए चार मठों की स्थापना की, इसके बाद उनके शिष्य मधुसूदनानंद सरस्वती ने अखाड़ों की स्थापना की। अखाड़े केवल धार्मिक संगठनों तक सीमित नहीं थे। ये तीर्थ स्थलों और यात्रियों की रक्षा करते थे। इन्हें हिंदू धर्म के धार्मिक सैनिक के रूप में ख्याति प्राप्त है। अखाड़े धर्म और वेदांत की शिक्षाओं को समाज तक पहुंचाने का कार्य करते हैं। अखाड़ों की कुल संख्या 13 है। इनमें 7 शैव अखाड़े जिन्हे सन्यासी अखाड़ा भी कहा जाता है और जो भगवान शिव की उपासना करते हैं।
3 वैष्णव अखाड़े है जो भगवान विष्णु, भगवान राम और भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं। 3 उदासीन अखाड़े, जो सिख धर्म से संबंधित हैं और गुरु नानक देव की शिक्षाओं को बढ़ावा देते हैं। इन 13 अखाड़ों के नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है। इन अखाड़ों में शामिल होने से पहले व्यक्ति अपना पिंडदान और गोत्र त्याग करता है।
मृत्यु के बाद उन्हें भू-समाधि या जल-समाधि दी जाती है। अखाड़ों का सर्वोच्च पद आचार्य महामंडलेश्वर का होता है। वे धार्मिक और आध्यात्मिक नेता होते हैं। वेद, पुराण, उपनिषद और श्रीमद्भागवत गीता जैसे ग्रंथों के विद्वान होते हैं। वे दीक्षा देने और अखाड़े की नीतियों का नेतृत्व करने का कार्य करते हैं।
किन्नर अखाड़ा सनातन धर्म से जुड़ा है । समें शैव और वैष्णव दोनों मत के किन्नर शामिल हैं।किन्नर अखाड़े के सदस्य सनातन मान्यताओं के मुताबिक पूजा करते हैं।किन्नर अखाड़ा, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के अधीन आता है।किन्नर अखाड़े के सदस्य, भगवान विष्णु, शैव संप्रदाय, और गुरु नानक देव जी को भी मानते हैं। किन्नर अखाड़े की स्थापना 2018 में महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने की थी।
महामंडलेश्वर एक सम्मानजनक उपाधि है, जो भारतीय संत परंपरा में विशेष रूप से अखाड़ों के प्रमुख साधुओं को दी जाती है। महामंडलेश्वर शब्द का मतलब होता है 'मंडल (क्षेत्र) का सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता'। हिंदू धर्म के अखाड़ों में महामंडलेश्वर सबसे ऊंचा पद होता है। वैसे तो आध्यात्म और भक्ति के पथ पर चलने के लिए किसी पद की आवश्यकता नही होती परन्तु यदि कोई अखाड़ा किसी को कोई पद देता भी है तो उस व्यक्ति को परखे, उसे ज्ञान दे और उस ज्ञान की परीक्षा ले।
आज कल यू-टयूबर संतो की बाढ आई हुई है। यह पार्ट टाइम संत लोगों की आस्था के साथ खेल रहे हैं, धार्मिक आस्था का मजाक उड़ा रहे हैं। इसी तर्ज पर यदि अखाड़े भी ऐसे संतो को बढ़ावा दे धर्म और आस्था पर चोट करेंगे तो लोगो का विश्वास असली साधु- सन्यासी से भी उठ जाएगा।
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