सॉफ्ट पोर्न और अश्लीलता की आयी बाढ़ में डूब रहा समाज

सॉफ्ट पोर्न और अश्लीलता की आयी बाढ़ में डूब रहा समाज

मोबाइल पर उपलब्ध तमाम सोशल साइट्स हों या ओटीटी प्लेटफार्म्स..इन सब पर इस समय अलग अलग तरीके से अश्लीलता और सॉफ्ट पोर्न कंटेंट की बाढ़ सी आ गयी है..चारों तरफ फैल रही इस अश्लीलता का विरोध यूं तो आपसी बातचीत में हर कोई करता दिख रहा है लेकिन इसके बावजूद भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर दिख रहे अश्लील विज्ञापन से लेकर तमाम शार्ट फिल्मों और रिल्स के जरिये ये बीमारी बढ़ती ही जा रही है।
 
खुलेआम अश्लील रिल्स, विज्ञापनों और वेब सीरीज के जरिये परोसी जा रही अश्लीलता के कारण लोगों में खासकर नई उम्र के युवाओं में पोर्न देखने की आदत में इजाफा हो रहा है और पोर्न देखने की ये आदत युवाओं की मानसिकता को न सिर्फ गंदा कर रही है बल्कि उन्हें हस्तमैथुन जैसी एक्टिविटी की ओर भी धकेल रही है जो आगे चलकर उनकी सेक्स समस्याओं में तब्दील होकर उनके शारीरिक और सामाजिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
 
कौन बन रहा शिकार ?
ऐसा नहीं है कि सॉफ्ट पोर्न के शिकार सिर्फ नई उम्र के लड़के या लड़कियां हो रहे हैं। सॉफ्ट पोर्न के इस मायावी महासागर में हर उम्र और हर तबके के लोग अपने अपने तरीके से डूब रहे हैं.. एक रिपोर्ट के अनुसार ओटीटी और सोशल मीडिया के जरिये आसानी से मोबाइल पर उपलब्ध सॉफ्ट पोर्न के मामले में भारत देश काफी आगे है यानी सरल भाषा मे कहें तो मोबाईल पर पोर्न देखने में भारत के लोग सबसे आगे हैं।
 
क्लिनवेल्ड पीट मारविक गोएरर्डेलर (KPMG) की रिपोर्ट के की मानें तो भारत में सन 2016 से 2020 के बीच ओटीटी के जरिये पोर्नोग्राफिक कंटेंट में करीब 1200% तक कि बढ़ोत्तरी हुई थी और बोल्ड कंटेंट वाले प्लेटफार्म्स की लोकप्रियता का अंदाजा आप 2018 में लांच किए गए एक ओटीटी चैनल 'उल्लू' (ULLU) ऐप की सफलता से भी लगा सकते हैं, इस एप्लिकेशन की ग्रोथ लॉक डाउन के शुरुआती दो महीनों में ही करीब 250% तक बढ़ गयी थी..इसके अलावा इंटरनेट पर मौजूद एक पोर्न बेवसाइट की मानें तो 24 से 26 मार्च 2020 के बीच भारत में उसका ट्रैफिक 95% तक बढ़ा है और उनके दर्शकों में ज्यादातर नई उम्र के बच्चे थे।
 
क्या पड़ रहा असर..?
आधुनिकता भरे इस युग में इंटरनेट और स्मार्टफोन की आसान उपलब्धता ने लोगों के मानसिक और शारीरिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है..मोबाईल और इंटरनेट युवाओं के जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है..इंटरनेट यूँ तो जिंदगी आसान बना रहा है लेकिन इसी इंटरनेट पर ओटीटी और सोशल मीडिया में अडल्ट कंटेंट के जरिये न्यूडिटी, ड्रग्स एब्यूज और वल्गैरिटी को जिस तरह से ग्लैमराइज किया जा रहा है वो सोसाइटी के लिए बहुत खतरनाक होता जा रहा है..ओटीटी पर फैले इस ग्लैमर को देखकर तमाम युवाओं को लगता है कि बस यही जिंदगी है और ऐसे युवाओं का सोशल नेटवर्क भी लगभग लगभग खत्म सा होता जा रहा है।
 
सामाजिक मूल्यों में गिरावट
ओटीटी और सोशल मीडिया पर परोसे जा रहे एडल्ट कंटेंट्स पर अगर आप गौर करेंगे तो एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, टीचर-स्टूडेंट अफेयर के साथ हद से भी नीचे गिरते हुए फैमिली रिलेशनशिप तक को काल्पनिक मोड़ देते हुए बेहद अश्लीलता के साथ दिखाया जा रहा है..आपको फेसबुक, ट्वीटर (X) और इंस्टाग्राम पर तमाम अश्लील पेज, ग्रुप्स के साथ ही इंटरनेट पर वेब सीरीज के तमाम ऐसे एपिसोड मिल जाएंगे जो फैमिली मेंबर्स के एडल्ट कंटेंट पर आधारित हैं..इन्हें देखकर टीनएज बच्चों के मन में इन्हें रियल वर्ल्ड यानी अपने आस पास ट्राई करने की इच्छा बढ़ती है..जिसकी वजह से बच्चे के मन में रिश्तों के प्रति बेहद गलत मानसिकता बन सकती है..!
 
साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर
ओटीटी या सोशल मीडिया पर मौजूद वेब सीरीज के एडल्ट कंटेंट्स काफी एडिक्टिव होते हैं..उन्हें इस तरह से फिल्माया जाता है कि एक एपिसोड खत्म होते ही यूजर यानी दर्शक को आगे का एपिसोड देखने की बड़ी तेज इच्छा होती है और साइकोलॉजी की भाषा में इसे कंल्पशन कहा जाता है यानी ऐसी अवस्था जब व्यक्ति आगे के एपिसोड देखने के लिए मानसिक रूप से बाध्य हो जाता है..स्थित तब और ज्यादा गम्भीर हो जाती है जब नई उम्र के युवा पूरी रात मोबाइल पर स्ट्रीम करते हुए निकाल देते हैं और फिर नींद पूरी न होने के चलते उनको दूसरे साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर होने लगते हैं, जिसका सीधा असर उनके दैनिक जीवन के साथ ही उनकी सामाजिक इमेज पर भी पड़ता है।
 
सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता और लोगों में बढ़ती पोर्नोग्राफी की लत एक तरफ जहां सामाजिक मूल्यों का हनन कर रही है, वहीं दूसरी तरफ ये उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है..!

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