चमचागिरी आखिर कितना जायज है, क्या यह इंसान को महान बनाता है ?

चमचागिरी आखिर कितना जायज है, क्या यह इंसान को महान बनाता है ?

चमचागिरी आखिर कितना जायज है, क्या यह इंसान को महान बनाता है ?


स्वतंत्र प्रभात-
 

सर्वप्रथम सवाल यह है कि क्या चमचागिरी करना हर इंसान के बस की बात है? इसका सीधा सा दो टूक जवाब है - नहीं। इसके बावजूद भी व्यवहार में यह देखा जाता है कि चमचागिरी करने वाले लोग दिन दूना रात चौगुना तरक्की करते हैं और एक सीधा साधा इंसान ईमानदारीपूर्वक कठोर परिश्रम करने के बावजूद भी धरती पकड़ बना रहता है। चमचागिरी शब्द भले चुभने वाला हो, लेकिन है बड़े काम का। ऐसा नहीं है कि चमचागिरी सिर्फ छोटे दफ्तरों में पाए जाते है बल्कि चमचागिरी ने अपना स्थान सड़क से संसद तक बना कर रखा है। चमचागिरी करवाने वाले भी खुश रहते हैं क्योंकि उनको एक मनोवैज्ञानिक सकारात्मक रिलैक्स मिलता रहता है। इससे उनका मूड हमेशा तरोताजा रहता है। चमचागिरी भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपना स्थान जमा कर रखा है।

सबसे अधिक चमचागिरी सरकारी दफ्तरों और राजनीति में पाई जाती है। बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी भी अपने अधीनस्थ कार्यरत कर्मचारी की चमचागिरी से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते रहते हैं। ज्यादा नहीं एक कप चाय पिला देना और हां में हां मिला देना भी अच्छी चमचागिरी कही जा सकती है। अफसर को भी चमचागिरी खूब पसंद है। किसी भी नेता के लिए चमचों की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता। कोई भी नेता बिना चमचों के न केवल अधूरा होता है, बल्कि सच्चाई तो ये है कि चमचों के बिना किसी भी नेता का अस्तित्व ही नहीं होता है। अगर आप इतिहास उठा कर देखेंगे ऐसे भी लोग मिल जाएंगे जो चमचागिरी के बदौलत किसी देश के प्रधानमंत्री बन गए। आरंभ में तो वे सरकार के सलाहकार मात्र थे पर बाद में किस्मत ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि वे प्रधानमंत्री भी बन गए। 

ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को भी चमचागिरी करवाना बहुत पसंद था। यही कारण था कि भारतीय मुंशी अब्दुल करीम महारानी विक्टोरिया की चमचागिरी करते-करते काफी करीब पहुंच गए। अब्दुल करीम आगरा जेल में क्लर्क थे। महारानी विक्टोरिया के खिदमतगार के तौर पर भेजा गया था, लेकिन धीरे-धीरे करीम चमचागिरी के बदौलत उनके सबसे करीबी लोगों की श्रेणी में आ गए। महारानी विक्टोरिया से अब्दुल करीम की नजदीकी इस हद तक बढ़ गई कि वो उनके साथ साए की तरह रहने लगे। एक बार की बात है जब करीम बीमार पड़े तो महारानी विक्टोरिया ने प्रोटोकाल तोड़कर करीम को देखने उनके घर पहुंच गई। करीम की चमचागिरी ने उन्हें इतना महान बना दिया कि हर तरह के विरोध के वावजूद महारानी विक्टोरिया से संबंध ताउम्र जारी रहा।

मोनिका लेविंस्की लेविस एंड क्लार्क कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। एक पारिवारिक दोस्त की बदौलत व्हाइट हाउस में एक प्रशिक्षु के तौर पर काम करने का मौका पाई और अपनी चमचागिरी के बदौलत अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दिल में भी जगह बना ली। आपको बिल क्लिंटन और मोनिका लेविंस्की की लव स्टोरी मालूम ही होगा। ऐसे कई देश हैं जिसके राष्ट्राध्यक्ष अपने अधीनस्थ कार्यरत महिला की चमचागिरी से प्रभावित होकर अपने दिल में सबसे ऊंचा स्थान दिया। आप ध्यान से देखेंगे तो कुछ का मीडिया में दिख जाता है तो कुछ ऐसे छुपे रुस्तम होते हैं जिनको देख तो नहीं सकते बल्कि सिर्फ महसूस कर सकते हैं। ऐसे लोग बहुत जल्दी ही मंत्री बन जाते हैं।

देखिए, चमचागिरी का सिद्धांत है कि आपको कुछ पाने के लिए कुछ खोना या सहलाना तो पड़ेगा ही। अब देखिए न, गाय से दूध चाहिए तो डंडे मारकर दूध तो नहीं दूह सकते। आपको चारा डालना ही होगा और गाय को सहलाना ही होगा। मधुमक्खी के छत्ते से शहद निकालना हो तो छत्ते पर पत्थर नहीं मार सकते। आपको उचित तरीका अपनाना ही होगा। नहीं तो छोटी- छोटी मधुमक्खियां थोड़ी ही देर में आपके चेहरे का शहद निकाल देगी। मधुमक्खियों को कमजोर कभी नहीं समझेंगे।

अगर आपको चमचागिरी करना बुरा लगता है तो आप इसे श्रद्धा का नाम दे सकते हैं। कहने का मतलब है कि आप किसी अधिकारी को पानी पिला दें और यह कहे कि मेरी इनके प्रति दिल से श्रद्धा है तो ज्यादा अच्छा होगा। श्रद्धा और चमचागिरी को घालमेल नहीं करें। दोनों अलग-अलग चीज है। चमचागिरी इसलिए की जाती है ताकि भविष्य में उसका लाभ उठाया जा सके जबकि श्रद्धा का मतलब यह होता है कि आप खुशी से, किसी की सेवा भाव से मुफ्त में बिना किसी अपेक्षा के उसकी सेवा कर रहे हैं। अगर आप मंदिर में गरीबों को भोजन करा रहे हैं तो यह आपकी श्रद्धा है जबकि आमतौर पर दफ्तरों में अधिकारी को खिलाना पिलाना, हां में हां मिलाना, येस सर, येस सर कहते रहना चमचागिरी माना जाता है। अपने अधीनस्थ कर्मचारी से बात-बात में येस सर, येस सर सुनने वाले अधिकारी कुछ दिन में अपने आप को बहुत बड़ा ज्ञानी समझने लगते हैं। घर में बीबी से झगड़ा और ऑफिस में येस सर का सम्मान किसी पद्मश्री से कम थोड़े ही होता है। ऐसे लोग ऑफिस में देर शाम तक काम करते नजर आ जाएंगे। ये कहने वाली बात नहीं है बल्कि सभी को समझ में आती है। चाहे चपरासी हो, अधिकारी हो या मंत्री हो।

बड़े-बड़े राष्ट्राध्यक्षों के आसपास जितने लोग होते हैं उनमें ज्यादातर लोग अपनी चमचागिरी की बदौलत टिके होते हैं और कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि राष्ट्राध्यक्ष और करीब वाले विपरीत लिंग के लोग अपनी चमचागिरी के बदौलत इतने करीब हो जाते हैं कि उनकी दोस्ती विश्व प्रसिद्ध हो जाती है। ऐसा अक्सर होता है और ऐसे तमाम उदाहरण देखने को मिल सकते हैं। महान नेल्सन मंडेला और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन भी चमचागिरी से प्रभावित रहे हैं। पुतिन अपनी शादी के समय से ही कई महिलाओं से लव अफेयर की चर्चा रही। 31 साल की जिम्नास्ट एलिना काबेवा की चमचागिरी ने पुतिन पर इतना हावी हुआ कि पुतिन ने खुलेआम अपनी मोहब्बत को स्वीकार भी किया। पुतिन के साथ वह राजनीति में भी सक्रिय रही। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि स्वेतलाना क्रिवोनोगिख नाम की एक महिला सफाई कर्मचारी की चमचागिरी ने पुतिन के इतने करीब ला दिया कि दोनों की एक बेटी भी है।  अब ये महिला सफाई कर्मचारी नहीं बल्कि 700 करोड़ की मालकिन बन गई है। ऐसी चमचागिरी एक साधारण इंसान को इतना महान बना देता है कि राष्ट्राध्यक्ष को अपने मंत्रिमंडल में स्थान देने में कोई हिचक नहीं होती है। आप थोड़ा ध्यान से अध्ययन करेंगे तो ऐसे चमचे मंत्री बहुत मिलेंगे।

देखिए, प्राइवेट सेक्टर में हर दफ्तर में एक बॉस होता है। उसके कुछ खास लोग होते हैं। जो खास नहीं होते हैं उनको खामियाजा भुगतना पड़ता है। इसका मूल कारण होता है बॉस, हमेशा अपने चमचों को बढ़ावा देते हैं। ऐसे में जो लोग नजदीकी नहीं बना कर रखते है, उन्हें प्रमोशन में भेदभाव झेलना पड़ता है। उन्हें तनख्वाह भी कम मिलती है। उन्हें मुश्किल काम मिलते हैं। 

एंड्रयू डियरग वाइटमैन एक स्कॉटिश स्वतंत्र राजनेता हैं और एक लेखक व शोधकर्ता भी हैं। वे कहते हैं कि आप बॉस को बॉस के बजाय अपना ग्राहक समझकर काम करेंगे तो आपकी राह आसान हो जाएगी। इससे सारी ताकत आपके पास होगी। आप फैसले करने की हालत में होंगे। आपको समझना होगा कि आप कंपनी के लिए काम कर रहे हैं और कंपनी के लिए काम करते वक्त अपने ग्राहक को खुश रखना आपकी जिम्मेदारी है। अगर आप बॉस को ग्राहक समझेंगे तो उन्हें हमेशा खुश करने की कोशिश करेंगे। बॉस के नजदीकी से दोस्ती बढ़ाइए और खुलेआम बुराई नहीं करिए।

मुगलकाल में भी चमचों की कमी नहीं थी। महान अकबर के दरबार में भी चमचों की कमी नहीं थी। यहां तक कि नवरत्नों में भी चमचों की पैठ थी और इन चमचों से अकबर प्रभावित होता रहता था। अंग्रेजों के काल में भी तमाम चमचे अंग्रेजों की चमचागिरी करते मिल जाएंगे। इससे अंग्रेज खुश भी होते थे और चमचों को तमाम तरह के राष्ट्रीय अलंकरणों से अलंकृत भी करते रहते थे। 

अगर जिन्दगी में रॉकेट की गति से भी तेज गति से तरक्की करना चाहते हैं तो चमचागिरी करने की स्मार्ट कला सीखनी होगी। सोच ऊंचा रखें और दिल से खुल कर चमचागिरी करें आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। चमचागिरी एक प्रकार का शिष्टाचार है जिसके बदौलत आप सब कुछ पा सकते हैं परंतु जिस स्तर का सोच रहेगा उसी स्तर की उपलब्धियां हासिल होगी। कोशिश करें अपनी सोच को हमेशा हाई लेवल पर रखें। 

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि हमेशा ऊंची सोच रखो। विश्वास कीजिए ऊंची सोच आपको हमेशा आगे की ओर ले जाएगी। ऊंची सोच के साथ की गई चमचागिरी वाकई में आपको तेजी से महान बनाएगा। हालांकि दुनिया में महान तीन तरह के लोग होते हैं। एक पैदाइशी महान होते हैं। दूसरा मेहनत करके महानता हासिल करते हैं और तीसरा वो लोग होते हैं जो महान तो नहीं होते हैं बल्कि ऊंचे घराने में पैदा लेने की वजह से उनपर महानता थोप दी जाती है। अगर आप मेहनत करके महानता हासिल करना चाहते हैं तो तीव्र तरक्की के लिए चमचागिरी जरुरी होता है।

चमचागिरी की इतनी महान खासियत के बावजूद दुनिया में कुछेक ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने उसूलों और स्वाभिमान से समझौता नहीं कर पाते हैं। आपको लगेगा ऐसे लोग जिन्दगी के सफर में असफल हो जाते होंगे। जी नहीं। दरअसल सच्चाई यह है कि जलधारा के अनुकूल चलने वाले लोग ज्यादातर जल्दी सफल होते हैं और जल्दी ही समुद्र के मुहाने के रास्ते समुद्र में प्रवेश करके विलीन भी हो जाते हैं पर कुछेक लोग जलधारा के विपरित चलकर और तमाम बाधाओं को पार करके वहां तक पहुंच जाते हैं जहां तक की कल्पना भी आम लोग या चमचागिरी वाले लोग नहीं कर पाते हैं और यहीं लोग असली शेर कहलाते हैं। भावी पीढ़ी ऐसे ही शेरों से प्रेरित होते हैं। यही स्वाभिमानी लोग असली इतिहास बनाते हैं। सैकड़ों उदाहरण आपको इतिहास की किताबों में मिलेंगे। महाराणा प्रताप को ही देख लिजिए न। वो कभी स्वाभिमान से समझौता नहीं कर सके। रानी लक्ष्मीबाई उसूलों की पक्की थी।

अंतिम बात यह है कि आपको बनना कैसा है? आप अपने दिल से पूछिए कि क्या वह चमचागिरी करके आगे बढ़ना चाहता है। यदि हां। तो आगे बढ़ें और जल्दी से तरक्की करें या आपका स्वाभिमान रोकता हो तो रुके और बाधाओं से लड़ें और ऐसा महान बनें कि इतिहास में आपका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो ना कि चमचागिरियों की सूची में।

(ये लेखक के अपने विचार हैं। लेखक कार्मिक मंत्रालय, भारत सरकार, नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी हैं)

कृष्ण कुमार (भूगोल ऑनर्स)

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