सुप्रीम अदालत ने क्यों कहा कि सीबीआई की निष्पक्षता दिखनी चाहिए
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सीबीआई भारत की सर्वोच्च जांच एजेंसी है और जब भी कोई बड़ी होती है तो उसकी जांच सीबीआई के द्वारा ही कराई जाती है या कराए जाने की मांग होती है। खासकर भ्रष्टाचार और अति गंभीर मसलों में सीबीआई की जांच आवश्यक हो जाती है। पिछले कुछ समय से देश में सीबीआई समाचारों में छाई रहती है और इसका काम भी बढ़ता दिखाई दे रहा है। इसका सीधा मतलब यह है कि देश में भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर मामलों में वृद्धि हुई है। तभी सीबीआई का कार्य भी बढ़ा है। खासकर विपक्षी दलों के लोग सीबीआई के चंगुल में फंसे नजर आ रहे हैं। विपक्षी दल बार-बार चिल्ला रहे हैं कि केंद्र सरकार सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है। लेकिन सरकार का कहना है कि सीबीआई एक स्वायत्त संस्था है और सरकार उनके कामों में दखलंदाजी नहीं देती है। लेकिन फिर भी सीबीआई जांच में बीच-बीच में सवाल उठते रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के तमाम नेता सीबीआई जांच के दायरे में चल रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी भी हुई जिनमें सतेंदर जैन, मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह शामिल हैं। देश में अन्य पार्टियां भी हैं जिनके नेता भी सीबीआई जांच के दायरे में हैं। आम आदमी पार्टी की बात करें। तो संजय सिंह को बड़ी जल्दी जमानत मिल गई। जब कि मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल को कुछ ज्यादा समय लगा। जब कि सतेंदर जैन अभी भी जेल में हैं और उनको जमानत नहीं मिली है। अब सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट को यह क्यों कहना पड़ा कि सीबीआई को निष्पक्ष होने के साथ-साथ निष्पक्ष दिखना भी चाहिए। यह प्रश्न शाय़द सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष की उन आरोपों के ऊपर दिया है जिसमें विपक्ष बराबर कह रहा है कि सीबीआई केन्द्र सरकार के तोते की तरह कार्य कर रही है। और जो नेता जांच से बचना चाहता है वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाता है क्योंकि केन्द्र में सरकार भारतीय जनता पार्टी की ही है।
सीबीआई को लेकर भारतीय जनता पार्टी सरकार और विपक्षी दलों में जमकर तकरार हो रही है। लेकिन लोकतंत्र में में यह जायज़ है। सीबीआई भले ही कितनी भी स्वतंत्रता से कार्य करे लेकिन वह आती तो केन्द्र सरकार के आधीन ही है। इसलिए विपक्ष को कहने का और मौका मिल जाता है। आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि सीबीआई को अपनी निष्पक्षता दिखानी होगी। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि सीबीआई निष्पक्ष नहीं है। इसका मतलब यह है कि वह निष्पक्ष तो है लेकिन अपनी निष्पक्ष कार्यशैली को उसे दर्शाना भी होगा। जिससे कि विपक्षी दल जो बार-बार सीबीआई पर आरोप लगा रहे हैं उन आरोपों से वह बच सके। जस्टिस भुइयां ने सीबीआई को देश की एक प्रीमियर जांच एजेंसी बताया है और कहा कि जनहित में उसे न सिर्फ निष्पक्ष होना होगा बल्कि निष्पक्षता दिखानी भी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई को ऐसी धारणा दूर करने का प्रयास करना होगा कि जांच निष्पक्ष रूप से नहीं की गई थी इसके अलावा गिरफ्तारी, दमनात्मक और पक्षपात पूर्ण तरीके से की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित एक क्रियाशील लोकतंत्र में यह धारणा बेहद मायने रखती है, इसलिए जांच एजेंसी को ईमानदार होने के साथ-साथ ईमानदार दिखना भी चाहिए।
यह बात सच है कि ऐसे तमाम नेता हैं जिनपर गंभीर आरोप थे और वह कभी भी सीबीआई जांच के दायरे में आ सकते थे लेकिन भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद वह जांच से बच गए। यह आरोप विपक्ष लगातार उठा रहा है और सुप्रीम कोर्ट से इसमें हस्तक्षेप भी करने को कह रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट सरकार के हर कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है लेकिन जो मामले उसके सामने रखे जाएंगे उस पर वह जरूर सरकार को आदेश दे सकती है। बरहाल सीबीआई को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष की बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। अरविंद केजरीवाल के मामले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की थी कि यदि उन्हें जमानत मिल जाती है तो उससे जांच प्रभावित हो सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि किसी को भी बिना आरोप सिद्ध हुए ज्यादा दिनों तक जेल में रखना स्वतंत्रता का माखौल होगा।
लेकिन सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट की इस दलील पर इतना तो प्रतिबंध लगा ही दिया कि अरविंद केजरीवाल एक मुख्यमंत्री के रुप में स्वतंत्र होकर कार्य नहीं कर सकेंगे और शराब मामले में तो बिल्कुल ही नहीं। अब देखना है कि सीबीआई अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध किस तरह के सबूत पेश करती है जिससे कि वो गुनेहगार साबित हो सकें। लेकिन कल जो सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई सीबीआई के लिए जो टिप्पणी की है वह कई मायनों में सीबीआई के लिए अहम है। और निश्चित ही सीबीआई को अपनी निष्पक्षता बरकरार रखने के साथ साथ उस निष्पक्षता को दर्शाना भी होगा ताकि वह लोगों के विरोध पर विराम लगा सके।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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