सब कुछ छोडो,मणिपुर जोड़ो

सब कुछ छोडो,मणिपुर जोड़ो

ये देश के लिए दुर्दिन है ।  संकट के काळा बादल भीतर-बाहर लगातार मंडरा रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य ये की हम और हमारे भाग्य विधाता राजनीति में ही उलझकर रह गए है।  माणिपुर से फिर दिल तोड़ने वाली ' ब्रेकिंग न्यूज ' आई है ।  राज्य में आतंकियों द्वारा दो छात्रों की हत्या के बाद मणिपुर की आ फिर भड़क गयी है ।  सरकार ने एक बार फिर से माणिपुर में नागरिक आजादी का एसबीएस बड़ा औजार ' इंटरनेट ' पांच दिन के लिए बंद कर दिया है।

देश का कायाकल्प करने के लिए वचनबद्ध हमारी सरकार मणिपुर को अकेला छोड़कर पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में उलझी हुई है ।  उलझी हुई है कनाडा से,उलझी हुई है पंजाब में खालिस्तानियों से।यानि हर दिन एक नयी उलझन का सामना करना पड़ रहा है ।  इन उलझनों के चलते देश न जी-20  की कथित कामयाबी का जश्न मना पाया।  न सनातन विरोधियों से निबट पाया ,न नारी शक्ति  वंदन  क़ानून संसद से पारित होने के बाद आतिशबाजी हो पायी। उपलब्धियों के अनार,चकरियां ,राकेट सबकी बारूद गीली हो गयी है। भाग्य विधाता परेशान हैं की आखिर ये सब हो क्या रहा है ?

दरअसल केंद्र ने मणिपुर की आग  बुझाने में जिस हिकमत अमली की जरूरत थी उसका इस्तेमाल किया जाना था वो किया ही नही।  सरकार ने मणिपुर की समस्या को सुलझाने के लिए सबको साथ लिया ही नही।  विपक्ष वहां गया तो उसकी आलोचना की। विपक्ष के अनुभवों का इस्तेमाल करने में सत्ता पक्ष ने अपनीइ हेठी समझी ,नतीजा नो दिन चले अढ़ाई कोस जैसा हो गया ह।  मणिपुर रह-रहकर सुलग रहा है ।  वहां की जनता को सुरक्षा  और शान्ति की गारंटी देने वाला देश में कोई है नहीं ,हालाँकि हमारी सरकार इन दिनों मप्र,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में दिन -रात ' मोदी  गारंटी ' बाँट रही है । 

 दोनों हाथों से बाँट रही है।
अधजले मणिपुर में  एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। इंफाल घाटी में अज्ञात हमलावरों द्वारा दो छात्रों की हत्या के विरोध में मंगलवार को इंफाल में सैकड़ों छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान सुरक्षा बलों के साथ झड़प में लड़कियों सहित कम से कम 34 छात्र घायल हो गए। बिगड़ते हालात को देखते हुए मणिपुर सरकार ने अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाओं पर फिर से प्रतिबंध लगा दिया।अब मणिपुर के लोग 1  अक्टूबर  तक इंटरनेट सेवाओं का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। राज्य सरकार यहां पूरी तरह नाकाम हुई है ।  वो जनता से संयम बरतने की अपील करने के अलावा  और कुछ नहीं कर पा  रही है। सरकार के दोनों इंजन फेल हो चुके है।

देश में पहली बार सियासत सेवा का नहीं गारंटी का उत्पाद परोस रही है ।  पहले गारंटियां साबुन,सोडा,मशीन ,पंखों के खरीदारों को दी जाया करतीं थी ।  अब ये गारायल्टी सरकार की और  से परोसी जा रहीं है।  अधिसूचनाओं और अध्यादेशों के जरिये नहीं कार्यकार्ताओं के महाकुंभों के जरिये गारंटी  वितरण अभियान चल रहा है। अकेले जिस पार्टी  की जहां  सरकार है व्हाना  गारंटी दी जा रही है ।  कांग्रेस ने सेवा गारंटी देकर कर्नाटक में सरकार बनाई  तो उसी की नकल कर मध्यप्रदेश में सरकार चला रही भाजपा और सरकार बनाने  के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस ने भी जनता के बीच  गारंटियां  देना  शुरू  कर दिया।राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी इन दिनों गारंटियों का मौसम है। हर राजनितिक दल गारंटीड सेवा का ऑफर दे रही है।

सियासत का गारन्तुई देना इस बात का प्रमाण देता है की अब सियासी लोगों की विश्वसनीयता का पानी उत्तर चुका है। प्रधानमंत्री  से लेकर राज्यों में मुख्यमंत्री तक भरोसेमंद नहीं रहे है।  जनता भी अब बिना गारंटी  लिए शायद जनादेश देने को राजी नहीं है ।  जनता को पता है
 कि  सियासी दल जनादेश की कैसी ऐसी-तैसी करते है।  कैसे जनादेश  को खरीदते ,बेचते  है।  यानि सियासत ने जनादेश को भी एक बाजारू प्रोडक्ट बना दिया है।स्थिति ये है की अब चुनाव नेताओं कि चेहरे दिखाकर  नहीं गारण्टी देकर लड़े  जा रहे हैं। हैरानी की बात ये है की मणिपुर को शान्ति की गारंटी कोई नहीं दे रहा। न दिल्ली  की सरकार दे रही है और न मणिपुर की सरकार।  सरकार कि पास  शांति  नाम  के प्रोडक्ट की कोई गारंटी नहीं है।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ ही अगले  साल  होने वाले  आम  चुनावों की तैयारिओं  में उलझी देश की मजबूत  सरकार के पास मणिपुर में स्थाई  शांति लाने  के इंतजाम  करने की फुर्सत  नहीं है ।  चुनावी राज्यों में हर हफ्ते  मंडराने  वाली शक्तिशाली आत्माएं मणिपुर की और पांव करके भी नहीं सोतीं ।  मणिपुर का सपना  भी इन महात्माओं  की आँखों में प्रवेश नहीं कर सकता ।  इन सबके  लिए मणिपुर से महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश और दिल्ली है। मणिपुर जलता  है तो जल  जाये लेकिन मध्य प्रदेश,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना बच जाय। क्योंकि  आगामी  सरकार मणिपुर से नहीं इन्हीं  मैदानी  राज्यों की जनता की कृपा   से बनना  और बिगड़ना  है। डबल इंजन की सरकार मणिपुर को ही  नहीं किसी  भी प्रदेश को नहीं बचा पा रही।  डबल इंजन की सरकार वाला हरियाणा  जला  या   नहीं ? मध्यप्रदेश में जिस दिन प्रधानमंत्री जी सरकारी  पार्टी  के कार्यकर्ताओं  के महाकुम्भ  को सम्बोधित   करने गए थे उसी के अगले दिन   मध्यप्रदेश  में ग्वालियर जल उठा ।  ओबीसी की भीड़ ने शहर की क़ानून   और व्यवस्था  को ठेंगे  पर रखकर  ऐसा तांडव मचाया की जनता घरों में दुबक गय।  सैकड़ों सरकारी  और निजी   वाहनों  के शीशे   चकचूर   कर दिए गए ,लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे देखता रहा।

कोई माने  या न माने  लेकिन हकीकत  ये है कि  इस समय  देश के मैदानी  राज्यों से कहीं   ज्यादा  गारंटी की जरूरत  मणिपुर को है ।  सरकार को चाहिए  कि  वो सब कुछ छोड़कर मणिपुर पर ध्यान दे ।  मणिपुर की जनता को सुरक्षा की गारंटी दे,इंटरनेट की गारंटी दे। कनाडा  में रहने वाले  सिखों  को गारंटी दे ।  गारंटी की जरूरत पंजाब कि सिखों  को भी है क्योंकि पंजाब  में रहने  वाले असंख्य   सिख  परिवारों कि बच्चे  कनाडा में रहते  हैं और सरकार ने कनाडा कि साथ फिलहाल अपने  वीजा  प्रतिबंध बढ़ा दिए है।  दूतावासों को लगभग  बंद सा  करा  दिया है।
@ राकेश  अचल

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