तहसील लखीमपुर में हुए एक बड़े फर्जी वाडा एवं भ्रष्टाचार का होगा शीघ्र पर्दाफाश
यदि मामले की कराई गई साक्ष्यों पर आधारित निष्पक्ष जांच तो कई राजस्व कर्मियों समेत जिम्मेदार अफसर व दबंगों सहित उनके गुर्गो को जाना पड़ सकता है जेल
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खतौनी व राजस्व अभिलेखों में छेड़छाड़ करके राधा कृष्ण मंदिर के नाम दर्ज जमीन के किए गए फर्जी, जाली, व साजिशी बैनामों में क्रेता विक्रेता सहित गवाहनों एवं बैनामा लेखक भी होंगे सलाखों के पीछे जीतू माथुर
स्वतंत्र प्रभात
लखीमपुर खीरी मामला राधा कृष्ण मंदिर खीरी पट्टी रामदास से जुड़ा है। जहां मंदिर के सर्वराकार की मृत्युपरान्त नियम कानून को ताक पर रखकर सरवराकार के पुत्र के नाम दर्ज कर दी गई विरासत। आखिर किसके आदेश से हटाया गया खतौनी से राधा कृष्ण मंदिर व सरावरकारी का नाम आज भी अहम सवाल बना हुआ है। इस रहस्य का खुलासा करने में तहसील प्रशासन के जिम्मेदार नाकाम साबित दिखाई पड़ रहे हैं।
बताते चलें प्रदेश में एक मठ का मठाधीश सुबे की सरकार का मुखिया होने के बाद भी मंदिरों की जमीनों पर दबंगों द्वारा छल कपट पूर्ण ढंग से कब्जा करके मंदिर की पर संपत्तियों की बिक्री करने तथा मंदिर राधा कृष्ण के नाम पर राजस्व अभिलेखों में दर्ज सैकड़ो बीघा जमीन की बिक्री की जा रही है। जिससे प्रदेश भाजपा सरकार व प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के लिए कहां तक सम्मान की बात व भ्रष्टाचार मुक्त उत्तर प्रदेश के योगी दावों के लिए हो सकता है। इतना ही नहीं राधा कृष्ण मंदिर के आवासीय परिसर के अंश यानी 42 00 वर्ग फिट जमीन की बिक्री कर डालने का मामला जन चर्चा का विषय बना है ।उससे ज्यादा चर्चा का मामला क्षेत्रीय लेखपाल रमाकांत मिश्रा व खीरी चौकी पुलिस के साथ रात के अंधेरे में जाकर दबंग व कथित भूमि माफिया आफताब खान को अवैध कब्जा दिलवाने की हो रही है।
जिसमें क्षेत्रीय लेखपाल को लाखों रुपए देने की बात चर्चा का विषय बनी है ।इसलिए हम आज आपको राधा कृष्ण मंदिर की जीणृ शीण अवस्था और सैकड़ो बीघा जमीन वाले मंदिर में आज तक चुना नहीं लगायें जाने की हकीकत से रूबरू कराने कस्बा खीरी के पट्टी रामदास ले चलता हूं। जहां मंदिर की जमीन को बेचकर जिम्मेदारों द्वारा अपनी हालत तो सुध ली गई लेकिन मंदिर आज भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते दिखाई पड़ रहा है। सौंदर्य करण तो दूर की बात। कुछ जानकार लोगों और वसीयत के अनुसार कस्बा खीरी टाउन के मोहल्ला पट्टी रामदास में आजादी के समय का एक प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर व ठाकुर जी का मंदिर स्थापित है।
इस मंदिर में राधा कृष्ण की मूर्तियां स्थापित हैं। और इस प्राचीन भव्य राधा कृष्ण मंदिर के नाम सैकड़ो बीघा कृषि योग्य जमीन व काफी मंदिर परिसर की जमीन दर्ज कागजात रिक्तपडी है। उक्त जमीन के पहले सर्वराकार कृष्ण मोहन माथुर थे ।और उन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व वसीयत के आधार पर महेश चंद्र माथुर को अपने जीवन काल में ही सरवराकार नियुक्त कर दिया था ।और उसके बाद जब महेश चंद्र माथुर उक्त मंदिर की पर संपत्तियों को देख रेख करने लगे। इसी समय इसका अनुचित लाभलेने की मंशा से छल कपट पूर्ण ढंग से मंदिर की पर संपत्तियों को हथियाने की मंशा से खतौनी से राधा कृष्ण मंदिर सरवराकारी हटवाने का प्रयास करने लगे।
और लेनदेन करके व अपनी मंशा में सफल भी हो गए। ऐसा जानकार लोगों का कहना है ।और मंदिर की अधिकांश भूमि की बिक्री करके मंदिर की पर संपत्तियों को छिन्न-भिन्न करके रख दिया। इस खेल में महेशचंद माथुर के सगे भतीजे भी शामिल रहे ऐसा कस्बा बासियों का आरोप है। महेश माथुर ने कस्बा के एक बहुचर्चित दबंग अल्पसंख्यक के साथ साठगांठ करके बिना विक्रय करने के विधिक अधिकार के 4200 वर्ग फुट मंदिर परिसर की जमीन वर्ष 2015 में आफताब खान के हाथों बिक्री कर दी ।जिसकी भनक तक किसी को नहीं लगने दी। यदि इसे हम आबादी की जमीन मान ले तो यह जमीन खतौनी एन जेड ए में सुजीत माथुर संजय माथुर सुधीर माथुर के नाम दर्ज कागजात है।
इस बिना पर भी जमीन की बिक्री करने का अधिकार महेश चंद्र माथुर को नहीं है। और यदि जमीन मंदिर राधा कृष्ण की है तो भी सरवराकार को जमीन बेचने का अधिकार नहीं है ।दूसरा कारण यह यदि तर्क के साथ हम माने की कुछ अंश महेश चंद्र माथुर का है भी तो जब तक समिल्लित भाग का किसी न्यायालय द्वारा बटवारा नहीं हो जाता तब तक बिक्री नहीं किया जा सकता। तो फिर कैसे और किस सक्षम अधिकारी के आदेश से हो गयाउक्त जमीन का बैनामा। और दाखिल खारिज । उक्त विक्रीत भाग नगर पंचायत में उषा माथुर आदि के नाम दर्ज बताया जाता है। जबकि आजादी के बाद बनी पहली खतौनी में उक्त जमीन राधा कृष्ण मंदिर के नाम दर्ज कागजात बताई जाती है।
अहम सवाल यह है जब उक्त जमीन राधाक्रष्ण मंदिर के नाम राजस्व अभिलेखों व सी एच41 और 45 में दर्ज है। तो राजस्व अभिलेखों में से राधा कृष्ण मंदिर सरवराकारी कैसे और किस सक्षम न्यायालय के आदेश से हटाया गया ?और सरवराकार महेश चंद्र माथुर की मृत्यु के बाद किस नियम के तहत शरद माथुर के नाम बरसात दर्ज कर दी गई ?जबकि नियमानुसार सरवराकार नियुक्त करने का अधिकार जिला न्यायालय को है और रिसीवर नियुक्त करने का अधिकार उप जिला अधिकारी को बताया जाता है। क्षेत्रीय लेखपाल और कानून को उक्त अधिकार प्राप्त नहीं है। तो वरासत किस आधार पर दर्ज की गई इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर किसी भी सक्षम अधिकारी के पास ढूंढे नहीं मिल रहे हैं।
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