हमारी सोच से आगे महिलाएं, वैचारिकता बदलनें की दरकार। 

हमारी सोच से आगे महिलाएं, वैचारिकता बदलनें की दरकार। 

निश्चित तौर पर भारत में महिलाओं की मुक्ति तथा सशक्तिकरण का प्रश्न स्वतंत्रता एवं भारत की मुक्ति के साथ अनिवार्य रूप से जुड़ गया हैlनिश्चित तौर पर हर रात की सुबह होती है, और सुबह चमकदार और उजाले से भरपूर होती हैl  स्वतंत्र काल से जुड़ी हुई महिला सशक्तिकरण की यात्रा आज तक अनवरत जारी हैl अब महिलाओं को कमजोर या असक्त समझने की भूल मत करिए और अपने विचारों को नयेपन की खिड़की से ताजी हवा दीजिए, महिलाओं को सुविधाएं मिले या ना मिले अधिकार मिले या ना मिले वे अपने प्रयासों से समाज में धीरे-धीरे अपना अहम स्थान बनाते जा रही हैं।
 
आज भी महिलाएं सामाजिक राजनीतिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक सभी मोर्चों और सवालों पर पुरुषों के समकक्ष संघर्ष करती नजर आ रही हैl आज राष्ट्र निर्माण में नारी अपनी भूमिका से न केवल परिचित है बल्कि उसकी गंभीर जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए भी तत्पर व सक्षम हैl वर्तमान में भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैl भारत विकास की दर आज बड़ी से बड़ी वैश्विक शक्ति से टक्कर लेने की जद पर हैl
 
विकास की गाथा में देश की आधी आबादी यानी महिलाओं की भूमिका बढ़ती जा रही हैl अनेक सामाजिक आर्थिक विसंगतियों के बावजूद आज हर मोर्चे पर महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होती दिखाई दे रही हैl यह आत्मविश्वास उन्हें सदियों के संघर्ष के बाद हासिल हुआ है, प्राचीन काल में अपाला तथा गोसा जैसी विदुषी महिलाओं ने अपनी कीर्ति पताका फैलाई थी, भारतीय समाज में उन्हें सम्मान और बराबरी का दर्जा दिया गया है ,परंतु मध्यकाल में भारत अपनी संकुचित एवं संकट दृष्टि का शिकार हो गया था महिलाओं को घर की चारदीवारी में क्या होना पड़ा थाl
 
इसी के साथ कैद हो गई थी उनकी योग्यता,ऊर्जा,शक्ति, आकांक्षाएं और व्यक्तित्व विकास की संभावनाएंl भारत एवं भारत के बाहर विदेशों में भारतीय मूल की ऐसे सैकड़ों महिलाएं हैं जिन्होंने भारत देश का नाम रोशन किया है उनके नाम की सूची बड़ी लंबी है उनका उल्लेख न करते हुए समग्र रूप से उनका नमन करते हुए यह बताना चाहूंगा कि महिलाएं निरंतर उच्च पदों पर आसीन हो रही है इन सब के साथ सबसे पुराने बजट तथा घर के अर्थशास्त्र को संभालने की भूमिका का भी कुशलतापूर्वक सदियों से प्रबंधन करती आ रही हैl
 
इसके साथ ही वे अपनी शैक्षणिक योग्यता में निरंतर सुधार कर रही है जनसंख्या गणना के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं, महिलाएं जहां शिक्षा, प्रशासन,मेडिकल क्षेत्र, इंजीनियरिंग, स्पेस रिसर्च, विज्ञान टेक्नोलॉजी और उद्यानिकी ,एग्रीकल्चर, सेरीकल्चर और तमाम क्षेत्रों में असाधारण रूप से शिक्षा प्राप्त कर प्रगति कर रही और उच्च पदस्थ होकर कार्यों का कुशलता से संपादन कर रही हैंl सामाजिक कुरीतियों के विरोध में समाज को आगाह करने और उसका विरोध करने में भी महिलाएं पीछे नहीं है, फिर चाहे वह शनि सिंगनापुर हाजी अली दरगाह या तीन तलाक के मामले में इनकी सजगता ने सामाजिक परिवर्तन लाया है।
 
सरकार भी इनकी इस भूमिका को स्वीकार करते हुए थल जल और वायु सेना में युद्धक की भूमिका मैं इनकी नियुक्ति कर रही है। हम यदि राजनीतिक क्षेत्र की चर्चा करें तो पंचायती स्तरों पर महिला प्रधानों ने गंभीर परिवर्तन के प्रयास किए, किंतु हमें यहां हमेशा स्मरण रखना चाहिए की देश के आर्थिक विकास में अभी भी महिलाओं को वह भागीदारी व सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसके लिए वह पूर्णरूपेण हकदार है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया की श्रम बल भागीदारी में महिलाओं की भागीदारी 25% से भी कम हो गई है।
 
महिलाओं को अनेक सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को समान पदों पर कार्यरत पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है तथा अधिकांश शीर्ष पदों पर पुरुषों का कब्जा है के अलावा दुनिया की सबसे कम तनखा वाली नौकरियों में 60% महिलाएं ही हैं। महिलाओं द्वारा अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए कार्यस्थल पर कार्य करते हुए देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
 
इन परिस्थितियों में महिलाओं द्वारा दिए गए सामाजिक आर्थिक विकास के योगदान को पहचानते हुए सरकार ने मातृत्व लाभ अधिनियम 2016 तथा यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 के माध्यम से अनुकूल वातावरण तथा महिलाओं को मातृत्व अवकाश देने के कई अच्छे प्रावधान भी उपलब्ध कराए हैं। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड अपने आंकड़ों से स्पष्ट करता है की किस प्रकार महिलाओं की श्रमबल में अधिक भागीदारी जीडीपी में अप्रत्याशित वृद्धि करता है।
 
पूरा विश्व इस बात से सहमत है की महिलाएं कोमल है पर कमजोर नहीं एवं शक्ति का नाम ही नारी है। हिंदुस्तान के विकास में सही मायने में यदि 50% भागीदारी महिलाओं की हो तो असाधारण क्षमता की धनी महिलाएं इस देश को विश्व के अन्य विकसित देशों में खड़ा कर सकती हैं, जरूरत इनकी शक्ति क्षमता एवं योग्यता को पहचानने की है। 21वीं सदी में विश्व शक्ति रूप भारत के सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक विकास में महिलाओं का सर्वांगीण विकास को आधार बनाकर आर्थिक महाशक्ति के स्वप्न को साकार किया जा सकता है।

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