तर्कसंगत नही है एक देश एक चुनाव
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स्वतंत्र प्रभात
(नीरज शर्मा'भरथल')
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी 'एक देश, एक चुनाव ' संबंधित 18,626 पन्नो की रिपोर्ट 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। इस उच्च स्तरीय समिति के अनुसार विशेषज्ञों के साथ व्यापक विचार-विमर्श कर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। यदि कोविंद समिति की सिफारिशे राष्ट्रपति द्वारा मान ली जाती हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव होंगे उनकी अवधि 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ खत्म हो जाएगी। जैसे 2026 में केरल में चुनाव होने हैं अगर सिफारिश मान ली जाती है तो उस समय की केरल विधानसभा का कार्यकाल 2029 में ही खत्म हो जाएगा जिससे 2029 में पूरे देश में एक साथ चुनाव हो सकें।
कोविंद समिति ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) के प्रमुख गुलाम नबी आज़ाद और अन्य सहित समिति के सभी सदस्यों की उपस्थिति में रिपोर्ट सौंपी। हाल ही में उच्च स्तरीय समिति ने भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, सीपीआई (एम), एआईएमआईएम, आरपीआई, अपना दल आदि सहित कई राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की और बातचीत की। इन दलों के प्रतिनिधियों ने समिति को लिखित रूप में अपने सुझाव भी सौंपे। इस रिपोर्ट में आने वाले वक्त में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगरपालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने के मुद्दे से जुड़ी सिफारिशें दी गई हैं।
191 दिनों में तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से 32 राजनीतिक दल 'वन नेशन वन इलेक्शन' के समर्थन में थे। रिपोर्ट में कहा गया है केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 दलों ने न केवल साथ-साथ चुनाव प्रणाली का समर्थन किया बल्कि सीमित संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए ये विकल्प अपनाने की ज़ोरदार वकालत की है।
लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने के पीछे कई तरह के तर्क दिए जाते रहे हैं। दावा किया जाता है कि इससे देश के विकास कार्यों में तेज़ी आएगी। चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होते ही सरकार कोई नई योजना लागू नहीं कर सकती है। आचार संहिता के दौरान नए प्रोजेक्ट की शुरुआत, नई नौकरी या नई नीतियों की घोषणा भी नहीं की जा सकती है और इससे विकास के काम पर असर पड़ता है। यह भी तर्क दिया जाता है कि एक चुनाव होने से चुनावों पर होने वाले खर्च भी कम होगा। इससे सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनावी ट्यूटी से भी छुटकारा मिलेगा।
भारत में साल 1967 तक केरल को छोड़कर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ ही होते थे। पहले आम चुनाव साल 1952 और 1957 में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में एक साथ हुए। केरल में साल 1957 के चुनावों में बनी सरकार को उस वक़्त की केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति शासन लगाकर हटा दिया था। केरल में दोबारा साल 1960 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। इसके अलावा 1967 से 1972 के बीच पुराने राज्यों के पुनर्गठन और नए राज्यों के बदलने के साथ अलग अलग समय पर विधानसभा चुनाव होते रहे। इस तरह से साल 1967 के बाद बड़े पैमाने पर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने का सिलसिला टूट गया। वैसे आज के परिपेक्ष एक देश एक चुनाव का नारा तर्कसंगत नही लगता।
देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं। इसलिए दोनों एक साथ होंगे तो विविधता और विभिन्न स्थितियों वाले देश में स्थानीय मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे। ‘एक चुनाव’ के आइडिया में तस्वीर दूर से तो अच्छी दिख सकती है, लेकिन पास से देखने पर इसमें कई कमियां दिखाई देती हैं। लोकतांत्रिक ढांचे के तहत यह आइडिया सुनने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसमें तकनीकी समस्याएं काफी हैं। देश में केंद्र और राज्य के चुनाव एक साथ हो भी जाए तब भी यह निश्चित नहीं है कि सभी सरकारें पूर्ण बहुमत से बनेगी और सरकारें 5 साल चलेंगी ही चलेंगी।
इन हालातों में सरकार गिरने पर दोबारा चुनाव होंगे। कोविंद समिति की सिफारिशों में ऐसे हालातों में दोबारा
चुनी नई सरकार का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म होगा। इस तरह एक राज्य की सामान्य हालातों में चलती सरकार को पांच साल पहले ही हटाना सविंधान का उल्लंघन होगा। यही नहीं इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन किए जाने की जरूरत पेश आएगी।
आबादी के हिसाब से भारत चूंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसलिए जानकारों के मुताबिक यहां एक साथ सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के साथ ही संसद के लिए चुनाव करवाए जाने के लिए मौजूदा संसाधनों और मशीनरी से कई गुणा ज्यादा संसाधनो की जरूरत पेश आएगी। यदि हम देश को स्कूल समझे 1 से 12वीं को अलग-अलग राज्य और विभिन्न विषयों को लोकसभा, विधानसभा के चुनाव तो क्यों नही अलग अलग चरणों में एक-एक कक्षा के सभी विषयों की परीक्षा एक साथ एक ही समय में ले लेते।
ऐसा नही करने का स्पष्ट कारण यही है कि हर विषय का स्तर अलग है, समस्या अलग है और उनके जबाव भी अलग हैं। इस लिए एक देश एक चुनाव में अलग-अलग स्तर के चुनाव एक दूसरे को प्रभावित करेंगे और जनता का जबाव इस प्रभाव में दब कर रह जायेगा।
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