इन्हें माननीय कहें या कलंक ?
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विश्व के सबसे बड़े 'लोकतंत्र का मंदिर' कही जाने वाली भारतीय संसद को पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपई तक ऐसे अनेकानेक सांसदों ने सुशोभित किया है जिनकी मधुर वाणी व विचारों का केवल पक्ष-विपक्ष ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया क़ायल थी। देश के भविष्य के लिये नीतियां निर्धारित करने वाले इन्हीं जनप्रतिनिधि सांसदों को 'माननीय ' यूँ ही नहीं कहा जाता । यहां तक कि लोकसभा व राज्य सभा के सभापति व मंत्रीगण भी इन सांसदों को 'माननीय ' कहकर सम्बोधित करते सुनाई देते हैं। परन्तु विगत कुछ वर्षों से जिस स्तर के लोग देश की संसद में निर्वाचित होकर आ रहे हैं और राजनैतिक पार्टियां उन्हें पार्टी प्रत्याशी बनाकर उनके निर्वाचित होने का रास्ता हमवार कर रही हैं उसे देखकर इन्हें माननीय कहना तो गोया 'माननीय ' शब्द की ही तौहीन प्रतीत होने लगा है । जिन 'माननीयों ' से सदन में शिष्टाचार,मृदुभाषी होने की उम्मीद की जानी चाहिये उन्हीं के मुंह से गली गलोच,धमकी,ओछी बातें सुनी जा रही हैं तथा अपने विपक्षियों को अपमानित करने की कोशिशें,झूठे व अनर्गल आरोप,साम्प्रदायिकता व जातिवाद फैलाना आदि देखा जा रहा है। यह 'कथित माननीय' संसद से लेकर सड़कों तक ज़हर उगलते देखे जा सकते हैं।
पिछले दोनों एक बार फिर अपने ऐसे ही विवादित व ज़हरीले बयानों के लिये कुख्यात 'माननीया' कंगना रनौत ने एक बार फिर ऐसा आपत्तिजनक बयान दे डाला कि इसबार तो उनकी अपनी भारतीय जनता पार्टी ने भी उनके बयान से ख़ुद को अलग कर लिया तथा पार्टी ने उन्हें यह चेतावनी भी दे डाली कि नीतिगत मामलों पर बयान देने के लिए वे अधिकृत नहीं हैं। साथ ही पार्टी ने उन्हें सख़्त हिदायत भी दी कि वे भविष्य में इस प्रकार के कोई बयान न दें। कंगना रनौत ने गत दिनों एक समाचारपत्र को दिये गये साक्षात्कार में बांग्लादेश में पिछले दिनों हुई उथल पुथल व वहां हुये सत्ता परिवर्तन को भारत के किसान आंदोलन से जोड़ते हुये यहाँ तक कह दिया था कि - "यहाँ पर जो किसान आंदोलन हुए, वहाँ पर लाशें लटकी थीं, वहाँ रेप हो रहे थे... " इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि -"किसानों की बड़ी लंबी प्लानिंग थी, जैसे बांग्लादेश में हुआ। इस तरह के षड्यंत्र... आपको क्या लगता है किसानों...? चीन, अमेरिका... इस इस तरह की विदेशी शक्तियाँ यहां काम कर रही हैं। " कंगना के इस अति विवादित बयान के बाद न केवल किसानों बल्कि विपक्षी दलों की तरफ़ से भी ज़बरदस्त प्रतिक्रियायें आनी शुरू हो गयीं। ख़ासकर कृषि बाहुल्य राज्य हरियाणा में जहाँ पहले ही भाजपा सत्ता विरोधी लहर का ज़बरदस्त सामना कर रही है, विधानसभा चुनाव का सामना करने जा रहे उस राज्य में भाजपा कंगना के इस आपत्तिजनक बयान से और भी असहज हो गयी है।
यही कंगना रनौत ही थीं जिन्होंने दिसंबर 2020 में महिंदर कौर नमक एक बुज़ुर्ग किसान आंदोलनकारी महिला व गुजरात की बलात्कार पीड़िता बिल्क़ीस बानो के चित्र एक साथ ट्वीट करते हुए यह व्यंग कसा था कि - "हा हा. ये वही दादी हैं, जिन्हें टाइम मैगज़ीन की 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था....और ये 100 रुपये में उपलब्ध हैं। " उनकी इसी बदकलामी का जवाब सीआईएसएफ़ की कुलविंदर कौर नाम की महिला कॉन्स्टेबल ने इसी साल जून महीने में मोहाली एयरपोर्ट पर कंगना रनौत के गाल पर थप्पड़ जड़ कर तब दिया था जब वे मंडी से सांसद निर्वाचित होने के बाद दिल्ली जा रही थीं। कंगना के 'आंदोलनकारी 100 रुपये में उपलब्ध' वाले बयान से कुलविंदर कौर इसलिये नाराज़ थी क्योंकि उसकी मां भी 2020 में किसान आंदोलनकारियों में शामिल थीं। कंगना रनौत कभी राहुल गाँधी को नशेड़ी बता डालती हैं तो कभी शंकराचार्यों पर सवाल खड़े करने लगती हैं। कभी देश को स्वतंत्रता 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली बताती हैं तो कभी देश का पहला प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को नहीं बल्कि सुभाष चंद्र बोस को बता देती हैं। कभी अपनी वरिष्ठ अभिनेत्रियों को अपमानित करने वाली भाषा बोलती हैं। गोया उनकी बोल भाषा सुनकर तो लगता ही नहीं कि यह किसी ऐसे व्यक्ति के बोल हैं जो सांसद चुने जाने योग्य भी हो।
पिछले कुछ वर्षों में देश के जिन 'माननीयों' द्वारा अपने कड़वे व विवादित बोल के चलते इस पवित्र सदन के सदस्य होने की गरिमा को तार तार किया गया है उनकी लंबी सूची है। मसलन,गत वर्ष पिछली संसद में अमरोहा से बहुजन समाज पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली को 21 सितंबर 23 को लोकसभा में चंद्रयान पर चल रही एक चर्चा के दौरान दिल्ली से भाजपा के तत्कालीन सांसद रमेश बिधूड़ी ने साम्प्रदयिक गालियां दीं और अभद्र भाषा का प्रयोग किया था। उन्हें गुंडागर्दी भरे लहजे में धमकी भी दी। इस तरह की साम्प्रदायिकता व अपमानजनक पूर्ण टिप्पणी संसद के इतिहास में किसी एक सांसद द्वारा किसी दूसरे सांसद पर करते कभी नहीं सुना गया। शायद भाजपा ने इसीलिये विधूड़ी को इसबार दिल्ली से प्रत्याशी बनाने योग्य ही नहीं समझा। हिमाचल प्रदेश का ही लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले अनुराग ठाकुर देश ही नहीं पूरे विश्व में अपने 'गोली मारो सालों को ' जैसे अतिविवादित उकसाऊ व भड़काऊ नारेबाज़ी करवाने के लिये कुख्यात हो चुके हैं।
पिछली लोकसभा में 'माननीया ' प्रज्ञा ठाकुर बार बार अपने विवादित बयान से पार्टी को सांसत में डालती रहती थीं। 2019 में प्रज्ञा ने सांसद रहते हुये महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता दिया था। इसके बाद बीजेपी हाईकमान को डैमेज कंट्रोल करते हुये बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह तथा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कड़े शब्दों में प्रज्ञा के बयान की निंदा करनी पड़ी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उस समय सख़्त लहजे में कहा था कि 'प्रज्ञा और बाक़ी लोग जो गोडसे और बापू के बारे में बयानबाज़ी कर रहे हैं, वह ख़राब है। भले ही प्रज्ञा ने माफ़ी मांग ली हो, लेकिन मैं दिल से उन्हें कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा'। और आख़िरकार 2024 में पार्टी ने विधूड़ी की ही तरह प्रज्ञा को भी चुनाव मैदान में नहीं उतारा। इसी तरह के और भी कई सांसद थे व हैं जो ऐसे घटिया व निम्नस्तरीय बयान देते रहते हैं जो 'लोकतंत्र का मंदिर' कहे जाने वाले सदन के सदस्यों के मुंह से क़तई शोभा नहीं देते। बल्कि कहना ग़लत नहीं होगा कि ऐसे अमर्यादित बयान 'लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर' को कलंकित करते हैं। ऐसे सदस्यों के ऐसे आपत्तिजनक बयानों के बाद तो समझ नहीं आता की इन्हें माननीय कहें या कलंक ?
निर्मल रानी
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