सही नपे जस्टिन ट्रूडो
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जस्टिन ट्रूडो ने 06 जनवरी 2025 को कनाडा के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जस्टिन ट्रूडो लगभग 9 साल तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे। उनका कार्यकाल भारत और कनाडा के संबंधो का सबसे खराब दौर रहा। वे भारत विरोधी बयान बाजी और खालिस्तानियों का साथ देने के चक्कर में अपनी राजनीति चौपट कर बैठे। 2015 में सत्ता संभालते वक्त जस्टिन ट्रूडो को एक उदारवादी और प्रगतिशील नेता के रूप में देखा जाता था परन्तु उनकी नीतियों और फैसलों ने कनाडा के भीतर और बाहर ट्रूडो को बेहद खराब राजनेता के रूप में कुख्यात कर दिया। जून 2023 में जब भारत के खालिस्तान आंतकवादी हरदीप सिंह निज्जर की बंदूकधारियों ने कनाडा के वैंकूवर के पास हत्या कर दी तो ट्रूडो ने इस हत्या के पीछे भारत का हाथ होने का आरोप कनाडा की संसद में जाकर लगाया था परन्तु अपने दावे को सिद्ध करने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं था।
वे मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों से भारत के खिलाफ जहर उगलते रहे, जिससे दोनों देशों के रिश्ते गर्त में गिरते चले गए। पिछले कुछ सालों से कनाडा की राजनीति में काफी अस्थिरता रही है। 2019 में कनाडा में हुए आम चुनावों में 338 सदस्यों वाले हाउस ऑफ कॉमंस में 18 सिख सांसद चुनकर आए थे। कनाडा में रह रहे सिखों में से कुछ खालिस्तान की मांग का मुद्दा उठाते रहते है। जिन्हे आईएसआई समेत दूसरी एजेंसियों की शह है। वोट बैंक की राजनीति के कारण कनाडा के राजनीतिक दल भी इन्हें सपोर्ट करते हैं।
ट्रूडो कट्टरपंथी सिख नेता और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के चीफ जगमीत सिंह के समर्थन से सरकार चला रहे थे। असल में 2019 के चुनाव में ट्रूडो को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था और उन्हें जगमीत सिंह का समर्थन लेना पड़ा था। जगमीत सिंह के खालिस्तानी एजेंडे में ट्रूडो उसका साथ और भारत विरोधी बयान देते रहे। कनाडा में खालिस्तान की पैरवी करने वाले जस्टिन ट्रूडो को बड़ा झटका तब लगा जब खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह ने ट्रूडो सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया। जगमीत सिंह ने आरोप लगाया कि ट्रूडो सरकार कॉर्पोरेट के लालच में आ चुकी है।
इसलिए हम ट्रूडो के साथ किए गए समझौते को खत्म करते हैं। ट्रूडो का इस्तीफा भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंधों को स्थिर करने का मौका है। कनाडा एकमात्र पश्चिमी देश है, जिसके भारत के साथ संबंध लगातार खराब हुए हैं। भारतीय लोगों के कनाडाई वीजा लेने पर सख्ती, कनाडा में भारतीय छात्रों के विरुद्ध नए नियमों को लागू करने से भी भारत के साथ कनाडा के रिश्तों पर असर पड़ा, जिसका कनाडा के घरेलू राजनीति में भी विरोध किया गया। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप की धमकी और घरेलू राजनीतिक संकट के कारण बढ़ रहा अविश्वास ट्रूडो की बिदाई का प्रमुख कारण रहे। ट्रूडो टैरिफ वाले मामले में ट्रंप को उचित उत्तर नही दे पाए। रिपोर्ट्स की मानें तो ऐसा ही कुछ मानना सिर्फ ट्रूडो की पार्टी के नेताओं का ही नहीं बल्कि बडी संख्या में कनाडा के आम नागरिकों का भी है।
दरअसल वर्तमान में कनाडा की अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में नहीं है। कनाडा में एक तरफ लगातार महंगाई बढ़ रही है तो वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी भी तेजी से बढ़ रही है। ट्रूडो की लिबरल पार्टी के खिलाफ कंजरवेटिव पार्टी ने इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया हुआ है। कनाडा में कोविड के बाद बेरोजगारी दर लगभग 6.5 फीसदी तक पहुंच गई है। कनाडा में घरों की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है, जिसने आम लोगों को ट्रूडो के खिलाफ खड़ा कर दिया है। अगर ट्रंप सत्ता में आने के बाद सच में 25 फीसदी टैरिफ लगा देते हैं तो इससे हालात और ज्यादा बिगड़ सकते हैं। इसी वजह से कनाडा के लोगों चाहते है कि देश की कमा कोई ऐसा नेता संभाले जो मजबूती के साथ ट्रंप के साथ बातचीत कर पाए जो कि ट्रूडो नहीं कर पा रहे थे।
जस्टिन ट्रूडो 11 सालों से लिबरल पार्टी के नेता और करीब 9 सालों से कनाडा के प्रधानमंत्री थे। वह डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों से लेकर प्रमुख मंत्रियों के इस्तीफे और जनमत सर्वेक्षणों तक कई संकटों का सामना कर रहे थे। जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि संसद की कार्यवाही 24 मार्च तक स्थगित रहेगी। ट्रूडो ने सोमवार को ओटावा में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यह देश अगले चुनाव में एक वास्तविक विकल्प का हकदार है, और यह मेरे लिए स्पष्ट हो गया है कि अगर मुझे आंतरिक लड़ाई लड़नी पड़ रही है तो मैं चुनाव में सबसे अच्छा विकल्प नही हो सकता। उन्होनें कहा कि नया प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी का नेता अगले चुनाव में अपने मूल्यों और आदर्शों को लेकर जाएगा।
मैं आने वाले महीनों में इस प्रक्रिया को देखने के लिए उत्साहित हूं। सच तो यह है कि इस पर काम करने के तमाम कोशिशों के बावजूद, संसद महीनों से पैरालाइज्ड बना हुआ है। मसलन, वह विपक्षी सांसदों के हंगामे की तरफ इशारा कर रहे थे, जहां लगातार उनके इस्तीफे की मांग उठ रही थी। जस्टिन ट्रूडो ने बताया कि उन्होंने गवर्नर से मुलाकात की और उन्हें अपनी अगली योजना के बारे में बताया था। अब कनाडाई संसद की कार्यवाही 27 जनवरी को फिर से शुरू होनी थी और विपक्षी दलों ने सरकार को जल्द से जल्द गिराने की कोशिश में थी। मसलन विपक्षी पार्टियां ट्रूडो की लिबरल पार्टी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली थी, लेकिन अगर संसद 24 मार्च तक स्थगित रहता है तो विपक्षी पार्टियां मई महीने तक संसद में अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है।
कनाडा में सभी तीन मुख्य विपक्षी दलों ने कहा है कि मार्च के अंत में जब संसद दोबारा शुरू होगी तो वे अविश्वास प्रस्ताव के जरिए लिबरल पार्टी को गिराने की योजना बना रहे हैं, जबकि अक्टूबर महीने तक कनाडा में आम चुनाव हो सकते हैं।
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