स्वर्णिम भारत का प्रतिबिम्ब है अक्षुण्ण विरासत

स्वर्णिम भारत का प्रतिबिम्ब है अक्षुण्ण विरासत

भारत में वर्ष 2025 में 76 वाँ गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। संविधान लागू हुए 75 वर्ष पूरे हो गए। गणतंत्र दिवस 2025 की थीम/प्रसंग है- "स्वर्णिम भारत-विरासत और विकास" गणतंत्र दिवस 2025 के मुख्य अतिथि के तौर पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो को चुना गया। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को 13 दिसंबर 1946  को जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में पेश किया गया था। इसे 22 जनवरी 1947 को स्वीकार किया गया था। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को अपनाया गया।

आजादी के बाद देश को चलाने के लिए डॉ भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में हमारे देश का संविधान लिखा गया। जिसे लिखने में पूरे 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे। 26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान को लागू किये जाने के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।  गणतंत्र दिवस की पहली परेड 1955 . को दिल्ली के राजपथ पर हुई थी। गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति तिरंगा फहराते हैं और हर साल 21 तोपों की सलामी दी जाती है। गणतंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है

गण और तंत्र। वैदिक काल में गण का शाब्दिक अर्थ था दल/समूह/लोक। तंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है डोरा/सूत (रस्सी) अर्थात ऐसी रस्सी/डोरा, जो लोगों के समूह को जोड़े। लोकतंत्र कहलाता है और यही गणतंत्र है। अतएव हम कह सकते हैं कि गणतंत्र दिवस भारतीय संविधान को लागू किये जाने का द्योतक है। संविधान की प्रस्तावना में "समाजवादी", "धर्मनिरपेक्ष" और "अखंडता" शब्द बाद में भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा भारतीय आपातकाल के दौरान जोड़े गए थे।

भारत में आपातकाल (25 जून 1975 - 21 मार्च 1977) के दौरान, इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान के बयालीसवें संशोधन में कई बदलाव किए थे। इसी संशोधन के ज़रिए "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों को "संप्रभु" और "लोकतांत्रिक" शब्दों के बीच जोड़ा गया और "राष्ट्र की एकता" शब्दों को "राष्ट्र की एकता और अखंडता" में बदल दिया गया। भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। अतएव भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से स्वावलम्बन, स्वाभिमानता और समानता परिलक्षित होती है।

स्वावलम्बिता, स्वाभिमानिता और समानता के मूल में स्वाधीनता वास करती है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, विचारों की स्वतन्त्रता, विश्वास की स्वतन्त्रता, आस्था और पूजा की स्वतन्त्रता स्वतंत्र भारत की पहचान है। अतएव हम कह सकते हैं कि अक्षुण्ण विरासत और विकास की सेतु पर खड़ा सविधान ही भारतीय गणतंत्र व्यवस्था की पहचान है। आत्मविश्वास का होना ही आपको आत्मनिर्भर बनाता है। भगवद गीता में लिखा है नायं आत्मा बलहीनेन लभ्यः अर्थात यह आत्मा बलहीनो को नहीं प्राप्त होती है। आत्मबल ही आत्मविश्वास की जननी है। आत्मबल और आत्मनिर्भर शब्द एक दूसरे के पूरक हैं। आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बी होने को दर्शाता है।

स्वावलम्बन जीवन की सफलता की पहली सीढ़ी है। सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वावलम्बी अवश्य होना चाहिए। रामराज्य की परिकल्पना मोहनदास करमचंद गांधी की दी हुई थी।  गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के पश्चात ग्राम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है। आत्मनिर्भर भारत की नींव गांधी के रामराज्य पर टिकी थी। गाँधी जी का स्वराज्य, रामराज्य की परिकल्पना का आधार था। 

स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो। यही स्वराज्य रामराज्य कहलाया। स्वराज का तात्पर्य स्वतंत्रता से है। बिना आत्मनिर्भर हुए स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता है। आत्मनिर्भरता या स्वावलम्बिता स्वतंत्र होने की एक कड़ी है। जब हम स्वतंत्र होंगे तभी हम स्वाभिमानी होंगे अर्थात स्वाभिमानिता के लिए स्वाधीनता जरुरी है। हिन्दुस्तान को गांधी का रामराज्य चाहिए। राम राज्य भगवान् राम के पुरुषार्थ और शासन का द्योतक है।

भगवान् राम सहिष्णुता के प्रतीक थे। राम सत्य के प्रतीक थे। तभी तो भगवान् राम ने रामराज्य स्थापित किया था। आज आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात हो रही है और वहीँ दूसरी ओर विदेशी कम्पनियाँ और विदेशी सामान की हिन्दुस्तान में बाढ़ गई है। प्रत्येक संस्था का निजीकरण होता जा रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है। आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। यदि स्वावलम्बन, समानता और स्वाभिमान की बात करनी हो तो गांधी के रामराज्य की कल्पना करनी होगी।

अतएव हम कह सकते हैं कि स्वतन्त्रता, गांधी के रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित होनी चाहिए। सभी राजनैतिक पार्टियों को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचारों को आत्मसात करने की जरुरत है। वास्तव में भारत तभी स्वावलम्बी और स्वाभिमानी बन पाएगा। भारत को रामराज्य की परिकल्पना अपने पूर्वजों या पुरखों से विरासत में मिली हैं। रामराज्य की परिकल्पना रूपी विरासत को संजोकर रखने की जरुरत है। अयोध्या का राम मंदिर अपनी सांस्कृतिक विरासत का अद्वितीय उदाहरण है।

भगवान् राम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ राम मंदिर को पुनर्जीवित करना ही अपनी विरासत को सम्हालने का एक अच्छा उदहारण है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस पुण्य कार्य का श्रेय जाता है। किसी भी देश की विरासत उस देश के विकास की आधारशिला होती है। पुरखों से प्राप्त वस्तु, सम्पत्ति आदि को विरासत कहा जाता है। पूर्वजों द्वारा प्राप्त की गई वस्तु या संपत्ति आदि को ही विरासत कहा जाता है।

विश्व में भारत अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक दृष्टिकोण से स्वर्णिम स्थान रखता है। भारत विविध धर्मों, जातियों, भाषाओं,और संस्कृतियों का देश रहा है। भारत में  मुख्यतः निम्नलिखित विरासतें हैं:-1.सांस्कृतिक विरासत 2.प्राकृतिक विरासत 3. मिश्रित विरासत। सांस्कृतिक विरासत दो प्रकार की होती है- मूर्त संस्कृति और अमूर्त संस्कृति। सांस्कृतिक विरासत में मूर्त संस्कृति जैसे इमारतें, स्मारक, परिदृश्य, अभिलेखीय सामग्री, किताबें, कला के कार्य और कलाकृतियाँ आदि आते हैं।

अमूर्त संस्कृति जैसे लोकगीत, परंपराएँ, भाषा और ज्ञान) और प्राकृतिक विरासत (सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण परिदृश्य और जैव विविधता सहित) शामिल हैं। मिश्रित विरासत स्थलों में प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार के महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल होते हैं। भारत में 43 यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित स्थान शामिल हैं। भारत में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) द्वारा अनुरक्षित मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में 15 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घटक शामिल हैं।

इन धरोहर स्थलों से विदित होता है कि भारत ने विरासत में अपने पूर्वजों से और प्रकृति से स्वर्णिम धरोहर प्राप्त किये। भारत में रामायण (बाल्मीकि), महाभारत भगवद गीता (वेद व्यास), मनु स्मृति (ऋषि मनु),अभिज्ञान शाकुंतलम (कालिदास), रामचरित मानस (तुलसीदास),आदि असंख्य ग्रंथों की रचना ऋषि मुनियों ने की। वेद, पुराण, उपनिषद और दर्शन आदि ये सभी भारतीय विरासत के अभिन्न अंग हैं। वेदों से ही चौथा वेद अथर्वेद आया। आज विश्व में आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में स्वर्णिम भारत की छवि को विश्व पटल पर रख चूका है।

महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योग दर्शन से ही आज विश्व प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाता है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भारत की ही देन है जिसकी वजह से 11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया। भारत ऋषि मुनियों और देवताओं की भूमि रही है जहां राजा हरिश्चंद्र (सतयुग), भगवान् राम ( त्रेता युग), भगवान् कृष्ण (द्वापर युग) आए।

श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान के 22 अवतारों का वर्णन है, वहीं कुछ धर्मशास्त्रों में 24 अवतार भी बतलाए गए हैं. जिनमें सेदशावतार” (दस अवतार) प्रमुख हैं. गरुड़ पुराण में दशावतार का वर्णन है. वे हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार। भगवान् के ये सारे अवतार भारत भूमि को स्वर्णिम बनाते है। इन ऋषि मुनियों और देवताओं से विरासत के रूप में प्राप्त संस्कार भारत की संस्कृति को विश्व में स्वर्णिम या अद्वितीय बनाते हैं।

यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) द्वारा वर्ष 2017 में कुम्भ मेला को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की श्रेणी में शामिल कर लिया गया था। जो भारत के लिए अपूर्व गर्व का दिन था। वर्ष 2025 में  प्रयागराज जिले में 144 वर्षों बाद लगा महाकुम्भ - 2025 (धार्मिक समागम), सांस्कृतिक विरासत का अद्वितीय स्रोत है। इस बार महाकुंभ मेला 13 जनवरी से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिला में आयोजित किया गया , जो 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा।

प्रयाग में तीन नदियों का संगम है- गंगा, यमुना और सरस्वती। महाकुम्भ के मुख्य स्नान पर्व पर किया गया स्नानअत्यंत पुण्य फल की प्राप्ति देता है। कहते हैं इस समय किया गया स्नान मोक्ष दायनी होता है। महाकुम्भ के समय हिन्दू देवी देवता सभी किसी किसी रूप में मिल जाते हैं। इस समय बड़े बड़े चमत्कारी साधू संत अपना प्रवास करते हैं। इनका आशीर्वाद मतलब देवताओं का आशीर्वाद होता है।

महाकुंभ मेला हर 12 वर्षों में चार पवित्र स्थलोंप्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में आयोजित होता है। यह मेला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है, जहां लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और पर्यटक एकत्रित होते हैं। महाकुंभ की जड़ें हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में समुद्र मंथन से जुड़ी हैं। ऐसा माना जाता है कि अमृत कलश से अमृत की बूंदें इन चार स्थानों पर गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र हो गए।

किसी भी राष्ट्र के विकास में संस्कृति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।किसी भी देश का विकास सांस्कृतिक विरासत के बिना संभव नहीं है। भारत की विरासत अक्षुण्ण है। इसको क्षीण नहीं किया जा सकता। भारत की विरासत ही उसके विकास की जननी है। अतएव हम कह सकते हैं कि अक्षुण्ण विरासत, स्वर्णिम भारत का प्रतिबिम्ब है।

 

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