श्री लाल शुक्ल साहित्य की आत्मा उपन्यास और व्यंग की ज्वाला भारत के स्वाभिमान और भारत के पौरूष भी है, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा
ऐसा लगता है कि वह भारत की रोशनी में भी हैं और दिग्दर्शनी में भी।
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लखनऊ। जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि श्री लाल शुक्ला साहित्य की आत्मा थे उपन्यास और व्यंग की ज्वाला थे भारत के स्वाभिमान भी है और भारत के पौरूष भी।ऐसा लगता है कि वह भारत की रोशनी में भी हैं और दिग्दर्शनी में भी।
श्री सिन्हा महान साहित्य का र श्री लाल शुक्ला के जन्म सती समारोह में मुख्य अतिथि पद से एक भव्य समारोह को संबोधित कर रहे थे लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रेक्षा गृह में आयोजित इस समारोह में उन्होंने कहा की दुनिया में कभी-कभी ऐसे व्यक्ति अवतरित होते हैं जिनके माध्यम से राष्ट्र अपना गीत गाता है। श्री लाल शुक्ला के विराट व्यक्तित्व के माध्यम से ग्रामीण भावनाओं को स्वर मिला।
उन्होंने कहा कि 1949में श्री लाल शुक्ल सरकारी सेवा में आए ।1947 में भारत आजाद हुआ दो वर्ष बाद भारत के विकास निर्माण की तैयारी शुरू हुई और 1952में भारतीय गणराज्य की स्थापना हुई। जिसमें भारतीय आर्थिक विकाश और आम नागरिक के जीवन के अधिकार और विकास के लिए प्रशासनिक आयोग का गठन सरदार पटेल के नेतृत्व में हुआ जिससे योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ समाज अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को मिले रुल ऑफ लॉ से देश चले इसकी व्यवस्था की कोशिश की गई।देश के विकाश में पहला कदम बढ़ा तो श्री शुक्ल साहित्य कार नहीं थे और देश के विकास के निर्माण में एक सदस्य के रूप में सरकारी सेवक की सीट पर बैठकर रियल साइट व्यू ले रहे थे और बदलाव के साक्षी ही नहीं बने बने बल्कि बदलाव के एजेंट के रूप में स्वयं काम किया।

श्री सिन्हा ने उनके जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि सिविल सेवा के बाद समाज और राष्ट्र निर्माण का भी संयम उनका लगातार चल रहा था।उनकी चेतना में केवल शब्दों के रंग नहीं बल्कि अपने कर्त्तव्यों को निभाने में भी एक संयम था। राग दरबारी आज भी प्रासंगिक है या नहीं इस पर लेखकों के विचार और मंच हो सकते है मै उसका नहीं हिस्सा हु न ही विचार रख सकता हूं। लेकिन इतना मै कह सकता हु कि किसी भी पाठक को राग दरबारी भूगोल और अर्थशास्त्र की दृष्टि से नहीं पढ़ना चाहिए।
बल्कि इस जन्म सती समारोह में हमें संकल्प लेना चाहिए कि उसके साथ शिवपालगंज गंज को भी पढ़े और भूगोल और अर्ध शास्त्र की दृष्टि से न पढ़ें।राग दरबारी के किसी के रूप में न देखे बल्कि उसे लक्षण के रूप में देखे। तो एक सिस्टम का लक्षण विद्यमान दिखाई देगा।और उस काल खंड की व्यवस्था और का दृष्टि कोड भी देश के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे।श्री लाल शुक्ल ने यह जिम्मेदारी बखूभी निभाई थी।

उन्होंने कहा कि उस दौर में देश की आबादी 65 करोड़ थी।जब रागदरबारी शुक्ल जी लिख रहे थे तो देश में दो जून की रोटी पेट भरने का पूरा नहीं हो रहा था 55 प्रतिशत आबादी गरीबों की रेखा के नीचे थी जिसके लिए 60 मिलियन टन भोजन की आवश्यकता थी देश में कुल 44 मिलियन टन ही अनाज पैदा होता था और 16 मिलियन टन विदेश के सहायता पर निर्भर थी।शिक्षा पर प्रति व्यक्ति परिवार पर एक ₹16 पैसे खर्च होते थे 100 करोड़ विदेशी मुद्रा कोष था 35 000 के लगभग उद्योग धंधे थे 12000 किलोमीटर केवल सड़के थी 72% आबादी के ऊपर कर्ज था ऐसी परिस्थित में राग दरबारी लिखा गया था उसमें भूगोल और अर्थशास्त्र के दृष्टि से देखना ठीक नहीं है ।
राग दरबारी में अनेक तत्व हैं जिसे आज भी पहचाना नहीं जा सकता। शिवपाल गंज से जुड़े अनेक किस्से जो बदलती हुई दुनिया के हाथों में फिट नहीं होंगे उस कालखंड के सभी पात्रों का स्ट्रक्चर इसलिए जरूरी था क्योंकि उसके बिना राग दरबारी का भव्य भवन खड़ा नहीं हो सकता था ।इसलिए भौगोलिक और आर्थिक रूप से शिवपालगंज को भी देखना छोड़ दें तो हर दूसरे चेहरे में वह रोपन बाबू प्रिंसिपल साहब और रघुनाथ की कार्बन कॉपी की खोज समाप्त करके इस उपन्यास को सिस्टम के नजरिया से देखें तो राग दरबारी की शाश्वत और सर्वव्यापी नजर आएगा।
अपराधियों के संरक्षण की व्यवस्था 1968 के शिवपालगंज के कस्बे में ही नहीं थी बल्कि अमेरिका जैसे विकसित दुनिया के फेडरल सरकार के उन शहरों के साथ टकराव चल रहा है जिसमें सेंचुरी सिटी सेंचुरी सिटी हम कहते हैं फेडरल सरकार का कहना है कि ऐसे शहरों को स्थानीय प्रशासन खुलेआम प्रश्रय दे रहा है ताकि वे अपराध कर सके।

पिछले दिनों एक खबर आई थी अमेरिका के दो शहरों में एक अपार्टमेंट को अपराधी गैंग ने कब्जा कर रखा है। विश्व में कई जगह में ऐसी कुछ उदाहरण मिल जाएंगे हमारे देश में भी मिलेंगे जहां ला एंड ऑर्डर की स्थिति को देखकर दरोगा जी की अक्सर याद आ जाती है। विश्व में आज भी ऐसे देश हैं जहां विद्यालय में 12 महीने पढ़ाई कम आंदोलन ही मिलेंगे ।
इसी प्रकार गोपालगंज की गवर्नमेंट का उन समस्याओं का प्रस्तुतीकरण उस समय खिंच गया था जो दूर तक सीमित थी सामाजिक क्रांति और 60 दशक के समावेशी विकास के पक्ष हमें एक साथ तो नहीं मिलेगा लेकिन दूसरा शिवपालगंज हमें नहीं मिलेगा ।लेकिन शुक्ला जी ने राग दरबारी में इन लक्षणों के जिस सिस्टम की चर्चा की है वह भारत में किसी ने किसी प्रदेश और देश के एक हिस्से में जरूर दिखाई देगा।
उन्होंने कहा हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने कहा था की सत्य का रास्ता बहुत सुगम होता है यह सोचकर नहीं कहा था कि जब 6000 साल बाद लोग इसे पढ़ेंगे तो इसमें मिल्टन को भी समझने की कोशिश करेंगे ।
इसलिए 2007 में जब रात दरबारी का दूसरा संस्करण श्री शुक्ला जी लिख रहे थे उसकी प्रस्तावना में ही 40 वर्ष पहले लिखे गए। उस उपन्यास को आज से ज्यादा प्रासंगिक होने की बात कही थी। इसका दूसरा पहलू भी है की लेखन अस्तित्व से जुड़े संदेश का असली वॉक लेखक होता है। राग दरबारी को एक अलौकिक घटना कहा जा सकता है जिसमें श्री शुक्ल ने शिवपालगन के तमाम पात्रों को के जीवन की कहानी और मानव जीवन के चेतना को सुहातनी शरीर के अमीरपन छोड़ गए हैं ।
अब आप हम पर निर्भर करता है कि हम इसे पढ़ते कैसे हैं और यदि पढ़ने वाले इस सूत्र को समझ कर आनंदित होता है
लंगड़ की कहानी से सिविल सेवा से जुड़ी कहानी से राजस्व से जोड़ा जा सकता है जम्मू कश्मीर में मेरी जमीन मेरी निगरानी का कार्यक्रम मैंने चलाया तो उसमें राग दरबारी के लंगड़ की कहानी मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत था।
श्री सिन्हा ने कहा की यकीनन जब लेखक अक्सर कुछ लिखता है वह संसार में हो नहीं सकता। आलोचक किसी लेखक में अच्छा या बुरा कह सकते हैं लेकिन विचारों को नष्ट करने का दुनिया में कोई तरीका अभी तक निजात नहीं हो पाई है।
उनके विचार राग दरबारी तक सीमित नहीं था। श्री सिन्हा ने कहा मैं लेखकों के बारे में तो नहीं क सकता लेकिन आम जनता के बारे में यह जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि उन्होंने राग दरबारी को जितनी बार पढ़ा है उसमें मौजूद विचार उपन्यास के पा त्र और उनकी उपस्थिति का वर्णन किताब के पन्नों से निकाल कर लोगों की चेतना में समाहित हो चुका है। आंकड़े बदलते हैं लेकिन भीतर की आंखों ने जो पढ़ा वह अस्तित्व को छुपाता है ।और जीवन पर्यंत चलता है ।
राग दरबारी पुस्तक ऐसा उन्हें विश्वास है कि विकसित भारत और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में मददगार साबित होगी ऐसा मुझे विश्वास है उन्होंने अंत में से लाल शुक्ला को अपने श्रद्धांजलि अर्पित की।
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