खजनी : श्रीमद्भागवत कथा ही परम मोक्षदायिनी है।(अखिलेशानंद)

, खजनी क्षेत्र बरी बन्दुआरी में चल रही कथा में स्रोता ने किय्या कथा का रसपान

 खजनी : श्रीमद्भागवत कथा ही परम मोक्षदायिनी है।(अखिलेशानंद)

रिपोर्टर/रामअशीष तिवारी

खजनी, गोरखपुर: श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर श्रोताओं को मिली मोक्ष की प्रेरणा खजनी तहसील क्षेत्र के ग्राम वरी वन्दुआरी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर मुख्य यजमान विष्णु देव त्रिपाठी सपत्नी के सान्निध्य में अयोध्या धाम से पधारे महान यज्ञाचार्य एवं कथा व्यास श्री अखिलेशानंद महाराज ने व्यास पीठ से श्रोताओं को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा ही परम मोक्ष दायिनी है।

महाराज परीक्षित को मोक्ष प्रदान करने के लिए भगवान वेदव्यास ने सात दिनों तक यह अमर कथा सुनाई थी। जिसने भी इस कथा का श्रवण कर लिया, उसका मानव जीवन उत्तम और सफल हो जाता है, और वह मोक्ष का पात्र बन जाता है।कथा व्यास ने आगे बताया कि श्रीमद्भागवत वही अमर कथा है,

जिसे भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाया था। कथा सुनना हर किसी के भाग्य में नहीं होता। जब भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती से कहा कि पहले यह सुनिश्चित करो कि कैलाश पर हमारे अलावा कोई और न हो, क्योंकि यह कथा सबको नसीब नहीं होती, तब माता पार्वती ने पूरा कैलाश देखा, लेकिन शुक के अपरिपक्व अंडों पर उनकी नजर नहीं पड़ी। भगवान शंकर ने माता पार्वती को कथा सुनाई, लेकिन बीच में पार्वती जी को नींद आ गई और शुक ने चुपके से पूरी कथा सुन ली। यह पूर्व जन्म के पापों का प्रभाव होता है कि कथा जीव से छूट जाती है।

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अखिलेशानंद महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब भगवान शंकर को पता चला कि शुक ने कथा सुन ली, तो वे उन्हें मारने दौड़े। शुक एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर ने शुक को ज्ञानवान होने का वरदान दिया। जब व्यास जी ने शुक को बाहर आने को कहा, तो शुक ने शर्त रखी कि जब तक उन्हें माया से सदा के लिए मुक्ति का आश्वासन न मिले, वे बाहर नहीं आएंगे। तब भगवान नारायण स्वयं प्रकट हुए और शुक को आश्वासन दिया कि उनकी माया उन्हें कभी नहीं छुएगी। इसके बाद ही शुक बाहर आए।कथा के दौरान द्रौपदी के चीर हरण की घटना का विशेष उल्लेख करते हुए कथा व्यास ने कहा कि यह उनकी दृढ़ता, श्रद्धा और भगवान में अटूट विश्वास का प्रतीक है। यह प्रसंग श्रोताओं को प्रेरणा देता है।

उन्होंने कहा, "जब तक भगवान जीवन में श्याम न हों, तब तक आराम नहीं मिलेगा। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी सेवा में रमना चाहिए। गोविंदा के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म शास्त्रों का पालन, माता-पिता और गुरु की सेवा, और जितना भजन करोगे, उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सान्निध्य हृदय में भगवान को बसा देता है।"

इस अवसर पर सभापति शर्मा राम जी, राम त्रिपाठी, गोरख राम त्रिपाठी, वशिष्ठ राम त्रिपाठी, तारकेश्वर त्रिपाठी, रमेश त्रिपाठी, मोलई त्रिपाठी, हौसला त्रिपाठी, संतोष त्रिपाठी, रामसमुझ त्रिपाठी, राम वशिष्ठ त्रिपाठी, विशाल त्रिपाठी, तिवारी सत्य प्रकाश शुक्ला, अतुल त्रिपाठी, पंडित गगन त्रिपाठी, अरविंद त्रिपाठी सहित सैकड़ों श्रोताओं ने कथा का श्रवण किया। कथा सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो उठे। यह आयोजन क्षेत्र में भक्ति और आध्यात्मिकता का संदेश फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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