इ.डि.या. गठबंधन में ये क्या चल रहा है

इ.डि.या. गठबंधन में ये क्या चल रहा है

 

                      -- जितेन्द्र सिंह वरिष्ठ पत्रकार
 
भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जब इंडिया गठबंधन बना तो सबको यह उम्मीद थी कि यह गठबंधन ज़रूर अच्छी टक्कर देगा। लेकिन कुछ मीटिंग के बाद ही घटक दलों के नेता अपना अपना राग अलापने लगे। इधर भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को इतना भव्य बना दिया कि विपक्ष का प्रत्येक नेता कुछ भी बोलने से बच रहा है। और यह सच भी है जब देश की बहुसंख्यक समुदाय रामजन्म भूमि का इतना बड़ा उत्सव मना रहा है तो कोई भी पार्टी बहुसंख्यक समाज के विपरीत जाने का दुस्साहस नहीं कर सकती। कांग्रेस भले ही इंडिया गठबंधन की मजबूती के तमाम प्रयास कर रही हो लेकिन उनके अपने नेताओं के सुर भी अलग जा रहे हैं।‌ पार्टी के नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन का मानना है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कांग्रेस ही भारतीय जनता पार्टी को टक्कर दे सकती है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि किसी को राममंदिर के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए। और समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को तो उन्होंने पूरी तरह से ठुकरा दिया। उन्होंने कहा है कि समाजवादी पार्टी पर अयोध्या में राम मंदिर मामले का श्राप लगा है। कांग्रेस को सपा से गठबंधन करके उस श्राप का भागीदार नहीं बनना चाहिए। कांग्रेस आलाकमान कुछ और चाह रहा है जब कि उसके नेता कुछ और। इधर समाजवादी पार्टी भी खामोश नजर आ रही है।
 
उलझन में है कि कांग्रेस से गठबंधन किया जाए या नहीं क्योंकि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जितनी सीट देना चाहती है शायद कांग्रेस इतनी सीटों पर तैयार नहीं होगी। आचार्य प्रमोद कृष्णन का मानना है कि कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। यह सच है कि जब भी गठबंधन होता है तो वहां पार्टी का संगठन कमजोर होता है जिस सीट से दूसरी पार्टी का नेता चुनाव में होता है उस सीट पर अन्य घटक दलों के कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हो जाता है। आचार्य प्रमोद कृष्णन पार्टी लाइन से अलग विचार व्यक्त कर रहे हैं। बीच में तो ऐसा संशय हो रहा था कि क्या प्रमोद कृष्णन भारतीय जनता पार्टी में जाने का मन बना रहे हैं। आचार्य का कहना है कि कांग्रेस को अकेले दम पर प्रियंका गांधी के नेतृत्व में चुनाव में उतरना चाहिए। और वैसे भी देखा जाए तो यह मांग पार्टी नेताओं द्वारा काफी समय से हो रही है। कांग्रेस को यदि फिर से पटरी पर आना है तो कुछ बदलाव तो करने होंगे। यह सीख उन्हें भारतीय जनता पार्टी से लेना चाहिए। कि वह समय समय पर परिवर्तन के पक्ष में दिखाई देती है।
 
                 यदि उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो अभी हाल ही में राम मंदिर को लेकर सपा काफी सतर्क हो गई है। उनके नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने बयानों से जो फजीहत कराई है वह शायद दूसरा कोई नहीं कर सकता। अखिलेश यादव के भी कुछ बयान ग़लत आएं हैं। अयोध्या में जो राम मंदिर का कार्यक्रम हो रहा है वह सर्व मान्य है हम देश की अधिकांश जनता के खिलाफ अपने विचार नहीं थोप सकते। वैसे भी अयोध्या मुद्दे पर राम भक्तों पर गोली चलाने का आरोप समाजवादी पार्टी पर है। वह बात अलग है कि वह कांड किस परिस्थिति में हुआ था। इधर डिंपल यादव के बयान बहुत सोचे समझे आ रहे हैं। सूत्रों से पता चला था कि डिंपल यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को अयोध्या मुद्दे पर शांत रहने की नसीहत दी थी।
 
उसके बाद उन्होंने कहा कि हम भी राम जी के भक्त हैं और उनको बहुत मायने हैं। उत्तर प्रदेश में विपक्ष में जो फूट है वह सीधे सीधे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच दिखाई दे रही है और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समाजवादी पार्टी के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कांग्रेस को 10 सीटों के अंदर सीमित रखना चाहती है। जो कि कांग्रेस नेताओं के गले नहीं उतर रही है। कांग्रेस चाह रही है कि उसको अधिक से अधिक सीटें मिले और समाजवादी पार्टी के सहयोग से वह उत्तर प्रदेश में अपने आप को फिर से स्थापित कर सके। लेकिन अखिलेश यादव पिछले लोकसभा चुनाव को भूले नहीं हैं जब बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर सपा को केवल 5 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी वहीं बहुजन समाज पार्टी के 10 प्रत्याशी जीते थे।‌ जब कि उसके बाद हुऐ विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अकेले लड़ने का फैसला किया और वह यहां साफ हो गई। बसपा का केवल एक प्रत्याशी विधानसभा में पहुंचा। इसका सीधा कारण है कि लोकसभा चुनाव में सपा का वोट तो बसपा में ट्रांसफर हो गया लेकिन बसपा अपना वोट सपा में ट्रांसफर कराने में नाकामयाब रही।
 
                        बिहार में नीतीश कुमार अब पूरी तरह से शांत दिखाई दे रहे हैं जब कि इंडिया गठबंधन के प्रयास नितीश कुमार के द्वारा ही किये गये थे। नितीश का मानना था कि राहुल गांधी की इमेज ठीक नहीं है। और उनको गठबंधन का नेता चुना जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। और नितीश कुमार दिल्ली में हुई बैठक के बाद बिना कुछ बोले शांत तरीके से पटना चले गए। हालांकि बाद में कांग्रेस आलाकमान ने नितीश कुमार को दिल्ली बुलाकर बात चीत की। लेकिन अब वह उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है जो पहले दिखाई दे रहा था। आरजेडी शांत है क्योंकि वह भले ही लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ हो उसका पूरा ध्यान राज्य की राजनीति में लगा हुआ है। तेजस्वी यादव जानते हैं कि नितीश अब बहुत समय राजनीति नहीं कर सकते तो बिहार की कमान उनके हाथों में आ जाएगी। तेजस्वी यादव बिल्कुल नितीश के भतीजे के रुप में कार्य कर रहे हैं। और उन्हीं की हां में हां मिला रहे हैं। वह जानते हैं कि नितीश कुमार बहुत ही परिपक्व नेता हैं और उनसे विरोध करके या उनके विपरीत जाकर कुछ हासिल नहीं हो सकता। बिहार में भी कांग्रेस सम्मानजनक सीटें चाहती है। कांग्रेस का जो हाल उत्तर प्रदेश में है लगभग वही बिहार में है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के पास ऐसे नेता नहीं हैं जो अकेले दम पर एक सीट पर भी विजय हासिल कर सकें। इसलिए कांग्रेस आलाकमान इन दो राज्यों में बिना गठबंधन के चुनाव में नहीं उतरना चाहता है। भले ही उनकी पार्टी के अन्य नेता कुछ भी कहते रहें।
 
                      दक्षिण भारत और राजस्थान छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में कांग्रेस की स्थिति ठीक है वह वहां अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। वहां किसी अन्य पार्टी का हस्तक्षेप भी नहीं है। कांग्रेस को इन राज्यों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। वाकी के राज्यों को अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ देना चाहिए तब ही विपक्ष भारतीय जनता पार्टी का सामना कर सकता है। नहीं तो वही हाल होने हैं जो अब तक चुनाव दर चुनाव होते आए हैं। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और वह लोकसभा में कैसा प्रदर्शन करती है यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन केजरीवाल के लिए यह अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी। क्यों कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव भी दूर नहीं हैं। दिल्ली की जनता का मूड अलग तरह का रहता है। दिल्ली की जनता विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत देती है वहीं लोकसभा के लिए एक भी सीट नहीं देती है। पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद यह पहला चुनाव है और अब यह देखना होगा कि पंजाब की जनता आम आदमी पार्टी से खुश है कि नहीं। महाराष्ट्र में एनसीपी और शिव सेना अपने आप से ही जूझ रही है। दोनों पार्टियां टूट चुकी हैं। और टूटे हुए घटक सरकार में शामिल हैं। वहां शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए यह परीक्षा का समय होगा।

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