swatantra prabhat kavita
कविता/कहानी  साहित्य/ज्योतिष 

संजीव-नी। आप जग जाहिर होने लगे हो।

 संजीव-नी। आप जग जाहिर होने लगे हो। संजीव-नी।आप जग जाहिर होने लगे हो।आप अपने हो या बेगाने हो,आप जग जाहिर होने लगे हो।जालिम ये जमाना,ना-समझ नही ।रंजिशों में आप भी माहिर होने लगे हो।न जाने किस की सोहबत में रहते हो,...
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संजीव-नी। आकाश की अनंत ऊंचाई दो l

संजीव-नी। आकाश की अनंत ऊंचाई दो l संजीव-नी। आकाश की अनंत ऊंचाई दो l    इनकी छोटी-छोटी हथेलियों में, पूरे ब्रह्मांड को समा जाने दो, संपूर्ण संभावना के साथ  पैदा हुआ नवजात, एक नन्हा पंछी तो है। आंखों में भविष्य के सपने  जल की निश्छलता, सूरज की किरणों...
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संजीव-नी।

संजीव-नी। आकृती ऐसी बनाना चाहता हूं।    आकृती ऐसी बनाना चाहता हूं जो सीधी भी, सादी भी, बोल दे सारी मन की व्यथा भी।    फूलों की दीपमाला सी धूप दीप सी मंत्रोचार सी।    जिसे चाह ना हो माया की, खुली हर पीड़ित...
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संजीव-नी।।

संजीव-नी।। संजीव-नी।। आनंद तो जीवन में चलते जाना ही हैंl    मुझे फेके गए पत्थर अपार मिले, फक्तियाँ,ताने बन कर हार मिले।    शौक रखता हूं सब के साथ चलने का, कही ठोकरे,कही जम कर प्यार मिले।    जीवन बीता आपा-धापी में ही यारों,...
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संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम।

संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम। स्वतंत्र प्रभात  संजीवनी। पृथ्वी का बचा रहना कितना अहम।    मैं चाहता हूं पृथ्वी बची रहे और बची रहे मिट्टी  आग नदिया  चिड़िया झरने  पहाड़ हरे हरे पेड़ रोटी चावल  मक्का  बाजरा समंदर  पुस्तकें मनुष्य के लिए जी बची रहे पृथ्वी...
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संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो।

संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो। संजीव-नी। लंबी उम्र की ना दुआ किया करो।    मोहब्बत में दर्द छुपा लिया करो, दर्द के छालों को छुपा लिया करो।    आशिकी छुपाना होती नहीं आसां, जमाने को मेरा नाम बता दिया करो।    हर दर्द की दास्तां होती है जुदा...
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संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।

संजीव-नी। फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है। संजीव-नी।    फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।    आओ उजालों से कुछ सीख लेते है, ताज़ी हवाओ से उमंगें भर लेते हैं।    जमाने की तमाम बुराई रखे एक तरफ, फूलों से दो पल,मुस्कुराना सीख लेते है।    पतझड़ में पत्तो को...
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संजीव-नी। सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl

संजीव-नी। सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl स्वतंत्र प्रभात  संजीव-नी। सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl    दरख्तो से पुराने घरोंदे वो उठाने लगे  सूखे सरोवर परिंदे छोड़कर जाने लगे हैl    नहि अंदेशा है उन्हें अपनी उडान की दूरी का, कंधे पर रख जीन्दगी का क़र्ज़ चुकाने...
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