(वैश्विक विश्लेषण) भविष्य का अहिंसक महाशक्ति भारत होगा।भारतीय विदेश नीति में वैश्विक परिवार की परिकल्पना।

भारत की सकारात्मक विदेश नीति और निरपेक्ष छवि पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण तथा आदर्श की तरह सामने आई है, इसी रफ्तार से यदि भारत अपनी आंतरिक क्षमता, आर्थिक नीति तथा विदेशी संबंधों को गति देती है तो इसमें कतई संदेह नहीं कि भारत आने वाले समय में आर्थिक सामरिक और वैश्विक शांति का नेतृत्व करेगा जिसके फलस्वरूप उसे शांति महाशक्ति के रूप में पूरा विश्व स्वीकार करेगा। पिछले कुछ वर्षों की कोविड-19 महामारी के कारण पूरा विश्व अशांत एवं तनावग्रस्त रहा है। इसके तुरंत बाद तालिबान-अफगानिस्तान युद्ध में विश्व युद्ध की आशंका मंडराने लगी थी, रूस यूक्रेन युद्ध और इजराइल फिलिस्तीन वार से पूरा विश्व चिंता तथा तनाव के मध्य जीने लगा था।
रूस यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन लगभग तबाही के कगार पर बैठा है और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पुनः पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति बनने एवं पूर्व में परमाणु बमों का इस्तेमाल करने की घोषणा ने आग में घी का काम कर दिया है। परिणाम स्वरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध की विभीषिका के बादल मंडराने लगे हैं। विश्व के अनेक राष्ट्र जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, साउथ अफ्रीका और अन्य यूरोपीय देश भारत और रूस के कई वर्षों के निरंतर घनिष्ठ संबंधों के आधार पर भारत और भारत के प्रधानमंत्री से यह आशा लगाए बैठे हैं कि वह रूस और यूक्रेन युद्ध पर मध्यस्थता कर युद्ध में विराम लाने का प्रयास करेंगे। विगत दिनों समरकंद में अंतरराष्ट्रीय बैठक में मोदी ने एक-एक कर के वैश्विक नेताओं से मुलाकात कर पुतिन तथा जेलेंस्की से युद्ध विराम की अपील भी की है।
ऐसे में भारत की गुटनिरपेक्षता एवं वैश्विक शांति तथा वसुधैव कुटुंबकम जैसा भारतीय दर्शन अत्यंत समीचीन एवं प्रासंगिक हो गया है। वर्तमान वैश्विक त्रासदी एवं वैश्विक अशांति के दौर में एक दूसरे की सहायता करना एवं एक दूसरे के मंतव्य, संवेदना को समझने की बड़ी आवश्यकता है। रूस और यूक्रेन के युद्ध का रुकना अब शांति बहाली के लिए अत्यंत आवश्यक भी है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश ने लगभग 40 देशों को कोविड-19 के महामारी के दौरान कई तरह से मदद भी की है। हालांकि भारत में महामारी के दौरान यूरोपीय देशों तथा अन्य देशों ने भी अपना परिवार मानकर खुले दिल से संक्रमण से लड़ने के लिए आर्थिक एवं चिकित्सकीय सहायता प्रदान की थी। भारत की विदेश नीति में वसुधैव कुटुंबकम और वैश्विक शांति की नीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य की गई है।
इसमें दो मत नहीं कि अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति की वन टू वन बैठक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ट्रस्टीशिप की नीति एवं भावना की दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने बड़ी सराहना की,और उस पर विश्व को अमल करने की बात भी कही। भारत की विश्व के कई देशों को की गई सहायता भारत की नीति वसुधैव कुटुंबकम को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करती है। भारत के प्रधानमंत्री ने सदैव अपनी अभिव्यक्ति में भी यह स्पष्ट रूप से जताया है कि भारत पूरे विश्व को अपना परिवार मानता है एवं इसकी शांति तथा सुरक्षा की चिंता करते हुए अपनी विदेश नीति बनाता है।
वसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत होने के कारण ही प्राचीन समय से अब तक भारत में हर जाति, हर धर्म के लोगों को शरण दी थी।
उन्हें अपनाया गया फिर चाहे वह मुगल हो या अंग्रेज ही क्यों ना हो। भारत ने सभी को एक परिवार मानकर व्यवहार किया है। पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोलवीं तथा 17वीं शताब्दी में यूरोप मैं औद्योगीकरण का युग प्रारंभ हुआ और अलग-अलग देशों ने अपने-अपने उपनिवेश बनाने शुरू कर दिए और तब वसुधैव कुटुंबकम की भावना को क्षति पहुंची। तब राष्ट्रवाद का जन्म हुआ। राष्ट्रवाद एक राष्ट्र तक ही सीमित होकर रह गया है। आज पूरा विश्व अलग-अलग समूहों में बट चुका है, और अपने लाभ तथा उद्देश्यों के प्रति सजग तथा अलर्ट है। इन सभी देशों का उद्देश्य विकास और शांति का ही है। अतः सभी देशों को आपसी मतभेद भुलाकर एक मंच पर आकर वसुधैव कुटुंबकम की भावना को बलवती करना चाहिए।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख विकासवान देश इस भावना से कार्य करने पर प्रगति पर हैं, पर कुछ देश जो वैश्विक अशांति के लिए खतरा बन चुके हैं। सब दूसरे देशों सेअलग-थलग पड़ गए हैं। यह बात सर्वविदित है कि विश्व के देशों को वसुधैव कुटुंबकम की भावना से एकजुट होकर विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए, क्योंकि विकास का मार्ग एकजुटता से होकर ही प्रशस्त होता है। अभी इस दिशा में बहुत काम करना शेष भी है। और जिस दिन विश्व के देश आपस की कटुता वैमनस्यता और मतभेद को बुलाकर एक धरातल पर आ जाएंगे उस दिन वसुधैव कुटुंबकम की सद्भावना संपूर्ण आकार ले लेगी। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अभी अमेरिका के दौरे पर संयुक्त राष्ट्र संघ स्क्वाड और अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान वसुधैव कुटुंबकम एवं वैश्विक शांति की दुनिया से पुरजोर अपील भी की है।
और वैश्विक शांति के लिए कुछ देशों को इस बात से बाज आने का संकेत भी दिया है। भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका सफल यात्रा के बाद पूरे विश्व में भारत का कद तो ऊंचा हुआ ही है, इसके साथ ही वसुधैव कुटुंबकम की भावना भी बलवती हुई है। इसी भावना के साथ भारत देश को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाए जाने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। यदि भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का छठवां सदस्य बनता है, तो यह भारतीय गणतंत्र की बड़ी सफलता होगी। भारत के ऋषि मुनियों द्वारा प्रतिपादित वसुधैव कुटुंबकम की भावना को भारत ने अपनी वैश्विक विदेश नीति के तहत एक प्रमुख नीति बनाकर विश्व में शांति तथा विकास की बात हमेशा दोहराई है।
आज हम इस मुकाम पर खड़े हैं कि भारत देश की बात विश्व के देश बड़ी शांति और पूरे ध्यान से सुनते हैं। कई देशों ने आपसी भाईचारे पर अमल करना भी शुरू कर दिया है। यह भारतीय कूटनीति की बड़ी सफलता भी है। वसुदेव कुटुंबकम जियो और जीने दो तथा वैश्विक शांति के मार्ग पर भारत चलकर वैश्विक गुरु बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है। यह भारत का अमोघ अस्त्र साबित होगा जिससे विश्व में शांति सौहार्द और विकास स्थापित होने की संभावना बलवती होगी।
संजीव ठाकुर
(विश्व रिकार्ड धारक लेखक कवि), स्तंभकार, चिंतक
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