कांग्रेस और भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा - हरियाणा व‍िधानसभा चुनाव 

कांग्रेस और भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा - हरियाणा व‍िधानसभा चुनाव 

हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव आयोग ने 16 अगस्त को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनावों की तारीखें घोषित की, हरियाणा की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव एक चरण में 1 अक्टूबर को होंगे और नतीजे 4 अक्टूबर को आएगें। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनने के बाद किसी भी प्रदेश में होने वाले यह पहले चुनाव हैं।  हरियाणा प्रदेश चुनावों में कई पार्टियां हैं जिनके बीच कांटे का मुकाबला होने की सम्भावना है। सतारूढ भारतीय जनता पार्टी, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी बिना किसी गठबंधन के चुनावी मैदान में अपना दम दिखाने उतरेगी तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री चौ.ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन कर चुनाव मैदान फतेह करने का सपना देख रही हैं।
 
ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला की जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) लगभग साढे चार साल भाजपा के साथ गठबंधन में प्रदेश सरकार चला लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा से अलग हुई है। उम्मीद है कि जेजेपी बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ेगी। 2014 और 2019 की भाजपा सरकार में 9 साल से अधिक समय तक हरियाणा राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर थे लेकिन बीते लोकसभा चुनावों के पहले ही उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर लोकसभा का चुनाव लड़ा और वह करनाल लोकसभा सीट जीत कर केंद्र सरकार में मंत्री बन गए। उनके बाद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी बने और 2024 के चुनावों में वे ही भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा भी हैं और भाजपा को फिर से प्रदेश में सत्ता दिलाने की जिम्मेदारी का भार भी अब उनके कंधो पर ही है।
 
पिछले 10 साल से कांग्रेस विपक्ष में है परन्तु अब कांग्रेस ने किसान आंदोलन और पहलवान बेटियों के मामले को पूरे जोर-शोर से उठा प्रदेश में अपनी स्थिती निसंदेह मजबूत कर ली है। जिसका परिणाम कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों में देखने को मिला। कांग्रेस जहां 2019 के लोकसभा चुनावों में एक भी सीट जीत नही पाई थी वहीं भाजपा 10 की 10 सीटों पर विजयी रही थी। 2024 के चुनावों में कांग्रेस ने प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत करते हुए लोकसभा की 10 सीटों में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की है। 2019 के 28.51 प्रतिशत वोट से बढ़कर कांग्रेस का वोट शेयर 43.67 प्रतिशत पहुंच गया। भाजपा ने भी इन चुनावो में 5 सीटें जीती। हरियाणा चुनावों  की वर्तमान स्थिति को देखे तो सत्तारूढ़ बीजेपी के पास 41 विधायक हैं।
 
वहीं विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास 29 विधायक हैं। जबकि जेजेपी के पास 10 विधायक हैं। गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी और इंडियन नेशनल लोक दल के पास 1-1 विधायक है। इनके अलावा 5 विधायक निर्दलीय जीते थे। जिनमें से एक बादशाहपुर विधायक राकेश दौलताबाद की इसी साल मृत्यु हो गई और उनकी सीट मिलाकर प्रदेश में 4 विधानसभा सीटे खाली हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों में अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी। बीजेपी के साथ गठबंधन करके दुष्यंत चौटाला करीब साढ़े चार साल तक राज्य के उप मुख्यमंत्री बने रहे परन्तु लोकसभा चुनावों में सीटों के बटवारे को लेकर दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन टूट गया था।
 
भाजपा ने ये एलान कर दिया है कि वो यह चुनाव मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में लड़ेगी, वहीं कांग्रेस ने अभी भी किसी मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा नहीं की है। बहुजन समाज पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल गठबंधन ने मुख्यमंत्री चेहरा अभय सिंह चौटाला को बनाया है। वैसे इस बार चुनावी मुकाबला मुख्यतौर पर कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कई बड़े मुद्दे है जिसे लेकर कांग्रेस हमलावर है और भाजपा बैकफुट पर है। पहला मुद्दा एमएसपी पे किसानों की नाराजगी, दूसरा मुद्दा अग्निवीर योजना को लेकर नाराजगी, तीसरा मुद्दा महिला पहलवानों के यौन शोषण का केस और चौथा मुद्दा परिवार पहचान पत्र (पीपीपी)। भले ही तीनों कृषि कानून रद्द हो चुके है, लेकिन हरियाणा और पंजाब में अभी भी एमएसपी की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं।
 
अग्निपथ योजना ने विशेष रूप से दक्षिणी हरियाणा में करियर की संभावनाओं को प्रभावित किया है। जहां के युवा पारंपरिक रूप से सेना में नौकरी का विकल्प चुनते थे। अब यहां बड़े पैमाने पर अवैध रूप से विदेश जाने का सिलसिला शुरू हो गया है। बेरोजगार युवाओं के बीच नशीली दवाओं और ड्रग्स का जहर अब पंजाब की सीमा से लगे जिलों तक ही सीमित नहीं रह गया। यह हरियाणा के अंदर तक फैलता जा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट मर्डर, रंगदारी वसूली के रैकेट में शामिल गिरोहों और गैंगस्टरों का बढ़ता प्रकोप भी राज्य सरकार के खिलाफ माहौल बना रहा है। खट्टर सरकार द्वारा शुरू की पीपीपी योजना से लोग बहुत ज्यादा  परेशान हो रहे हैं। हर जिले में इस योजना से जुड़ी जटिलताओं के समाधान के लिए शिविर चलाए जा रहे हैं। जहां विशेष टीमे डेटा गड़बड़ियों को ठीक कर रही है।
 
स्थानीय लोग अपनी संपत्ति की आईडी को ठीक करवाने या बनवाने में आने वाली जटिलताओं की भी शिकायत करते है। जिसके कारण वे जमीन और संपत्ति को बेचने या खरीदने में असमर्थ हैं। कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पीपीपी और संपत्ति आईडी दोनों योजनाओं को रद्द करने का वायदा किया है। इस बीच पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग भी तेज होती जा रही है। दूसरी तरफ भाजपा सोशल इंजीनियरिंग के जरिए विपक्ष को जबाब देने की तैयारी में है। जातीय समीकरण साधने के लिए बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। मोहन लाल बड़ौली ब्राह्मण चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया है।
 
जाट वोट में सेंधमारी करने के लिए कांग्रेस की बागी और हरियाणा के पूर्व सीएम बंसी लाल की बहू किरण चौधरी को पार्टी में शामिल किया है साथ ही डॉ.सतीश पुनिया को प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी सौपी है। कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव चुनौती भरे रहने वाले हैं। अन्दरूनी गुटबाजी कांग्रेस के लिए चिन्ताजनक है। कुमारी सैलजा और हुड्डा गुट में खींचतान चरम पर है। दोनो गुट अपने अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए हर दाव खेल रहे हैं। यह चुनाव जहां भाजपा और कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा की तरह है वहीं अन्य दलों के लिए यह चुनाव स्वंय को जिंदा रखने की लड़ाई है।
 
(नीरज शर्मा'भरथल')

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