सनातन की गूंज, भक्ति का उफान श्री सालासर बालाजी महाराज की भव्य शोभायात्रा में उमड़ा श्रद्धा का जनसैलाब, गूंज उठा सम्पूर्ण नगर
धर्म को जो मिटाना चाहे, वह खुद मिट जाता है- आचार्य मिश्र

सहभोज और भजन संध्या ने बांधा समां, धार्मिक आयोजन, सामाजिक समर्पण
अजयंत सिंह (संवाददाता)
अनपरा/सोनभद्र -
जहां आस्था होती है, वहां भीड़ नहीं, जनसैलाब होता है — और कुछ ऐसा ही दृश्य मंगलवार को अनपरा में देखने को मिला, जब श्री सालासर बालाजी महाराज की भव्य ध्वज शोभायात्रा नगर में पूरे धार्मिक उल्लास और भक्ति-भाव के साथ निकाली गई। राम जानकी मंदिर से प्रारंभ हुई इस यात्रा ने एक ओर परंपरा का मान बढ़ाया तो दूसरी ओर सनातन धर्म की अमरता का संदेश जन-जन तक पहुँचाया।
ध्वज यात्रा का शुभारंभ प्रथम यजमान दीपक सिंह व उनकी धर्मपत्नी द्वारा एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य बाके सिंह वउनकी धर्मपत्नी पूजा-अर्चना से हुआ। डीजे की भक्ति लहरियों पर थिरकते भक्तों के हाथों में लहराते भगवे ध्वज, त्रिशूल और गदा — यह दृश्य मानो भक्तिरस में डूबी अयोध्या की झलक प्रस्तुत कर रहा था। जय श्रीराम के गगनभेदी नारों से नगर का कोना-कोना गूंज उठा। श्रद्धा की डगर पर निकली यह यात्रा आस्था की अग्निपरीक्षा नहीं, बल्कि उसका महोत्सव थी।
*भक्ति का रंग सब पर चढ़ा था, कोई पीछे नहीं रहा
बुजुर्ग हों या युवा, महिलाएं हों या बच्चे — हर कोई इस धार्मिक उत्सव में तन-मन-धन से जुटा दिखा। शोभायात्रा के मार्ग पर जगह-जगह भक्तों ने जलपान की व्यवस्था कर ‘अतिथि देवो भवः’ की परंपरा को निभाया।
*कार्यक्रम स्थल बना आस्था का दरबार*
शोभायात्रा के समापन पर मिनिस्ट्रीरियल क्लब में श्री सालासर बालाजी का भव्य दरबार सजाया गया। जैसे ही शोभायात्रा वहां पहुंची, युवाओं ने जयकारों से ऐसा वातावरण रच दिया मानो देवलोक स्वयं उतर आया हो। इसके उपरांत हुआ सुंदरकांड पाठ, जिसमें वृंदावन से पधारे सुप्रसिद्ध वाचक आचार्य दुर्गेश नंदन मिश्र और उनकी टीम ने अपनी ओजस्वी वाणी में बालाजी की महिमा का वर्णन किया।
धर्म को जो मिटाना चाहे, वह खुद मिट जाता है” — आचार्य मिश्र*
अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा — सनातन कोई विकल्प नहीं, यह जीवन का मूल है। यह न कभी मिटा है, न मिटेगा। जो भी इसकी ओर तिरस्कार की दृष्टि से देखता है, वह अपने कर्मों से ही मिट जाता है। यह बयान न केवल आध्यात्मिक था, बल्कि वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों पर तीखी प्रतिक्रिया भी थी।
*सहभोज और भजन संध्या ने बांधा समां*
भक्ति के रस में डूबे इस आयोजन में भव्य सहभोज की भी व्यवस्था की गई थी, जिसमें हज़ारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। शाम होते-होते मंच सजा भजन संध्या का, जहां दूर-दराज से आए लोक कलाकारों ने भक्ति की ऐसी बयार बहाई कि श्रोताओं की आत्मा झूम उठी। ‘हरि नाम का ले लो सहारा, यही है भवसागर से पार उतरने का किनारा’ जैसे भजनों ने माहौल को भक्तिमय बना दिया।
धार्मिक आयोजन, सामाजिक समर्पण*
इस आयोजन ने यह भी सिद्ध कर दिया कि धार्मिक कार्यक्रम केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहते — वे सामाजिक समरसता, सहयोग, और संस्कृति के पोषण का माध्यम बनते हैं। युवा कार्यकर्ताओं की तत्परता, महिलाओं की सहभागिता, और समाज के हर वर्ग की भागीदारी ने इस आयोजन को नायाब बना दिया।
वही कहावतें कहती हैं — "जहां चाह, वहां राह" और "भक्ति में शक्ति होती है तो अनपरा की इस भव्य शोभायात्रा ने यह दोनों सिद्ध कर दिखाया। धर्म का दीप जब जलता है, तो अंधकार स्वयं पीछे हटता है।
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