भारतीय के आंतरिक मामलो हस्तक्षेप करता अमेरिका
(नीरज शर्मा 'भरथल')
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स्वतंत्र प्रभात
भारत अपने हर घरेलू या विदेशी मुद्दे पर स्वयं निर्णय लेने में सक्षम है। भारत आजादी मिलने के बाद से अपने अंदरूनी मामलों में विदेशी हस्तक्षेप को मुंहतोड उत्तर देता आया है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अपना हर मुद्दा लोकतांत्रिक तरीके से निपटाने में विश्वास रखता है। भारत ने संबंधों की एक सीमा निर्धारित कर रखी है जो उस सीमा का उल्लंघन करता है चाहे वो कोई मित्र देश ही क्यों ना हो भारत उसे ऐसा करने पर कड़ा एवंम उपयुक्त उत्तर देता है। ताजा मामले में ऐसा ही जबाब भारत ने अमेरिका को दिया जब उसने बयान जारी कर भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा, "हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी सहित इन कार्रवाईयों पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे"। इस मामले पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने भारत में स्थित अमेरिकी दूतावास के कार्यवाहक उपप्रमुख ग्लोरिया बरबेना तलब किया और अपनी आपत्ति दर्ज करवाई।
इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय प्रवक्ता मिलर ने प्रेस वार्ता के दौरान भारत द्वारा नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास के कार्यवाहक उपप्रमुख ग्लोरिया बरबेना को तलब करने के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को ‘फ्रीज’ करने पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘हम कांग्रेस पार्टी के आरोपों से भी अवगत हैं कि भारतीय अधिकारियों ने उनके कुछ बैंक खातों को इस तरह से फ्रीज कर दिया है कि आगामी चुनावों में प्रभावी ढंग से प्रचार करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो जाएगा। हम इनमें से प्रत्येक मुद्दे के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और समय पर कानूनी प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित करते हैं।’’
अमेरिका के इस रुख पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि "हम अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता द्वारा भारतीय कानूनी प्रक्रिया पर की गई टिप्पणी का पुरजोर विरोध करते हैं। कूटनीति में अमेरिका को दूसरे देशों की संप्रभुता और आंतरिक मामलों का सम्मान करना चाहिए। लोकतंत्र में यह जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो इससे गलत उदाहरण पेश होगा। भारत की कानूनी प्रक्रिया स्वतंत्र न्यायपालिका पर आधारित है। इस पर संदेह जताना अवांछित हैं।" वैसे अमेरिका की हमेशा से यही आदत रही है दूसरों के मामले में टांग अड़ाने की। अमेरिकी विदेश नीति ने हमेशा दुनिया भर में दादागिरी और आतंक को बढ़ावा दिया है। अमेरिकन नीति हमेशा वैश्विक शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से खतरा रही है।
पूरी तरह से सैन्य आक्रामकता अमेरिकी नियंत्रण का एकमात्र उपकरण नहीं है। यह वैचारिक रूप से दूसरे देशों को नष्ट करने के लिए आर्थिक प्रलोभन, वित्तीय प्रतिबंध, सांस्कृतिक घुसपैठ, दंगा भड़काने, चुनाव में हेरफेर और अन्य चालों का भी सहारा लेता है। इसका हमेशा अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना और उनके शासन को नष्ट करना उद्देश्य रहता है।
अमेरिका दूसरे देशों में लोकतंत्र, स्वतंत्रता और मानवाधिकार के नाम पर राजनीतिक स्तर पर घुसपैठ कर अस्थिरता फैलाने में माहिर है। इसी तथाकथित मानव अधिकारों के हिमायती ने अफगानिस्तान युद्ध में लगभग 1,00,000 अफगान नागरिकों को मारा और लगभग 1 करोड से ज्यादा लोगो को शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया। इसके अलावा वर्षों के रक्तपात में इसने 2,00,000 से अधिक इराकी नागरिकों को मार डाला और लीबिया को और अधिक अशांति में धकेल दिया है।

अमेरिकी इतिहास उन सरकारों को खत्म करने के लिए कई सैन्य हस्तक्षेपों और तख्तापलट के संगठनों से जुड़ा है, जिन्होंने आसानी से उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया। अपनी स्थापना की शुरुआत से ही संयुक्त राज्य अमेरिका ने समुद्री डकैती की एक संस्कृति बनाई है जो लूटपाट और विजय की वकालत करती है। इसका शाही अहंकार वैसा ही है जैसा कि किसी भी साम्राज्य के साथ होता है। जो शांति और समृद्धि के नाम पर नहीं, बल्कि युद्ध और शोषण के नाम पर होता है। दरअसल संयुक्त राज्य अमेरिका ने लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय नियमों को कमजोर किया है।
दूसरों को पक्ष लेने के लिए मजबूर किया है और अनुपालन से इनकार करने वालों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की है। जिसके परिणाम स्वरूप यह सामाजिक उथल-पुथल से आगे बढ़कर क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को नष्ट कर चुका है। अपनी हस्तक्षेपवादी नीति को सही ठहराने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने कुकर्मों को सिर्फ युद्ध सिद्धांत और तथाकथित लोकतांत्रिक प्रयोग के रूप में प्रस्तुत किया है।
लोकतंत्र के बारे में चर्चा देशों पर दबाव बनाने का अमेरिकी उपकरण है। अमरीका को यह याद रखना चाहिए कि वो यह हस्तक्षेप पाकिस्तान या अन्य उसके गुलाम देश में नही कर रहा है। यह भारत है जो हर स्तर पर उसे जबाब देने में सक्षम है। इस लिए अमेरिका अपनी औकात पहचाने और भारत के घरेलू मामलों से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझे।
(नीरज शर्मा 'भरथल')
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