कांग्रेस को हटना ही था सपा को लड़ना ही था

कांग्रेस को हटना ही था सपा को लड़ना ही था

अंततः उत्तर प्रदेश के उप चुनाव में कांग्रेस ने पीछे हटकर समाजवादी पार्टी को समर्थन करने का फैसला कर लिया। कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश के उपचुनाव इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितने कि महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव। महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस मजबूत है और उसके सहयोगी दल भी मजबूत हैं जब कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के ऊपर ही निर्भर है।‌ और समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस को नौ सीटों में से 3 या 4 सीट कैसे देदे जब कि 9 में से 4 तो उसी की छोड़ी हुई हैं जहां उसके विधायक थी। यह एक राजनीति का हिस्सा है जो प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने अपने कार्यकर्ताओं के उत्साहवर्धन के लिए कह दिया कि हम केवल दो सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेंगे और सपा का समर्थन करेंगे। इसके बदले कांग्रेस ने सपा से बहुत कुछ ले लिया, महाराष्ट्र ले लिया। अब सपा महाराष्ट्र में अपने घोषित प्रत्याशियों को हटा लेगी और यदि इंडिया गठबंधन 2-3 सीट देता है तो उसे स्वीकार करेगी।

 
तमाम राजनीतिक विश्लेषकों तथा वरिष्ठ पत्रकारों ने यह पहले ही घोषणा कर दी थी कि उत्तर प्रदेश में उपचुनाव में समाजवादी पार्टी कांग्रेस को सीट नहीं देगी। इस पर सवाल यह उठने लगे थे कि क्या फिर यह गठबंधन टूट जाएगा तो उसका जबाब है नहीं गठबंधन नहीं टूटेगा क्योंकि इंडिया गठबंधन में जितने भी दल हैं वह सब मजबूत हैं और तय यह हुआ था कि जो जहां मजबूत है वो वहां मजबूती से चुनाव लड़ेगा। और अन्य सहयोगी दल उसका समर्थन करेंगे। महाराष्ट्र में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने एक जनसभा कर अपने पांच उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। दरअसल महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिव सेना उद्धव ठाकरे, एनसीपी शरद पवार मजबूत स्थिति में है और यदि समाजवादी पार्टी इस गठबंधन के इतर अपने उम्मीदवारों को खड़ा करती है तो उसके उम्मीदवार इंडिया गठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएंगे। चूंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा का गठबंधन है तो यह जिम्मेदारी राहुल गांधी को सौंपी गई थी कि वह सपा से बात करें कि अपने उम्मीदवारों को महाराष्ट्र में बिना गठबंधन के न उतारें।
 
पिछले हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ था वहां भी समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी लेकिन फिर बाद में कांग्रेस का समर्थन किया था। और फिर उत्तर प्रदेश में तो उपचुनाव हैं कांग्रेस चुनाव लड़े या न लड़े उसपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन यदि समाजवादी पार्टी इस उपचुनाव में जीती तो निश्चित है कि गठबंधन मजबूत होगा। उत्तर प्रदेश की बात करें तो उप चुनाव में यहां वैसे भी सीधे सीधे समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की टक्कर है। यह उपचुनाव भविष्य की राजनीति तय कर देंगे कि आगे 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आखिर कौन सा दल सत्ता के करीब पहुंच सकता है। यदि हम बात करें बहुजन समाज पार्टी की तो अब बहुजन समाज पार्टी को नए सिरे से अपनी शुरुआत करनी होगी। क्यों कि बसपा की लगातार हार से उसका दलित वोट भी खिसका है। और वह सपा और भाजपा दोनों ओर शिफ्ट हुआ है। अभी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कफी बड़ी संख्या में दलितों ने समाजवादी पार्टी को वोट किया था। उसका कारण यह है कि सपा ने जो दलित उम्मीदवार खड़े किए उनपर दलितों ने भरोसा जताया है।
 
इस उपचुनाव में भले ही बहुजन समाज पार्टी ने अपने आप को मजबूत करने के लिए और दलित वोटों को साधने के लिए मजबूत इरादों से मन बनाया है लेकिन उनके उम्मीदवारों को देखकर तो यही लगता है कि बसपा के पास अब जिताऊ नेता ही नहीं बचे हैं और नये नये नाम निकलकर सामने आ रहे हैं जो लगता ही नहीं है कि ये चुनाव जीतने के लिए खड़े किए गए हैं। बहुजन समाज पार्टी इस चुनाव में एक काम ही अच्छी तरह से कर पाएगी और वह है वोट काटने का काम। वैसे वर्तमान की राजनैतिक दशा में तो यह भी नहीं लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी किसी का नुक़सान भी कर सकती है। केवल दूसरे पे आरोप मढ़ देने से अपनी कमजोरियों को नहीं छिपाया जा सकता। मायावती का यह रिकार्ड रहा है कि ये जब भी गठबंधन करके चुनाव लड़ती हैं तो हार के बाद ये तुरंत दूसरी पार्टी पर आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ देती हैं। खैर यदि क्षेत्रीय राजनीतिक को देखें तो भारतीय जनता पार्टी के मुक़ाबले में सपा ही दिखाई दे रही है। और इस उपचुनाव में भी सभी नौ सीटों पर भाजपा का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों से होगा। अब इसमें कौन आगे निकलेगा यह तो परिणाम वाले दिन ही पता चल सकेगा।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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