लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह: परंपरागत मूल्यों की परीक्षा
भारतीय समाज में विवाह को एक अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक संस्था के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, जो केवल दो व्यक्तियों को ही नहीं, बल्कि दो परिवारों और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों को भी एक अभिन्न सूत्र में बांधने का कार्य करती है। यह संस्था युगों-युगों से परंपरा और नैतिक मूल्यों का आधार स्तंभ मानी जाती रही है। किंतु, वर्तमान काल में परिवर्तित जीवनशैली और नवीन विचारधाराओं के प्रभाव से परंपरागत मान्यताओं को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह जैसे विषय इस संदर्भ में अत्यधिक प्रासंगिक बन गए हैं। ये मुद्दे न केवल समाज की परंपरागत संरचना को विचलित करते हैं, बल्कि व्यापक संवाद, तीखी बहस और वैचारिक असहमति को भी जन्म देते हैं।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी जी ने हाल ही में इन दोनों विषयों पर अपनी स्पष्ट और निर्भीक राय प्रस्तुत की। उनके विचार भारतीय समाज की गहन परंपराओं और सांस्कृतिक आदर्शों से अनुप्राणित हैं। उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप को अनुचित निरूपित करते हुए इसे भारतीय समाज की पारिवारिक संरचना के लिए क्षतिकारक बताया। उनके मतानुसार, विवाह केवल दो व्यक्तियों के मध्य एक बंधन भर नहीं है, अपितु यह सामाजिक स्थिरता और सामूहिक संतुलन बनाए रखने का सशक्त माध्यम भी है। गडकरी जी ने ब्रिटेन में अपने अनुभवों का संदर्भ देते हुए यह रेखांकित किया कि वहां लिव-इन संबंधों के कारण सामाजिक समस्याओं में वृद्धि हुई है। उन्होंने इस प्रथा को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से बालकों और पारिवारिक भविष्य के लिए घातक करार दिया।
गडकरी जी ने समलैंगिक विवाह पर अपने विचारों को अत्यंत स्पष्ट और तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने इसे भारतीय सामाजिक संरचना के लिए घातक बताते हुए कहा कि यह हमारी परंपराओं और सांस्कृतिक आदर्शों के विपरीत है। उनके अनुसार, विवाह केवल दो व्यक्तियों के बीच का अनुबंध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वों का मूर्तिमान प्रतीक है। उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि समाज की स्थिरता और संतुलन सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक आदर्शों और मानकों का अनुसरण करना नितांत आवश्यक है। उनका यह दृढ़ मत है कि समलैंगिक विवाह जैसी प्रवृत्तियां सामाजिक ताने-बाने को दुर्बल कर सकती हैं, जिससे दीर्घकालिक रूप से गंभीर दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
जनसंख्या संतुलन और लिंग अनुपात जैसे विषयों पर भी गडकरी जी ने अपनी गहन चिंता प्रकट की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि समाज में स्त्री-पुरुष संतुलन बिगड़ता है, तो यह विविध प्रकार की सामाजिक जटिलताओं को जन्म दे सकता है। एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि यदि भविष्य में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक हो जाती है, तो समाज को असामान्य और अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने समाज को आगाह करते हुए सुझाव दिया कि ऐसी विषम परिस्थितियों से बचने के लिए जनसंख्या नियंत्रण और संतुलित लिंग अनुपात बनाए रखने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
आधुनिक परिवेश में भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह जैसे मुद्दे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों के साथ जुड़ गए हैं। युवा पीढ़ी की बदलती मानसिकता और जीवनशैली इन विषयों को अधिक प्रासंगिक बनाती है। हालांकि, ये मुद्दे परंपरागत मूल्यों और सांस्कृतिक अवधारणाओं के साथ तीव्र टकराव उत्पन्न करते हैं। इस विरोधाभास के मध्य समाज को यह निर्णय करना होगा कि परंपरा और आधुनिकता के बीच किस प्रकार सामंजस्य स्थापित किया जाए। यूरोपीय देशों में लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह को कानूनी स्वीकृति प्राप्त है, किंतु इन प्रथाओं के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को लेकर वहां भी कई प्रकार के प्रश्न खड़े हुए हैं। भारत में भी यह गहन विचार-विमर्श आवश्यक है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकार क्या परंपरागत मान्यताओं से अधिक महत्वपूर्ण हैं, अथवा इन दोनों के मध्य एक संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
गडकरी जी ने परिवार की महत्ता पर विशेष बल देते हुए कहा कि परिवार समाज की आधारशिला है, जिसे सुदृढ़ बनाए रखना प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य है। उनका मत है कि माता-पिता की जिम्मेदारी मात्र संतान को जन्म देने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके नैतिक, बौद्धिक, और मानसिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बच्चों को उत्तम संस्कार और सही मूल्य प्रदान करना न केवल परिवार की, बल्कि समाज की स्थिरता और प्रगति के लिए भी अनिवार्य है। उनका स्पष्ट कथन है कि यदि पारिवारिक संरचनाएं कमजोर होती हैं, तो इसका व्यापक प्रभाव समाज के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ता है।
गडकरी जी के विचार भारतीय समाज की जटिल संरचना और उसकी सांस्कृतिक परंपराओं की गहराई को उद्घाटित करते हैं। उनके अनुसार, समाज की स्थिरता और समृद्धि के लिए पारंपरिक मूल्यों का पालन अनिवार्य है। तथापि, यह भी सत्य है कि सामाजिक परिवर्तन एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसे अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह जैसे विवादास्पद विषयों पर खुली बहस और संवाद की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि एक ऐसा मार्ग प्रशस्त हो जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिक उत्तरदायित्व दोनों का संतुलन बनाए।
न्यायालय के दृष्टिकोण को भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण मानते हुए, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करते हुए समान अधिकारों की हिमायत की है। यह स्पष्ट करता है कि इस विषय पर अंतिम निर्णय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या विधि और समाज समान गति से आगे बढ़ सकते हैं, अथवा इन दोनों के मध्य समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है।
आधुनिक युग में भारतीय समाज एक गहन संक्रमणकालीन दौर से गुजर रहा है, जहां परंपरा और आधुनिकता के मध्य गहरी खाई स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रही है। यह द्वंद्व समाज के प्रत्येक आयाम को प्रभावित कर रहा है। गडकरी जी के विचार इस संक्रमणकाल की गंभीरता और उसके प्रभावों के प्रति उनकी गहरी चिंता को प्रकट करते हैं। यह अनिवार्य है कि समाज इन जटिल मुद्दों पर खुलकर संवाद करे और ऐसा समाधान प्रस्तुत करे, जो सभी वर्गों के हितों को संतुलित रूप से साध सके। परंपरागत मूल्यों की सुरक्षा के साथ-साथ व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान भी समान रूप से अपरिहार्य है।
समाज का विकास केवल स्थिर परंपराओं के पालन तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि यह आवश्यक है कि वह समयानुकूल परिवर्तनों को विवेकपूर्ण स्वीकार्यता प्रदान करे। यह स्वीकृति तभी प्रभावी होगी, जब इसे संतुलित दृष्टिकोण और गहन समझ के साथ आत्मसात किया जाए। लिव-इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह जैसे विषय केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रश्न नहीं हैं; ये समाज की संरचना, उसकी दिशा और नैतिक धरोहर को प्रभावित करने वाले केंद्रीय मुद्दे हैं। अतः इन विषयों पर गहन विचार-विमर्श और तार्किक दृष्टिकोण अपनाना समय की प्राथमिक आवश्यकता है, ताकि परंपरा और आधुनिकता के मध्य एक सुदृढ़ सामंजस्य स्थापित किया जा सके।
प्रो. आरके जैन ‘अरिजीत’, बड़वानी (म.प्र.)
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