अंतरराष्ट्रीय वन दिवस: प्रकृति का आभार मानने का वक्त
3.jpg)
जंगल की गहराइयों में, जब सूरज की पहली किरण पत्तियों की ओट से छनकर धरती को स्पर्श करती है, तो प्रकृति एक अनूठा चमत्कार रचती है। हवा में घुलती मिट्टी की सोंधी खुशबू, पेड़ों के झुरमुट में गूंजती चिड़ियों की मधुर चहचहाहट और हर कदम पर बिछी हरी चादर—यह वनों का वह जीवंत राग है, जो धरती को साँस देता है। वन हमारे ग्रह के प्राण हैं, जो हर साँस में शुद्ध ऑक्सीजन का उपहार देते हैं। ये जलवायु को संतुलित करते हैं, जैव विविधता को आश्रय देते हैं और अनगिनत जीवन को सहारा देते हैं। हर साल 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय वन दिवस के रूप में हम इस अनमोल धरोहर को नमन करते हैं, इसके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और इसे संरक्षित करने की शपथ लेते हैं। इस बार की थीम "वन और भोजन" वनों की उस अनदेखी शक्ति को उजागर करती है, जो खाद्य सुरक्षा, पोषण और आजीविका का आधार बनती है। मगर यह सवाल मन को मथ डालता है—क्या हम वास्तव में इस अमूल्य संपदा के मोल को पहचानते हैं, या इसे खो देने की दहलीज पर आ खड़े हुए हैं?
वनों का महत्व सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है; यह जीवन का आधार है। वैज्ञानिक दृष्टि से ये पृथ्वी के सबसे बड़े कार्बन अवशोषक हैं। हर साल लगभग 10 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर ये ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को कम करते हैं। यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक प्राकृतिक कवच है। दूसरी ओर, जैव विविधता के संदर्भ में वन एक अनमोल रत्न हैं। अमेज़न वर्षावन की बात करें, तो वहाँ 16,000 से अधिक वृक्ष प्रजातियाँ और लाखों जीव-जंतु बसते हैं।
यह धरती का सबसे जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र है, जो प्रकृति की रचनात्मकता का जीता-जागता प्रमाण है। वनों का आर्थिक और सामाजिक महत्व भी कम नहीं है। विश्व भर में करीब 1.6 अरब लोग अपनी आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। खासकर आदिवासी समुदायों के लिए जंगल जीवन का आधार हैं। ये उन्हें भोजन, औषधीय पौधे, लकड़ी और आश्रय देते हैं। भारत के घने जंगलों में बसे आदिवासी आज भी वनों से मिलने वाली जड़ी-बूटियों से अपनी चिकित्सा करते हैं। इसके अलावा, वन पर्यटन और लकड़ी आधारित उद्योगों के जरिए अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं। सच कहें, तो वन केवल हरे-भरे पेड़ नहीं, बल्कि सभ्यता का वह आधार हैं, जिस पर हमारा वजूद टिका है।
लेकिन यह हरा सपना तेजी से मुरझा रहा है। हर साल 13 मिलियन हेक्टेयर जंगल—यानी पुर्तगाल के बराबर क्षेत्र—काट दिया जाता है। शहरीकरण की अंधी दौड़, कृषि भूमि का विस्तार और औद्योगिक जरूरतों ने वनों को निगलना शुरू कर दिया है। भारत में भी वन क्षेत्र घट रहा है, हालाँकि कुछ प्रयासों से स्थिति सुधरी है। वन कटाई का असर सिर्फ पेड़ों तक सीमित नहीं है। यह मिट्टी के कटाव को बढ़ाता है, नदियों को सूखने देता है और बाढ़ जैसी आपदाओं को न्योता देता है।
जैव विविधता पर इसका प्रभाव और भी भयावह है। हर पेड़ के साथ अनगिनत प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। उदाहरण के लिए, अमेज़न में वन कटाई के कारण कई दुर्लभ प्रजातियाँ हमेशा के लिए खो गईं। कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि से धरती का तापमान बढ़ रहा है, और ग्लोबल वार्मिंग अब एक दूर की बात नहीं, बल्कि हमारी आँखों के सामने की हकीकत है। यह सब उस भविष्य की ओर इशारा करता है, जहाँ जंगल सिर्फ बच्चों की किताबों में रंगीन चित्र बनकर रह जाएँगे। क्या हम सचमुच ऐसी दुनिया चाहते हैं?
इस संकट से निपटने के लिए दुनिया भर में कदम उठाए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में वनों के सतत प्रबंधन को प्रमुखता दी गई है। यह लक्ष्य 2030 तक वन क्षेत्र को बढ़ाने और उनकी गुणवत्ता को बेहतर करने की बात करता है। भारत भी इस दिशा में पीछे नहीं है। "राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम" और "ग्रीन इंडिया मिशन" जैसी योजनाएँ वन क्षेत्र को हरा-भरा करने में जुटी हैं। भारत सरकार ने 33% भू-भाग को वन क्षेत्र बनाने का संकल्प लिया है, जो एक महत्वाकांक्षी लेकिन जरूरी लक्ष्य है।
अवैध कटाई पर रोक के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। कई देशों में ड्रोन और सैटेलाइट तकनीक से जंगलों की निगरानी की जा रही है। गैर-सरकारी संगठन और स्थानीय समुदाय भी इस मुहिम में शामिल हैं। भारत में "चिपको आंदोलन" जैसी मिसालें आज भी प्रेरणा देती हैं, जहाँ लोगों ने पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाया। वृक्षारोपण अभियान भी जोर पकड़ रहे हैं। लेकिन क्या ये प्रयास पर्याप्त हैं? शायद नहीं। हमें और तेजी से, और बड़े पैमाने पर काम करना होगा।
वनों की रक्षा सिर्फ सरकारों या संगठनों का काम नहीं है; यह हमारी साझा जिम्मेदारी है। हम में से हर एक इस बदलाव का हिस्सा बन सकता है। एक पेड़ लगाना, कागज का कम इस्तेमाल करना, प्लास्टिक से दूरी बनाना—ये छोटे कदम हैं, जो मिलकर एक बड़ा फर्क ला सकते हैं। अपने घर के आसपास हरियाली बढ़ाना, बच्चों को पेड़ों का महत्व समझाना, और सामुदायिक स्तर पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना—ये सब हमारे हाथ में है। आदिवासी समुदायों से हम सीख सकते हैं कि प्रकृति के साथ तालमेल कैसे बिठाया जाता है। उनकी जीवनशैली में वनों के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना गहरे से बसी है। हमें भी अपने जीवन में यह भावना अपनानी होगी। अगर हर व्यक्ति एक पेड़ लगाए और उसकी देखभाल करे, तो हम लाखों हेक्टेयर जंगल को वापस ला सकते हैं। यह सिर्फ पर्यावरण की बात नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया की नींव रखने की बात है।
अंतरराष्ट्रीय वन दिवस हमारे सामने एक सुनहरा अवसर लाता है—सोचने का, महसूस करने का और कुछ कर दिखाने का। यह वह पल है, जब वनों की गहरी पुकार हमारे कानों तक पहुँचती है, हमें झकझोरती है। हर पेड़ जो हम बचा लेते हैं, वह धरती की साँसों में एक नई जान फूँकता है। हर बीज जो हम धरती की गोद में सौंपते हैं, वह उम्मीद की एक नई गाथा रचता है। वन हमारे अतीत की जीवंत कथा हैं, वर्तमान की सजीव हकीकत हैं और भविष्य का वो सपना, जो हम सच कर सकते हैं। इस वन दिवस पर एक अटूट संकल्प लें। अपने हाथों में एक नन्हा पौधा थामें, उसे धरती की गोद में सौंपें और उसे जीवन की नई ऊँचाइयों तक बढ़ते देखें।
उस पौधे के साथ एक वचन दें—कि हम जंगलों को मुरझाने नहीं देंगे, कि हम उस मधुर संगीत को ठहरने नहीं देंगे, जो पत्तियों की सरसराहट से हवा में गूँजता है। वन लहलहाएँगे, तो धरती खिलखिलाएगी। यह हँसी हमारी होगी, हमारे बच्चों की होगी और उन अनगिनत पीढ़ियों की होगी, जो हमारा इंतज़ार कर रही हैं। अब वक्त है एक पेड़ लगाने का, एक जंगल बचाने का और धरती को फिर से हरी-भरी शोभा से सजाने का। यह वही पल है, जब हमें आगे बढ़कर प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेना होगा, क्योंकि वन हैं, तो जीवन है, और वन हैं, तो हम हैं, हमारी धरा की मुस्कान है।
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
4.jpg)
अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel

खबरें
शिक्षा

Comment List