विश्व कठपुतली दिवस 2025: एक जादुई विरासत का आधुनिक रूप
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सपनों को धागों में पिरोकर मंच पर जीवंत करने वाली कठपुतली कला का उत्सव—विश्व कठपुतली दिवस—हर साल 21 मार्च को अपने जादुई स्पर्श से हमारे दिलों को मोह लेता है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उस अनमोल कला का सम्मान है, जो सदियों से मानवता की कहानियों को रंगों, भावनाओं और आवाजों के माध्यम से सँवारती आई है। 2003 में यूनियन इंटरनेशनल डे ला मैरियोनेट (यूनिमा) द्वारा शुरू किया गया यह आयोजन कठपुतली कलाकारों की असाधारण सृजनशीलता, उनके असीम जुनून और उस चमत्कार को श्रद्धांजलि देता है, जो उनकी उंगलियों के नाजुक संकेतों से जीवंत हो उठता है। लेकिन 2025 में यह दिन एक अनूठी आभा के साथ चमकेगा। इस बार की थीम "रोबोट, एआई और कठपुतली का सपना" हमें उस रोमांचक संसार की सैर कराएगी, जहाँ परंपरा के धागे तकनीक की चमक से जुड़कर कला के अनदेखे क्षितिज रच रहे हैं। यह अनोखा संगम न केवल कठपुतली कला को नई ऊर्जा से भर देगा, बल्कि इसे भविष्य के मंच पर एक दमकते सितारे की भाँति स्थापित करेगा।
एक साधारण लकड़ी का टुकड़ा या कपड़े का ढेर कैसे बोलने लगता है, थिरकने लगता है और कहानियों को जीवंत कर देता है? कठपुतली कला वह जादुई करिश्मा है जो निर्जीव में प्राण फूँक देती है। प्राचीन मिस्र के मकबरों से लेकर भारत के गाँवों की मिट्टी तक, यह कला हर सभ्यता की आत्मा में रची-बसी रही है। भारत में यह कला एक जीवंत धरोहर है, जो हर कोने में अपनी अनूठी छटा बिखेरती है। राजस्थान की कठपुतलियाँ अपने चटकीले रंगों और नृत्य-नाट्य के जादू से लोककथाओं को साकार करती हैं। कर्नाटक का "गोंबे अट्टा" संगीत और परंपरा के मधुर संगम से मंत्रमुग्ध करता है, तो ओडिशा की "साखी कुंडेई" अपनी बारीक कारीगरी से मन मोह लेती है।
हर शैली एक अनकही कहानी बुनती है, हर कठपुतली एक संस्कृति को अपने आँचल में संजोती है। यह कला कभी महज मनोरंजन का माध्यम नहीं रही—गाँव की चौपालों पर यह कठपुतलियाँ सामाजिक संदेशों की दूत बनकर उभरीं, चाहे वह स्वच्छता का सबक हो या शिक्षा की प्रेरणा। मगर समय के साथ, आधुनिक मनोरंजन की चकाचौंध में यह कला धीरे-धीरे ओझल होती दिखी। अब, तकनीक के साथ इसका नया संनाद इसे फिर से मंच के मध्य में ला रहा है—पहले से कहीं अधिक भव्य, प्रेरक और जीवंत रूप में।
"रोबोट, एआई और कठपुतली का सपना"—यह थीम मन में एक अद्भुत दृश्य जगा देती है: एक कठपुतली, जो धागों की कैद से आजाद होकर तकनीक के बल पर सजीव हो उठे; जो न सिर्फ नृत्य करे, बल्कि दर्शकों से संवाद करे, उनके सवालों को सुनकर जवाब दे। 2025 का विश्व कठपुतली दिवस हमें इस रोमांचक भविष्य की सैर कराता है। रोबोटिक्स, डिजिटल एनीमेशन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने कठपुतली कला को नई उड़ान दी है। सेंसर से सुसज्जित कठपुतलियाँ हर हाव-भाव को बारीकी से जीवंत करती हैं, एआई से प्रेरित पात्र दर्शकों के साथ जीवंत संनाद रचते हैं, और वर्चुअल मंच इस प्राचीन कला को विश्व के हर कोने में गूँजने का अवसर देते हैं—यह सब अब महज ख्वाब नहीं, बल्कि एक ठोस सच्चाई है।
सोचिए: एक कठपुतली मंच पर खड़ी होकर पूछे, "आज आप मेरे मुँह से कौन सी कहानी सुनना चाहते हैं?" और फिर दर्शकों की रुचि के अनुसार अपनी प्रस्तुति को रंग दे। यह एआई का जादू है। रोबोटिक कठपुतलियाँ अब फिल्मों में अपनी चमक बिखेर रही हैं, वीडियो गेम्स में प्राण फूँक रही हैं और वर्चुअल थिएटर में दर्शकों को सम्मोहित कर रही हैं। यह थीम हमें एक गहरे सवाल की ओर ले जाती है: क्या होगा जब कठपुतली अपनी कहानी खुद बुनने लगे? यह सिर्फ तकनीकी उन्नति नहीं, बल्कि कला के एक नए सुनहरे युग का आरंभ है।
तकनीक परंपरा को मिटाने नहीं, बल्कि उसे और अधिक दमकदार बनाने आई है। राजस्थान का एक कठपुतली कलाकार अब अपनी सदियों पुरानी कला को डिजिटल मंचों पर सजा सकता है, जहाँ एआई और एनिमेशन उसकी कहानियों को अनूठा रंग-रूप दे सकते हैं। वर्चुअल रियलिटी के जादू से दर्शक कठपुतली नाटक को किसी सपनों की दुनिया में जीने का सौभाग्य पाते हैं। यूट्यूब और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म पर कठपुतली प्रस्तुतियाँ धूम मचा रही हैं, नई पीढ़ी के दिलों को इस कला से जोड़ रही हैं। यह परंपरा और आधुनिकता का ऐसा संगम है, जो कठपुतली कला को वैश्विक क्षितिज पर एक नई पहचान और चमक दे रहा है।
एक रोबोटिक कठपुतली जो बच्चों को जलवायु परिवर्तन की गंभीरता समझाए, या एक एआई कठपुतली जो दर्शकों के सवालों का जवाब देते हुए कहानी को नया मोड़ दे—यह भविष्य अब कोसों दूर नहीं। "रोबोट, एआई और कठपुतली का सपना" हमें उस दुनिया की झलक देता है, जहाँ कठपुतलियाँ सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि प्रेरणा और ज्ञान की वाहक बन उठेंगी। यह कला का वह स्वरूप है जो हर बंधन को तोड़कर, हर दिल की गहराइयों तक अपनी छाप छोड़ेगा।
विश्व कठपुतली दिवस 2025 हमें एक पवित्र निमंत्रण देता है—इस अलौकिक कला के साक्षी बनने और इसके संरक्षण का हिस्सा बनने का। यह वह क्षण है जब हम इस अनमोल विरासत को न केवल सहेजें, बल्कि इसे आधुनिकता के सुनहरे स्पर्श से संवारें और भविष्य के असीम आकाश तक ले जाएँ। आइए, हम इस दिन को एक नए युग के स्वप्निल आरंभ में बदल दें—जहाँ कठपुतलियाँ मंच पर नृत्य के साथ-साथ बोल उठेंगी, विचार करेंगी और हमारी कहानियों को अनंत समय तक जीवंत रखेंगी। यह कठपुतली कला का शानदार पुनर्जागरण है—एक ऐसा जादू जो परंपरा की गहरी जड़ों और तकनीक की प्रदीप्त किरणों के मिलन से प्रकाशित हो रहा है। यह महज एक तिथि नहीं, बल्कि एक महान संकल्प है—कि यह कला नई पीढ़ियों के दिलों में बसे, विश्व भर में गूँजे और समय की सीमाओं को पार कर अनश्वर बन जाए।
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