लोकसभा चुनाव- मंडल बनाम कमंडल 

लोकसभा चुनाव- मंडल बनाम कमंडल 

 
             (नीरज शर्मा'भरथल')
 
राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है नारे के साथ सत्ता में आए विश्वनाथ प्रताप सिंह मंडल कमीशन की सिफारिशों को देश में लागू करते ही सवर्ण समुदाय की नजर में राजा नहीं रंक है, देश का कलंक' में बदल हो गए। नए-नए बने  प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने 1989 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम बनाया। उसके बाद 7 अगस्‍त 1990 को वर्षो से अटकी पड़ी मंडल आयोग सिफारिशों को लागू कर दिया। मंडल कमीशन ऐक्‍ट लागू होने के बाद सरकार को देश भर में विरोध का सामना करना पड़ा। जब सरकार ने इसे लागू करने का फैसला लिया तो छात्रों ने विरोध में आत्मदाह किया।  उनके कार्यकाल के दौरान रुबैया सईद का अपहरण हुआ और  आतंकवादियों को रिहा किया गया।
 
उन्ही के समय में 1990 में कश्मीर घाटी से लाखों  हिंदुओं का पलायन हुआ। इसी बीच 25 सितंबर 1990 को भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवानी ने श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से श्री अयोध्या जी तक रथ यात्रा आरंभ की। वी.पी.सिंह के आदेश पर बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार ने लालकृष्ण आडवानी की रथ यात्रा रोकी और उन्हे गिरफ्तार कर लिया। भाजपा जिसके बाहरी समर्थन से केन्द्र सरकार चल रही थी ने सरकार के इस कदम के विरोध में ने नेशनल फ्रंट से अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार अविश्वास मत हार गई। वी.पी. सिंह ने 7 नवंबर 1990 को इस्तीफा दे दिया। उनका प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल 343 दिनों का रहा। 64 सांसदो के साथ चंद्रशेखर ने जनता दल छोड दी और समाजवादी जनता पार्टी बनाई। कांग्रेस ने चंद्रशेखर को बाहर से समर्थन दिया। उन्होंनें ने 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और सरकार का गठन किया। लगभग चार महीने बाद ही कांग्रेस ने उन पर राजीव गांधी की जासूसी करवाने का आरोप लगा समर्थन वापिस ले लिया।
 
चंद्रशेखर की सरकार अल्पमत में आ गई और उन्होने  6 मार्च 1991 प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कोई दल सरकार बनाने की स्थिति में नही था। राष्ट्रपति 13 मार्च 1991 को तत्कालीन लोकसभा को भंग कर चुनावो की घोषणा कर दी। इस बीच चंद्रशेखर कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर काम करते रहे। भारतीय इतिहास के दसवें लोकसभा चुनाव 20 मई से 28 मई के बीच तीन चरणों में होने तय हुए। इन चुनावों में कुल 502100000 से अधिक मतदाताओं को एक बार फिर अपनी सरकार चुनने का मौका दिया गया। चुनावों से पहले जमकर ध्रुवीकरण हुआ। दो सबसे महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दे रहे जो थे मंडल आयोग और श्रीराम जन्मभूमि। इन चुनावों को मंडल- कमंडल चुनाव भी कहा जाता है। पहले चरण के चुनाव होने के अगले ही दिन राजीव गांधी की 21 मई 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में चुनाव प्रचार करते हुए लिट्टे की आत्मघाती महिला आतंकी ने बम विस्फोट से राजीव गांधी की हत्या कर दी।
 
सक्रिय राजनीति से संन्यास की राह पकड़ चुके पीवी नरसिंहराव को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान मतदान का एक चरण पूरा हो चुका था, जिसमें करीब दो सौ सीटों के लिए वोट डाले जा चुके थे। करीब साढ़े तीन सौ सीटों के लिए मतदान राजीव गांधी की हत्या के बाद हुआ था। राजीव की हत्या के बाद जून के मध्य तक चुनाव को स्थगित कर दिया गया। पंजाब में लोकसभा चुनाव बाद में कराए गए। जबकि जम्मू-कश्मीर में आम चुनाव नहीं करवाने का फैसला हुआ। राजीव हत्या के बाद चुनाव 15 दिन के लिए टाल दिए गए। दूसरे चरण के चुनाव 12 जून को और तीसरे चरण के चुनाव 15 जून को हुए। इन चुनावों में 57 फीसदी वोट पड़े। एक बार फिर अस्पष्ट जनादेश आया और त्रिशंकु लोकसभा बनी। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।  कांग्रेस को सबसे ज्यादा 232 सीटें मिलीं। भारतीय जनता पार्टी 120 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। जनता दल को सिर्फ 59 सीटें मिलीं। चुनावी आंकडे गवाही देते हैं कि यदि राजीव गांधी की हत्या न हुई होती तो कांग्रेस को शायद 200 सीटें भी हासिल नहीं हो पातीं।
 
राजीव की हत्या के बाद सहानुभूति का एक झोंका आया और कांग्रेस को करीब 40 सीटों का फायदा हुआ। राजीव गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में मतदान उनकी हत्या से पहले ही हो चुका था। वहां राजीव गांधी मरणोपरांत विजयी रहे। बाद में वहां हुए उपचुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा जीतकर लोकसभा में पहुंचे। इन चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा में पहुंचे दो सदस्य बाद में देश के राष्ट्रपति बने। पहले के.आर नारायणन और बाद में प्रतिभा पाटिल। 1991 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से जो प्रमुख नेता लोकसभा में पहुंचे उनमें मध्य प्रदेश के सतना से अर्जुन सिंह, रायपुर (अब छत्तीसगढ में) से विद्याचरण शुक्ल, छिंदवाडा से कमल नाथ, ग्वालियर से माधवराव सिंधिया, राजगढ़ से दिग्विजय सिंह, असम के कालियाबोर से तरुण गोगोई,
 
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से सलमान खुर्शीद, आंध्र प्रदेश के कुरनूल से विजय भास्कर रेड्डी, केरल के ओट्टापलम से केआर नारायणन, बंगलुरू उत्तर से सीके जाफर शरीफ, महाराष्ट्र के कोलाबा से एआर अंतुले, मुंबई उत्तर से मुरली देवड़ा, मुंबई उत्तर-पश्चिम से सुनील दत्त, अमरावती से प्रतिभा पाटिल, लातूर से शिवराज पाटिल, मेघालय की तुरा सीट से पीए संगमा, तमिलनाडु की शिवगंगा से पी. चिदंबरम, राजस्थान के जोधपुर से अशोक गहलोत, उदयपुर से गिरिजा व्यास, नागौर से नाथूराम मिर्धा, भीलवाड़ा से शिवचरण माथुर, दौसा से राजेश पायलट, सीकर से बलराम जाखड़, आंध्र प्रदेश में कडप्पा से वाईएस राजशेखर रेड्डी, कोलकाता से अजीत कुमार पांजा और ममता बनर्जी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
 
लोकसभा पहुंचने वाले विपक्षी दिग्गजों में भाजपा से अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, विजयाराजे सिंधिया, जसवंत सिंह, शंकर सिंह वाघेला, जनता दल से जॉर्ज फर्नांडीस, रवि राय, एचडी देवगौड़ा, शरद यादव, अजीत सिंह, मोहन सिंह, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार, समाजवादी जनता पार्टी से चंद्रशेखर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से सोमनाथ चटर्जी, बासुदेव आचार्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से इंद्रजीत गुप्त, गीता मुखर्जी, सैफुद्दीन चौधरी, फॉरवर्ड ब्लॉक से चित्त बसु, बसपा कांसीराम आदि प्रमुख थे। हालांकि शरद यादव उत्तर प्रदेश के बदायूं संसदीय क्षेत्र से हार गए थे, लेकिन जल्दी ही बिहार के मधेपुरा से उपचुनाव के जरिए लोकसभा में पहुंच गए थे।
 
कांग्रेस से नारायण दत्त तिवारी, जगन्नाथ मिश्र, बलिराम भगत, आरिफ मोहम्मद खान, प्रियरंजन दासमुंशी, मेनका गांधी, तारिक अनवर जनार्दन पुजारी आदि वरिष्ठ नेता चुनाव हारने वालों में प्रमुख थे। विपक्ष नेताओं में चौधरी देवीलाल और रामकृष्ण हेगड़े जैसे दिग्गज भी लोकसभा तक पहुंचने में नाकाम रहे। समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर लड़ीं मेनका गांधी भी चुनाव हार गईं। 21 जून 1991 को कांग्रेस के पी.वी. नरसिंहराव ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री बने पी.वी. नरसिंहराव ने यह लोकसभा चुनाव नही लड़ा था। वे बाद में आंध्रप्रदेश की नांदयाल सीट से उपचुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे।

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