नितीश के लगातार तेजस्वी से मिलने के क्या हैं करण

नितीश के लगातार तेजस्वी से मिलने के क्या हैं करण

बिहार विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से अधिक वाकी है लेकिन वहां सरगर्मियां अभी से तेज हो गई हैं। विदित हो कि केंद्र की एनडीए सरकार नितीश कुमार के सहारे पर टिकी है वहीं बिहार में भी भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू ( नितीश कुमार की पार्टी ) का गठबंधन है। अभी हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो बार आरजेडी नेता तेजस्वी यादव से मिल चुके हैं। हालांकि इस मुलाकात को एक औपचारिक मुलाकात बताया जा रहा है लेकिन राजनैतिक गलियारों में इसकी चर्चा तेज हो गई है। लोगों का मानना है कि क्या नितीश कुमार फिर से खेला करेंगे।
 
यह सत्य है कि नितीश कुमार केन्द्र की सरकार से पूरी तरह से खुश नहीं हैं और बिहार विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने जेडीयू के सामने एक बात रखी थी कि अबकी बार बिहार में मुख्यमंत्री भजपा का होगा। जिसे नितीश कुमार कभी नहीं मान सकते। नितीश अभी हाल ही में दो बार पलटी मार चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर उन्होंने बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था ढाई साल सरकार चलाने के बाद वह भाजपा से गठबंधन तोड़ कर तेजस्वी यादव से मिल गये। कुछ समय सरकार चली और वह फिर से भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में वापिस चले गए और लोकसभा का चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा।
 
नितीश कुमार का अगला कदम क्या होगा यह कोई नहीं बता सकता। इस सप्ताह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच कम से कम दो बार मुलाकात हुई हैं। ये बैठकें जातीय जनगणना और उससे जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित थीं। पहली मुलाकात एक आधिकारिक बैठक के रूप में हुई थी, और इसके बाद एक और मुलाकात हुई, जिससे बिहार की राजनीतिक हलचलें तेज हो गईं। बीजेपी नेताओं ने इस मुलाकातों को लेकर आलोचना भी की है।
 
खासकर यह दावा किया गया है कि बिहार सरकार तेजस्वी यादव के इशारे पर नहीं चलेगी। क्या तेजस्वी का इस सरकार में दखल है, और नितीश सरकार चलाने में तेजस्वी से चर्चा क्यों कर रहे हैं। यह बात भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को बिल्कुल रास नहीं आ रही है। यदि बिहार में कुछ खेला होता है तो इसका असर स्वाभाविक रुप से केन्द्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा। क्यों कि केन्द्र सरकार के एक पिलर नितीश कुमार की पार्टी जेडीयू भी है। तेजस्वी से इन मुलाकातों पर भारतीय जनता पार्टी आलाकमान की भी नजर होगी। 
 
केन्द्र में इस बार भारतीय जनता पार्टी को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत नहीं मिला है और वह पूरी तरह से नितीश कुमार और चन्द्र बाबू नायडू पर निर्भर है। और ऐसे में यदि नितीश कुमार बिहार में कुछ नया करने जा रहे हैं तो केन्द्र की सरकार मुश्किल में आ सकती है। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव पहले ही यह बात बोल चुके हैं कि केंद्र की यह सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है।तो फिर क्या यह माना जाये कि देश की राजनीति में कुछ उबाल आने वाला है।
 
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू को विशेष तवज्जो नहीं दी गई है और न ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। हां यह जरूर है कि एक स्पेशल पैकेज बिहार को दिया गया है। और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से जब पूछा गया था कि आपकी बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग को नहीं माना गया है तो नितीश कुमार का कहना था कि जब स्पेशल पैकेज दे दिया गया है तो फिर बात ही खत्म हो गई। नितीश कुमार कभी एक दम से निर्णय नहीं लेते हैं वह समय देते हैं और जब निर्णय लेते हैं तो किसी की समझ में नहीं आता है।
इस समय भी नितीश कुमार की राजनीति किसी के समझ में नहीं आ रही है कि वह क्या चाहते हैं और उनका अगला कदम क्या होगा। 
 
नितीश अभी कल ही लालू प्रसाद यादव के घर पहुंचे और उनके हालचाल लिए। इसके बाद तेजस्वी यादव से भी उनकी बातचीत हुई। यह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चिंता का विषय है और राज्य के कई भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इसका विरोध भी किया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि बिहार सरकार में तेजस्वी यादव का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। लेकिन यदि राजनैतिक विशेषज्ञों की बात करें तो यह मुलाकात मात्र औपचारिकता नहीं है, इसमें कई राजनीतिक मुद्दे छिपे हुए हैं। और नितीश कुमार तो ऐसे कार्यों के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं। आने वाले समय में इसके परिणाम दिखने लगेंगे।
 
भाजपा आलाकमान या तो नितीश कुमार की जो नाराज़गी हैं उनको दूर करेंगे और या नितीश कुमार कोई अगला कदम उठा सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में अभी एक वर्ष का समय है। और भारतीय जनता पार्टी ने नितीश के सामने एक प्रश्न रखा था कि अगले चुनाव में बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा भारतीय जनता पार्टी से होगा जिसपर नितीश कुमार ने नाराज़गी भी जताई थी। बिहार के लिए यह कहा जा जाता है कि जब तक नितीश कुमार राजनीति में हैं तब तक वहां मुख्यमंत्री का चेहरा और कोई नहीं हो सकता क्योंकि नितीश के पास दो विकल्प बराबर रहते हैं और वह इन विकल्पों का प्रयोग भी करते रहते हैं। वह कभी भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगा कर आरजेडी के साथ आ जाते हैं और कभी आरजेडी छोड़कर फिर से भारतीय जनता पार्टी से मिल जाते हैं। सबसे ज्यादा बार शपथ ग्रहण करने का भी रिकार्ड है।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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