पांच त्योहारों की श्रृंखला दीपोत्सव पर्व
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समस्त विश्व में दिपावली का त्यौहार हर साल पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। दीपावली का त्यौहार एक दिन का त्योहार नही है बल्कि पांच दिनों के त्योहारों की एक श्रृंखला है। दीपावली का पावन पर्व धनतेरस से आरंभ होकर भैया दूज पर जाकर संपन्न होता है। पांच दिनों के इस महापर्व में हर दिन विशेष महत्व रखता है। पंचदिवसिय महापर्व के पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन छोटी दिवाली, तीसरे दिन दिवाली ?पर्व, चौथे दिन गोवर्धन पूजा और पांचवे दिन भैया दूज का पर्व मनाया जाता है। पांच त्योहारों की इस श्रृंखला को त्योहारों का राजा भी कहा जाता है। पांच दिनों के महापर्व दीपावली में पहला पर्व है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाए जाने वाला धनतेरस।
इस दिन समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरी हाथ में अमृत-कलश लेकर प्रकट हुए थे। इनके दृष्टिपात से सूखी खेती हरित होकर लहलहा उठती थी। मृत जीवित हो आता था। वैद्यगण इस दिन धन्वंतरी जी का पूजन करते हैं और वर मांगते हैं कि उनकी औषधि व उपचार में ऐसी शक्ति आ जाए जिससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ हो। लोग इस दिन अमृत पात्र को स्मरण कर नए बर्तन घर में लाकर धनतेरस मनाते हैं। आज के दिन ही बहुत समय से चले आ रहे मन मुटाव को त्याग कर यमराज ने अपनी बहन यमुना से मिलने हेतु स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रस्थान किया था।
गृहणियां इस दिन से अपने घर की देहरी पर दीपक दान करती हैं, जिससे यमराज मार्ग में प्रकाश देखकर प्रसन्न हों और उनके गृह जनों के प्रति विशेष करुणा रखें। इस श्रृंखला में अगला त्योहार जो कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है इसे नरक चौदस और रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी और दंभी राक्षस नरकासुर का वध करके उसकी कैद से सोलह हजार कन्याओं और अन्य कैदियों को मुक्त करवाया था। अपने अंतिम समय में नरकासुर ने भगवान श्रीकृष्ण से अपने पापों के लिए क्षमा मांगी और पश्चाताप किया। जिस से प्रसन्न हो भगवान ने वर दिया कि यह दिन सदैव नरक चौदस के नाम से याद किया जाएगा।
इसी दिन भगवान विष्णु जी ने पराक्रमी और महान दानी राजा बलि के दंभ को अपनी कूटनीति से वामन रूप धारण कर नष्ट किया। राजा बलि भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे। वे असुरराज विरोचन और देवाम्बा के पुत्र थे। राजा बलि एक महान योद्धा और दानवीर थे। राजा बलि ने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। जिससे पूरी सृष्टि की व्यवस्था बिगड गई। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में जन्म लिया और राजा बलि को अपनी कूटनीति से परास्त किया। वामन देव ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान मांगी। राजा बलि ने दान करने का संकल्प ले लिया। वामन देव ने पहले दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया।
तीसरे पग के लिए जब कोई स्थान नही बचा तो राजा बलि ने तीसरे पग के लिए अपना मस्तक आगे कर दिया। वामन देव ने अपने पग के भार से बलि को पाताल में पहुंचा दिया। राजा बलि सप्तचिरजीवियों में से एक हैं। राजा बलि को चिरंजीवी वरदान प्राप्त था। इस लिए उनकी मृत्यु नहीं हो सकती। इस लिए वामन देव ने राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और स्वर्ग लोक फिर से इंद्र को सौंप दिया। इसे त्योहार को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन पांच या सात दीये जलाने की परंपरा है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली पूरे विश्व में मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। यह अनेक घटनाक्रमों से युक्त दिन भी है।
यह त्योहार सनातन धर्म में से निकले धर्मों में भी अलग अलग मान्यताओं के कारण पूरी श्रृद्धा से मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी, श्री लक्ष्मण जी, माता सीता सहित अपना वनवास पूर्ण कर और लंका विजय कर श्री अयोध्या जी लौटे थे। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर अहिंसा की प्रतिमूर्ति भगवान महावीर स्वामी भी इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने भी आज ही के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। श्री राम के स्वरूप को मानने वाले स्वामी रामतीर्थ परमहंस का तो जन्म व जल समाधि दोनों ही दिवाली के दिन हुए। दिवाली के दिन सिख धर्म के छठे गुरु हरगोबिंद जी को मुगल जहांगीर की कैद से आज़ादी मिली थी।
पराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने भी आज ही के दिन विजय पर्व मनाया था। दिवाली को रोशनी का त्योहार भी कहा जाता है। जब श्री राम, माता सीता जी और लक्ष्मण जी अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने पूरा नगर घी के दीपक जला कर जगमगा दिया था। दीवाली पर्व की रात पूरा विश्व दीपकों की रोशनी से जगमगा उठता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन भी लोग पूरी श्रृद्धा से करते हैं। माता लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है। दीवाली के उत्सव पर धन प्राप्ति की कामना के साथ मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी विश्व विचरण करती हैं और इसी रात उनका घरों में आगमन होता है।
यह भी एक सच्चाई है कि धन का आगमन व्यक्ति की बुद्धि पलट देता है अर्थात व्यक्ति को अधिक धन पर अभिमान होने लगता है। ऐसे में धन की देवी के साथ-साथ बुद्धि के देवता अर्थात गणेश जी की भी पूजा की जाती है। ताकि जब व्यक्ति के पास धन आए तो वह इसका बुद्धि से उपयोग कर सके। इस श्रृंखला का चौथा त्योहार है कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व, यह त्योहार कृषि प्रधानता, पशुधन, उद्योग व व्यवसाय का प्रतीक है। इसी दिन श्री कृष्ण ने अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को छत्र की तरह धारण करके गाय माता तथा लोगों की इंद्र देव के प्रकोप से रक्षा की थी।
यह गोवर्धन पर्व अन्नकूट के नाम से विख्यात है। इस दिन नाना प्रकार के खाद्यान्न बनाए जाते हैं। घी, दूध, दही से युक्त प्रसाद का भोग भगवान को लगाया जाता है। शिल्पकार व श्रमिक वर्ग आज के दिन भगवान विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं। आज चहुंमुखी विकास और वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं। इन त्योहारों की श्रृंखला में पांचवा और आखिरी त्योहार है भैया-दूज का पर्व, बहन भाई के स्नेह प्रतीक इस त्योहार को यम द्वितीया भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन कार्तिक शुक्ल की दूज को यमराज दिव्य स्वरूप में अपनी बहन यमुना से भेंट करने पहुंचे थे। यमुना ने यमराज को मंगल तिलक कर स्वादिष्ट व्यंजनों का भोजन करवा कर आशीर्वाद प्रदान किया था।
(नीरज शर्मा'भरथल')
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