नगर पालिका अकबरपुर ने सुलझाया नाथू बाबा मंदिर की संपत्ति विवाद
रामअचल गौड़ की समिति का स्वामित्व वैध, स्व. साधू गौड़ की आपत्ति खारिज
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अम्बेडकरनगर। अकबरपुर के वार्ड सं. 8, मीरानपुर में स्थित एक संपत्ति विवाद ने गोडिया समाज के भीतर गहरी दरारें उत्पन्न कर दी हैं। यह विवाद नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति और स्व. साधू गौड़ के परिवार के बीच में है। विवाद की जड़ यह है कि मंदिर सेवा समिति, जो रामअचल गौड़ की अध्यक्षता में पंजीकृत संस्था है, का दावा है कि मकान संख्या 631 से 636 तक की यह संपत्ति समिति की है, जो नाथू बाबा के स्मारक स्थल के रूप में है। वहीं, स्व. साधू गौड़ ने इस संपत्ति पर अपना अधिकार जताते हुए अपनी समिति बनाई है और विवादित संपत्ति का प्रबंधन अपने हाथों में लेना चाहा है।
पृष्ठभूमि और विवाद का प्रारंभ
नाथू बाबा को गोडिया समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है, जिन्हें समाज का पूर्वज माना जाता है। उनकी स्मृति में एक मंदिर का निर्माण किया गया है, जहां उनकी समाधि भी स्थित है। इस स्थल का स्वामित्व नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति के पास है। यह समिति एक पंजीकृत संस्था है और रामअचल गौड़ इसके वर्तमान अध्यक्ष हैं। मंदिर सेवा समिति का कहना है कि विवादित मकान नंबर 631 से 636 तक, जो कि परिवार रजिस्टर में नाथू महरा के नाम से दर्ज है, उनके ट्रस्ट का हिस्सा है और इस पर समिति का पूर्ण स्वामित्व है।
वहीं, स्व. साधू गौड़ ने नाथू महरा गौड़ समाज समिति नाम से एक अन्य संस्था का गठन किया और खुद को उसका प्रबंधक बताते हुए दावा किया कि इस संपत्ति पर उनका भी हक है। उनके दावे का आधार उनके पूर्वजों का इस संपत्ति पर कब्जा और किरायेदारी है। स्व. साधू गौड़ के परिवार ने उनके पिता द्वारा इस संपत्ति पर अधिकार का दावा किया है, लेकिन रामअचल गौड़ की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों के अनुसार स्व. साधू गौड़ के पिता बिन्दा ने 1978 में संपत्ति को किराए पर होने की बात मान ली थी।
रामअचल गौड़ द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य
रामअचल गौड़ ने संपत्ति के मालिकाना हक को प्रमाणित करने के लिए कई कानूनी और ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत किए। इनमें 1428 फसली खतौनी की नकल, 1953 का भूमि बिक्री दस्तावेज, 1961 का वक्फनामा और दीवानी अदालत के फैसले की नकल शामिल हैं। इन दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि विवादित भूमि गोडिया समाज की है, जिसे नाथू महरा के नाम पर वक्फ किया गया था। इस संपत्ति का इस्तेमाल समाज ने दुकानों का निर्माण करने के लिए किया, जिन्हें मासिक किराए पर अलग-अलग व्यक्तियों को दिया गया। इसके जरिए ट्रस्ट के रखरखाव और मंदिर की गतिविधियों के लिए धन जुटाया जाता रहा है।
1953 के दस्तावेज के अनुसार, बाबूलाल और उनके साथियों ने यह संपत्ति पीरपुर के राजा सैय्यद अहमद मेहदी से खरीदी थी। बाद में 1961 में इस भूमि को नाथू महरा देवस्थान के नाम पर वक्फ कर दिया गया। इसके बाद गोडिया समाज के कुछ सदस्यों ने देवस्थान के नाम पर नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति का गठन किया और मंदिर के प्रबंधन का कार्य इस समिति को सौंप दिया। इस समिति के वर्तमान अध्यक्ष रामअचल गौड़ ने प्रमाण पत्रों के साथ समाज के सदस्यों का नाम दर्ज कराया है, जिसमें यह साबित होता है कि संपत्ति का स्वामित्व मंदिर सेवा समिति के पास ही है।
स्व. साधू गौड़ का दावा और आपत्ति
दूसरी ओर, स्व. साधू गौड़ ने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए नाथू महरा गौड़ समाज समिति के नाम से एक अन्य समिति का गठन किया और खुद को उसका प्रबंधक बताते हुए संपत्ति पर अपना अधिकार जताया। उन्होंने अपनी समिति के पंजीकरण से संबंधित दस्तावेज और अपने पिता के बयान प्रस्तुत किए हैं। स्व. साधू दावा करता है कि उनकी संस्था का नाथू महरा मंदिर की संपत्ति से कोई संबंध नहीं है, लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया कि विवादित भूमि नाथू महरा की ही है। इसके अलावा, स्व. साधू के पिता बिन्दा ने भी दीवानी मुकदमे में स्वयं को किरायेदार मान लिया था।
स्व. साधू गौड़ की आपत्ति में दावा किया गया कि जिस भूमि पर नाथू महरा की समाधि है, वह राजा सैय्यद अहमद मेहदी तालुकदार से बाबूलाल और उनके साथियों द्वारा हासिल की गई थी। उन्होंने नाथू महरा की संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा करते हुए रामअचल गौड़ के स्वामित्व को चुनौती दी है। इसके जवाब में रामअचल गौड़ का कहना है कि स्व. साधू गौड़ और उनके पिता पहले भी संपत्ति को लेकर दीवानी न्यायालय में अपना पक्ष रख चुके हैं और उस समय उन्होंने संपत्ति को किराए पर होने की बात मानी थी।
अदालत का आदेश और कानूनी स्थिति
अम्बेडकरनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस मामले पर विचार करते हुए निर्णय सुनाया कि यह मामला स्वामित्व से संबंधित है, जिसे नगर पालिका परिषद द्वारा तय नहीं किया जा सकता है। अदालत के आदेश के अनुसार नगर पालिका परिषद को गृहकर वसूली के लिए स्वामित्व पर राय बनाने का अधिकार नहीं है, परंतु उसे यह निर्णय लेना आवश्यक है कि किससे गृहकर वसूला जाए। दीवानी अदालत द्वारा दिए गए फैसले को ध्यान में रखते हुए, रामअचल गौड़ का पक्ष मजबूत होता नजर आया।
अदालत के इस फैसले के बाद स्व. साधू गौड़ की आपत्ति को निरस्त कर दिया गया और परिवार रजिस्टर में नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति को मकान मालिक के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया गया। आदेश में स्पष्ट किया गया कि परिवार के कालम में किरायेदारों का नाम दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि किरायेदार समय-समय पर बदलते रहते हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पूर्व में स्व. साधू गौड़ के पिता ने खुद को किरायेदार मान लिया था, इसलिए इस फैसले के खिलाफ स्व. साधू गौड़ के पास अब कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
विवाद का निष्कर्ष
यह मामला केवल एक संपत्ति विवाद नहीं है, बल्कि इसके जरिए गोडिया समाज की आस्थाओं और उसके ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण का प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ है। रामअचल गौड़ और उनकी समिति का दावा है कि नाथू महरा की स्मृति में स्थापित मंदिर और उसके आसपास की संपत्ति का प्रबंधन समिति के हाथों में रहना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह धरोहर सुरक्षित रहे। वहीं, स्व. साधू गौड़ और उनके समर्थक अपने पारिवारिक संबंधों के आधार पर इस संपत्ति पर अधिकार जताने का प्रयास कर रहे हैं, जो कि दीवानी अदालत के पुराने फैसले के अनुसार अस्वीकार्य है।
अदालत के आदेश से यह स्पष्ट होता है कि विवादित स्थल नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति की मिल्कियत है और वर्तमान में रामअचल गौड़ इसके अध्यक्ष हैं। इस निर्णय ने न केवल नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति की वैधता को स्थापित किया, बल्कि इस विवाद में स्व. साधू गौड़ की आपत्ति को भी बलहीन साबित कर दिया।
यह विवाद बताता है कि कैसे गोडिया समाज की सांस्कृतिक धरोहरों को लेकर दो पक्षों में टकराव हुआ है। हालांकि, कानूनी दस्तावेजों और अदालत के फैसले ने यह स्पष्ट किया है कि नाथू महरा की स्मृति में बनाई गई संपत्ति का प्रबंधन नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति के पास रहेगा। स्व. साधू गौड़ की आपत्ति को खारिज कर देने से यह भी स्पष्ट हुआ कि नाथू महरा की संपत्ति के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बनाई गई संस्था को मान्यता नहीं दी जा सकती है।
इस आदेश के साथ ही नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति को विवादित संपत्ति के मालिक के रूप में परिवार रजिस्टर में दर्ज करने का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा, परिवार के कालम में किरायेदारों के नामों को हटाने का आदेश भी जारी किया गया है, जो कि समिति के स्थायित्व और संपत्ति पर उसके अधिकार को मजबूत बनाता है।
इस प्रकार, यह संपत्ति विवाद, जो कि एक धार्मिक स्थल से जुड़ा है, में नाथू बाबा मंदिर सेवा समिति का पक्ष मजबूत साबित हुआ है। समाज की इस संपत्ति का संरक्षण और प्रबंधन अब कानूनी रूप से समिति के अधिकार में रहेगा।
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