निशाने पर रहते हैं गौतम अडानी! 

निशाने पर रहते हैं गौतम अडानी! 

पिछले कुछ सालों में तेज़ी से उभरे भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी अक्सर निशाने पर बने रहते हैं चाहे देश के विपक्षी दल के नेता हो या सरकार के विरोधी आरोप हमेशा अडानी पर लगाते हैं। हाल ही में  अमेरिकी एजेंसियों द्वारा लगाए गए रिश्वतखोरी के आरोप से भारत सहित पूरी दुनिया में खलबली मचना स्वभाविक है, क्योंकि अडानी ग्रुप का कारोबार पूरी दुनिया भर में फैला हुआ है। अमेरिकी एजेंसियों के तरफ से आरोप लगाए गए है कि अमेरिकी निवेशकों से लिए पैसों का इस्तेमाल कथित तौर पर भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए किया गया था।
 
अमेरिकी प्रोसिक्यूटर और प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (एसईसी) द्वारा दायर किए गए आरोपों में अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी, उनके भतीजे सागर अडानी और अडानी ग्रीन एनर्जी के पूर्व सीईओ विनीत जैन पर सौर एनर्जी कॉन्टैक्ट के लिए अपने हिसाब से शर्तों को लागू करने के लिए 2020 से 2024 तक एक योजना बनाने का आरोप लगाया गया है। आरोप है कि भारत में सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट के ठेके हासिल करने के लिए उन्होंने भारतीय अधिकारियों को लगभग 2,250 करोड़ रुपये की रिश्वत खिलाई।
 
अडानी ग्रुप ने इन प्रोजेक्ट के लिए अमेरिकी निवेशकों से फंड जुटाया था, यही वजह है कि अमेरिकी कोर्ट में उनके खिलाफ ये मामला आया है। इन प्रोजेक्ट से समूह को 20 वर्षों में करीब 2 अरब डॉलर के मुनाफे का अनुमान था। इस पूरे मामले में गौतम अडानी, अडानी ग्रीन एनजों के कार्यकारी निदेशक सागर अडानी, एज्योर पावर के सीईओ रहे रंजीत गुप्ता, एज्योर पावर में सलाहकार रूपेश अग्रवाल अमेरिकी इश्युअर हैं। मामले के केंद्र में अडानी ग्रीन एनर्जी और एक अन्य रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी, एज्योर पावर द्वारा सरकारी स्वामित्व वाली सोलर एनर्जी कॉपर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) को 12 गीगावाट सोलर एनर्जी सप्लाई करने का कॉन्ट्रैक्ट था।
 
देखा जाए तो इससे पहले अडानी समूह पर हिंडनबर्ग ने आरोप लगाए थे। यथा संभव समूह ने हिंडनबर्ग के तीखे हमलों का मुकाबला बखूबी किया था, लेकिन इस बार उसे जटिल विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, कारोबारी समूह ने रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी के आरोपों को निराधार कहकर खारिज किया है। कंपनी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि जैसा कि अमेरिकी न्याय विभाग ने खुद बताया है कि अभियोग में लगाए गए आरोप जब तक साबित नहीं हो जाते, तब तक प्रतिवादियों को निदर्दोष माना जाता है। सभी संभव कानूनी उपाय किए जाएंगे। अडानी घुष के तरफ से कहा कि गया है कि कंपनी हमेशा शासन, पारदर्शिता और विनियामक अनुपालन के उच्यतम मानकों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
 
कंपनी अपने हितधारकों, भागीदारों और कर्मचारियों को आश्वस्त करते हैं कि ग्रुप एक कानून का पालन करने वाला संगठन हैं, जो सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है। लेकिन देखा जाए तो जिस प्रकार से आरोप लगे हैं, अब अडानी समूह के पास लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिये खुद को तैयार करने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता। हालांकि आर्थिक जानकारों का मानना है कि अडानी पर आरोप साजिश के तहत लगाया जा रहा है। इसके कई कारण सामने आ रहे हैं। भारत सरकार और कारोबारी जगत हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के समय को लेकर चिंतित हैं। रूसी मीडिया संस्थान स्युतनिक की भारतीय शाखा स्युतनिक इंडिया के मुताबिक, जानकार इसे 'डीप स्टेट' की साजिश मान रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि 'डीप स्टेट' मोदी सरकार को अस्थिर करना चाहता है।
 
बांग्लादेश में अमेरिका की भूमिका को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। जानकार मानते हैं कि बाजार नियामक संस्थान भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के खिलाफ अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनवर्ग रिसर्च की रिपोर्ट भी' डीप स्टेट' की चालों की ही एक कड़ी है। उद्योग सूत्रों ने स्पुतनिक इंडिया को बताया है कि इसका मकसद भारतीय संस्थानों में विश्वास कमजोर करना है। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश में सफल मगर अमेरिका में नाकाम डीप स्टेट दोबारा अडानी के बहाने भारत पर बुरी नजर डाल रहा है। भारतीय अधिकारियों को हिंडनबर्ग रिसर्च की इस कोशिश के बारे में बताया गया है।
 
उनका कहना है कि ये पश्चिमी ताकतों की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को अस्थिर करने के प्रयास हैं। कहा जा रहा है कि 'डीप स्टेट' भारत की जड़ें हिलाने के लिए मोदी सरकार को अस्थिर करना चाहता है। बाजार नियामक संस्थान भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के खिलाफ अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट को भी 'डीप स्टेट' की चालों की ही एक कड़ी बताया जा रहा था। स्पुतनिक इंडिया ने वैश्विक उद्योग सूत्रों के हवाले से बताया है कि डीप स्टेट का मकसद भारतीय संस्थानों और कारोबारियों में जनता का विश्वास कमजोर करना है। बांग्लादेश समेत दक्षिण एशिया के कई देशों के अलावा खुद अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान साफ तौर पर यूएस डीप स्टेट की भूमिका देखी गई थी।
 
अमेरिका में दूसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने प्रचार के दौरान जानलेवा हमले के बाद सार्वजनिक तौर पर इसको लेकर गंभीर चिंता जताई थी। डीप स्टेट किसी भी राज्य के राजनीतिक नेतृत्व से अलग स्वतंत्र रूप से अपने निजी एजेंडे और लक्ष्यों की खोज में काम करती है। पब्लिक स्फीयर में यह शब्द काफी ज्यादा नकारात्मक अर्थ रखता है और अक्सर इसका मकसद साजिश के सिद्धांतों से जुड़ा होता है। इससे साफ हो जाता है कि अडानी के खिलाफ यह पूरा मामला साजिश भी हो सकता है, क्योंकि पिछले दशक में गौतम अडानी समूह ने अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाहों से लेकर पावर सेक्टर तक में तेजी से अपना कारोबार बढ़ाया है। इससे अमेरिका के साथ संबंधों पर भी असर पड़ने की संभाना है।
 
दरअसल भारत के रूस से गहरे होते रिश्तों व चीन से सुधरते संबंधों के बीच अमेरिका व कनाडा समेत पश्चिमी देशों में भारत को लेकर वक्र दृष्टि देखी जा रही है। अडानी प्रकरण को भी अमेरिका व भारत के बीच तल्खी के आलोक में देखा जा रहा है। अमेरिका ने इससे पहले आरोप लगाया था कि भारत सरकार के एक कर्मचारी ने न्यूयॉर्क में एक अमेरिकी नागरिक व सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने की साजिश रची थी। बहरहाल, अब देखना होगा कि ट्रंप की ताजपोशी के बाद दोनों देशों के रिश्ते कैसे रहते हैं। लेकिन इसमें कोई दोमत नहीं है कि इस मामले में पारदर्शी तरीके से जांच होनी चाहिए, ताकि वास्तविक सच्चाई सामने आ सकें। साथ ही जिस प्रकार से विपक्ष अडानी को घेरने में जुटा है, उसको इस प्रवृति से बाज आना चाहिए। विपक्ष को चाहिए कि वह इस मामले में अडानी और सरकार को घेरने के बजाए वास्तविकता को समझे।
यह याद रखना जरूरी है कि अभियोग में लगे आरोप सिर्फ आरोप हैं, और जब तक किसी व्यक्ति को दोषी सिद्ध नहीं किया जाता, तब तक उसे अपराधी नही माना जाता है। भारत के विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता भी पीएम मोदी और अडानी की दोस्ती का जिक्र कर तरह तरह के आरोप लगाते रहे हैं और यह सिलसिला चुनाव के दौर में बढ़ जाता है अब अमेरिका से इस तरह के विवाद को जन्म दिया जाना किसी साजिश का हिस्सा हो सकता है।  जरूरत इस बात की है कि अडानी पर लगे आरोपों की गहराई से निष्पक्ष जांच की जाए और दूध का दूध पानी का पानी किया जाए।
मनोज कुमार अग्रवाल 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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