स्क्रीन पर टिकती नजरें, पीछे छुपा खतरा: बच्चों का भविष्य कैसा?

स्क्रीन पर टिकती नजरें, पीछे छुपा खतरा: बच्चों का भविष्य कैसा?

आज के दौर में डिजिटल शिक्षा ने ज्ञान की पहुंच को सरलव्यापक और तेज़ बना दिया है। तकनीकी प्रगति ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति ला दी हैजिससे दूरस्थ शिक्षा और ऑनलाइन शिक्षण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। लेकिन जहां इसके अनेक सकारात्मक पहलू हैंवहीं इसके दुष्प्रभाव भी कम नहीं हैं। खासकर स्कूलों द्वारा ऑनलाइन होमवर्क और अधूरे पाठ्यक्रम के नोट्स साझा करने की प्रवृत्ति ने बच्चों को मोबाइल और तकनीकी उपकरणों पर अत्यधिक निर्भर बना दिया है। यह न केवल उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा हैबल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक विकास पर भी गहरी चोट पहुंचा रहा है।

डिजिटल शिक्षा की शुरुआत ने यह उम्मीद जगाई थी कि यह शिक्षा को अधिक प्रभावीसुलभ और व्यावहारिक बनाएगी। परंतु वर्तमान परिदृश्य में इसके उपयोग ने इसकी मूल भावना को क्षीण कर दिया है। स्कूल और शिक्षकबच्चों को ऑनलाइन माध्यमों के जरिए पढ़ाई का दिखावटी समाधान दे रहे हैंजो उन्हें पूरी तरह मोबाइल और तकनीकी उपकरणों पर निर्भर बना रहा है। यह निर्भरता न केवल उनकी अध्ययन गुणवत्ता को सतही बना रही हैबल्कि उनके ज्ञान और एकाग्रता पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर नोट्स और असाइनमेंट साझा करने का उद्देश्य बच्चों की सहायता करना थालेकिन यह उन्हें पढ़ाई से भटकाकर गेम्ससोशल मीडिया और मनोरंजन की ओर खींच रहा है। परिणामस्वरूपबच्चे अध्ययन में गहराई से जुड़ने में असमर्थ हो रहे हैं और उनकी तार्किक क्षमता एवं बौद्धिक कौशल अवरुद्ध हो रहे हैं। परीक्षाओं के करीब होने के बावजूद अधिकांश स्कूल पाठ्यक्रम को केवल औपचारिकता के तहत पूरा करने में लगे हैंजबकि गहन समझ और व्यावहारिक ज्ञान पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। यह प्रवृत्ति बच्चों को रटने तक सीमित कर रही हैजिससे उनका मानसिक विकास बाधित हो रहा है। शिक्षा का यह मॉडल बच्चों को केवल अच्छे अंक पाने के लिए प्रेरित कर रहा हैजबकि शिक्षा का असली उद्देश्य उन्हें जीवन के हर पहलू में सक्षमतार्किक और स्वावलंबी बनाना है।

मोबाइल और डिजिटल उपकरणों का अत्यधिक उपयोग बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा और चिंताजनक प्रभाव डाल रहा है। लंबे समय तक स्क्रीन के सामने बैठने से बच्चों को सिरदर्दथकान और आँखों की समस्याएँ झेलनी पड़ रही हैं। उनकी शारीरिक गतिविधियाँ लगभग समाप्त हो गई हैंजिससे उनका शारीरिक विकास ठहर सा गया है। इसके साथ हीबच्चों का सामाजिक विकास भी प्रभावित हो रहा हैक्योंकि वे अपने साथियों और शिक्षकों के साथ प्रत्यक्ष संवाद करने से वंचित हो रहे हैं।

यह कमी उनके आत्मविश्वास और सामूहिकता की भावना को कमजोर कर रही है। कभी शिक्षकअभिभावक और छात्रों के बीच संवाद का पुल मानी जाने वाली स्कूल डायरी अब केवल नाममात्र की औपचारिकता बनकर रह गई है। इसका स्थान व्हाट्सऐप और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने ले लिया है। शिक्षक और अभिभावक डायरी में नोट लिखने के बजाय ऑनलाइन संदेश भेजकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री मान लेते हैं। इस परिवर्तन का परिणाम यह हुआ है कि बच्चे अपनी जिम्मेदारियों को समझने और आत्मनिर्भर बनने से दूर हो रहे हैं।

इसके अतिरिक्तडिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते उपयोग से बच्चों के नैतिक और मानसिक स्तर पर भी गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। पढ़ाई के बहाने मोबाइल का उपयोग करते हुए बच्चे कई बार अनुचित सामग्री तक पहुँच जाते हैं। सोशल मीडिया पर अत्यधिक समय बिताने के कारण उनमें हीन भावनातनाव और असुरक्षा का भाव गहराने लगा है। साइबर बुलिंग और ऑनलाइन धोखाधड़ी जैसी समस्याएँ उनके मानसिक स्वास्थ्य को और अधिक हानि पहुँचा रही हैं। यह स्थिति न केवल बच्चों के वर्तमान को प्रभावित कर रही हैबल्कि उनके उज्ज्वल भविष्य पर भी काले बादल मँडरा रही हैं।

इस समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले स्कूलों और शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारियों को पुनः परिभाषित करना होगा। शिक्षकों को केवल पाठ्यक्रम पूरा करने तक सीमित रहने के बजाय बच्चों को गहराई से समझाने और सिखाने की दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे। ऑनलाइन माध्यम का उपयोग केवल आवश्यकता तक सीमित रखना चाहिए और इसे बच्चों के विकास में सहायक बनाने पर जोर देना चाहिए। इसके साथ हीस्कूलों को बच्चों को व्यावहारिकरचनात्मक और शारीरिक गतिविधियों में शामिल करने की पहल करनी चाहिएताकि उनका समग्र विकास हो सके।

अभिभावकों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें बच्चों के मोबाइल उपयोग पर सख्त निगरानी रखनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे मोबाइल का उपयोग केवल पढ़ाई और सकारात्मक उद्देश्यों के लिए करें। बच्चों को आउटडोर खेलोंरचनात्मक गतिविधियों और परिवार के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि बच्चों को यह समझाया जाए कि मोबाइल एक साधन हैन कि उनके जीवन का केंद्र। सरकार और समाज को भी इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

डिजिटल शिक्षा को समान अवसर प्रदान करने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रभावी योजनाओं का क्रियान्वयन करना आवश्यक है। शिक्षकों और अभिभावकों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करने के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। बच्चों को डिजिटल खतरों और उनसे बचाव के तरीकों के प्रति जागरूक करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाने होंगे। इस समग्र दृष्टिकोण से ही हम डिजिटल शिक्षा को एक वरदान बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव रख सकते हैं।

तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग ही बच्चों के उज्ज्वल और सुरक्षित भविष्य की कुंजी है। यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा में अच्छे अंक दिलाना नहींबल्कि बच्चों को जीवन के हर क्षेत्र में समर्थ और आत्मनिर्भर बनाना है। जब स्कूलशिक्षकअभिभावक और समाज एकजुट होकर इस चुनौती का समाधान खोजेंगेतभी बच्चों का समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा। बच्चों का भविष्य हमारे हाथों में हैऔर यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करें।

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीक उनके लिए साधन बनेबाधा नहीं। सही दिशा और प्रयासों से हम न केवल बच्चों को एक संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देंगेबल्कि उन्हें भविष्य की चुनौतियों का डटकर सामना करने के लिए भी तैयार करेंगे। आखिरकारएक जिम्मेदार समाज वही है जो अपनी अगली पीढ़ी के लिए मजबूत नींव तैयार करे।

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