kahani
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Read More... संजीव -नी।
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By Office Desk Lucknow
चलो थोडा मुस्कुराते है।।चलो थोडा मुस्कुराते है,इस दवा को आजमाते है.कठिनाई में खिलखिलाते है,मुसीबत में भी मुस्कुराते हैं।जिसकी आदत है मुस्कुराना,वो ही ज़माने को हँसातें है।निराशा,विषाद में क्या रखा है मित्रो,उदासी को...
Read More... संजीव-नी। हमें फकीरी का भी बोझा ढोने दो।।
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By Swatantra Prabhat UP
संजीव-नी। हमें फकीरी का भी बोझा ढोने दो।। अपने खून को कई रगों में बहनें दो, कई जिस्मो में उसे जिन्दा रहने दो। खुदा-खुदा करके जीती है दुनिया , मासूमियत को जिंदगी में सांस लेने दो। रक्त,देह,नेत्र दान तो महान...
Read More... संजीव-नी। कोई कविता नहीं लिखता
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By Office Desk Lucknow
संजीव-नी।कोई कविता नहीं लिखता सड़क के लिए?सड़क बेचारीकभी सुनसान, कभी बियाबानकभी पथरीले, कभी कटीले,भीड़ के हादसे को सहते,मशीनी हाथियों का सैलाबदर्द सहती, गुमसुमचलती जाती है,दर्द की अभिव्यक्तिकिससे कहें, किसकी सुने,...
Read More... पुस्तक समीक्षा......"संघर्ष का सुख।"
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By Swatantra Prabhat Desk
बड़ा और भला होने में बड़ा फर्क है ।बड़ा तो चतुराई से तिकड़म से बना जा सकता हैं । लोग बने भी हैं , बन भी रहे हैं ।पर भला बनना तपस्या है , जो सबके बूते का...
Read More... मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक छत भी चाहिए
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By Swatantra Prabhat Desk
मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक छत भी चाहिए, जहां बैठकर मैं शहर की खूबसूरती को निहार सकूं l मुझे सिर्फ एक घर नहीं, एक खिड़की भी चाहिए, जहां बैठकर मैं बाहर के नजारे झांक सकूं l मुझे सिर्फ एक...
Read More... क्यूँ ?
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By Swatantra Prabhat Desk
क्यू तुम मेरे व्यक्तित्व पर अपना व्यक्तित्व थोपते हो ? क्यू मेरे इंन्द धनुषी स्वपनो को अपनी इच्छाओं के काले बादल से ढकते हो क्यूं मेरे हिरन रूपी मन के पैरों में अपने आदेशों की बेडियाँ जकड़ते हो? क्यूँ क्यू...
Read More... हास्य व्यंग कवि ने कविता के माध्यम से किया किसान सम्मेलन की शुरुआत
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By Swatantra Prabhat UP
उत्तर प्रदेश किसान सभा के जिला सम्मेलन के अवसर पर एक कवि सम्मेलन ग्राम डेेढुवा में हुआ. जिसमें हास्य-व्यंग्य के कवि जितेंद्र श्रीवास्तव "जित्तू भैयाने अपना काव्य पाठ करते हुए पढ़ा..
Read More... सिमरन ठक्कर नहीं रही - जानते है कैसे बचाये लटक के मरने वालो को डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से
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By Office Desk Lucknow
सब जानते है की मृत्यु अटल सत्य है और एक दिन सब को जाना है फिर भी भौतिक उपलब्धियों के पीछे हम भागते रहते है और एक दिन समय का पहिया रुक जाता है और देह को त्याग आत्मा वैकुण्ठ...
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