कुशीनगर पुलिस का बड़ा फैसला : 1994 से नहीं मनाते जन्माष्टमी पर्व

शहीद पुलिसकर्मियों की याद में रखा जाता है मौन

कुशीनगर पुलिस का बड़ा फैसला : 1994 से नहीं मनाते जन्माष्टमी पर्व

ब्यूरो रिपोर्ट प्रमोद रौनियार 
कुशीनगर(स्वतंत्र प्रभात)। जनपद में एक साथ 7 पुलिस कर्मियों की शहादत को याद करने के लिए पुलिस विभाग द्वारा जन्माष्टमी नहीं मनाने का निर्णय बहुत ही सम्मानजनक है। यह निर्णय पुलिस कर्मियों की शहादत को याद करने और उनके परिवारों के प्रति संवेदना दिखाने का एक तरीका है।
 
कुशीनगर में 1994 की घटना है पचरुखिया में डकैतों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस कर्मियों की याद में यह निर्णय लिया गया है, जो कि उनकी वीरता और बलिदान को याद करने का एक तरीका है। यह निर्णय पुलिस विभाग की एकता और साथी पुलिस कर्मियों के प्रति संवेदना को दर्शाता है। इस निर्णय की सराहना की जानी चाहिए और पुलिस कर्मियों की शहादत को याद करने के लिए यह एक श्रद्धांजलि है।
 
कुशीनगर की पुलिस क्यों नही मनाती जन्माष्टमी..?
 
30 अगस्त 1994 को जन्माष्टमी की रात की घटना हैं, बिहार बार्डर से लगे गांव पचरुखियां में डकैतों के आने की सूचना पर तत्कालीन एसपी बुद्धचंद ने पडरौना कोतवाल योगेंद्र प्रताप, तरयासुजान के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट थानेदार अनिल पांडेय व कुबेरस्थान के थानेदार राजेंद्र यादव को वहां भेजा था। रात लगभग साढ़े नौ बजे दो बार में नाव से बांसी नदी पार कर पुलिस टीम जब गांव में पहुंची तो डकैतों का सुराग नहीं मिला। इसके बाद नाव से पुलिस की एक टीम वापस आ गई। दूसरी टीम जब नाव से वापस लौट रही थी तभी बदमाशों ने पुलिस टीम पर हमला बोल दिया। बदमाशों द्वारा फेंके गए बम तथा की गई ताबड़तोड़ फायरिग में गोली लगने से दारोगा अनिल पांडेय, राजेंद्र यादव तथा सिपाही नागेंद्र पांडेय, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्ता की मौत हो गई। नाविक भुखल को भी गोली लगी थी। तब से जिले की पुलिस यह पर्व नहीं मनाती है।
 

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