आधी हाजिरी वेतन पूरा सांसदों के वेतन में इजाफा क्यों?
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देश के माननीय सांसदों के वेतन, भत्तों और पेंशन में भारी बढ़ोत्तरी की गई है एक विकासशील देश जिस पर प्रति व्यक्ति कर्ज और बेरोजगारी का बोझ लगातार बढ़ रहा है वहा माननीय अपना वेतन स्वयं बढाने के लिए बेकरार रहते है यह चिंता का विषय है। वहीं पता रहे कि अधिकांश माननीय आय का अन्य स्रोत रखते हैं बहुत कम ऐसे हैं जिनका आय का इकलौता स्रोत संसद सैलरी है। यहां यह भी गौरतलब हालांकि दूसरे देशों के मुकाबले अपने देश में जनप्रतिनिधियों की सैलरी कम है। लेकिन शर्मसार करने वाली बात यह भी है कि सांसद बहुत सीमित उपस्थिति दे रहे हैं। क्या महत्वपूर्ण चर्चाओं में भी संसद में गैर हाजिरी करने वाले माननीय पूर्ण वेतन पाने के हकदार हैं?
यहां आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने एक अप्रैल 2023 से प्रभावी संसद सदस्यों और पूर्व सदस्यों के वेतन, दैनिक भता, पेंशन और अतिरिक्त पेंशन में वृद्धि को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया है। यह परिवर्तन संसद सदस्यों के वेतीिलन्यन, भते और पेंशन अधिनियम 1954 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत किया गया है और यह आयकर अधिनियम, 1961 में उल्लिखित कोस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स पर आधारित है। यह कदम कर्नाटक सरकार द्वारा मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के वेतन में 100 प्रतिशत वृद्धि को मंजूरी देने के कुछ दिनों बाद उठाया गया है।
सरकार द्वारा जारी किए गए नोटीफिकेशन के मुताबिक संसद के सदस्यों का मासिक वेतन 1 लाख से बढ़ाकर 1 लाख 24 हजार रुपये कर दिया गया है। वहीं, दैनिक भत्ता 2000 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये कर दिया गया है, जबकि मासिक पेंशन 25000 रुपये से बढ़ाकर 31000 रुपये कर दी गई है। इसके अलावा पूर्व सदस्यों के लिए अतिरिक्त पेंशन भी 2000 रुपये से बढ़कर 2500 रुपये की गई है। अगर देखा जाए तो जनप्रतिनिधियों की सैलरी को आगे बढ़ाना और तार्किक परिणति तक ले जाना इसलिए जरूरी है कि जब भी सांसदों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी होती है या उसका प्रस्ताव आता है, उस पर आमतौर पर नाराजगी भरी प्रतिक्रियाएं होती हैं।
मीडिया में भी आलोचना के स्वर उभरते हैं। यों सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों के वेतन भत्ते एक निश्चित अंतराल पर बढ़ाए जाते हैं, उसके लिए आयोग गठित होता है, पर सांसदों की वेतन वृद्धि ही क्यों आलोचना का विषय बनती रही है। हालांकि इसके कई कारण है, जिसमें संसद चलने के दौरान सांसदों का व्यवहार प्रमुख है। दरअसल संसद के सदस्यों को मिलने वाला वेतन और सुख-सुविधाएं संसद सदस्य (वेतन, भत्ता और पेंशन) अधिनियम, 1954 के तहत दी जाती हैं।
गौर तलब है कि देश में सांसदों की सैलरी केंद्र सरकार निर्धारित करती है और उसमें बढ़ोत्तरी भी केंद्र सरकार ही करती है। ऐसे में देश के सभी सांसदों की सैलरी भी एक जैसी ही होती है, राज्यवार उसमें कोई अंतर नहीं होता है। इससे पहले 2018 में सांसदों का मूल वेतन 1 लाख रुपये महीना तय किया गया था। इसका मकसद था कि उनकी सैलरी महंगाई और जीवन यापन की बढ़ती लागत के हिसाब से हो। 2018 के बदलाव के अनुसार, सांसदों को अपने क्षेत्र में ऑफिस चलाने और लोगों से मिलने-जुलने के लिए 70 हजार रुपये का भत्ता मिलता है।
इसके अलावा, उन्हें ऑफिस के खर्च के लिए 60 हजार रुपये महीना और संसद सत्र के दौरान हर दिन 2 हजार रुपये का भत्ता मिलता है। इसके अलावा, सांसदों को हर साल फोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए भी भत्ता मिलता है। वे अपने और अपने परिवार के लिए साल में 34 फ्री डोमेस्टिक फ्लाइट में सफर कर सकते हैं। वे काम के लिए या निजी तौर पर कभी भी फर्स्ट क्लास में ट्रेन से यात्रा कर सकते हैं। सड़क से यात्रा करने पर भी उन्हें ईंधन का खर्च मिलता है। सांसदों को हर साल 50 हजार यूनिट बिजली और 4 हजार किलोलीटर पानी भी मुफ्त मिलता है। सरकार उनके रहने का भी इंतजाम करती है।
सांसदों को दिल्ली में 5 साल के लिए बिना किराए के घर मिलता है। उन्हें उनकी सीनियरिटी के हिसाब से हॉस्टल के कमरे, अपार्टमेंट या बंगले मिल सकते हैं। जो सांसद सरकारी घर नहीं लेते, उन्हें हर महीने घर का भत्ता मिलता है। देखा जाए तो देश के आजादी के बाद से समय के साथ सांसदों की वेतन और भत्तों में बढ़ोत्तरी होती रही है। 1947 को देश को आजादी मिली और वह गरीबी का समय था। देश गरीबी के साथ तमाम चुनौतियों से जूझ रहा था।
साल 1964 में सांसदों के वेतन में इजाफा तो जरूर हुआ, लेकिन ये सौ रुपये का था। तब वेतन बढ़कर 500 रुपये हो गया। 2006 में सांसदों को 16 हजार रुपये वेतन के रूप में मिलने लगे। 2009 में वेतन सबसे ज्यादा बढ़ा और ये सीधे 50 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया और इसके बाद साल 2018 में इसे बढ़ाकर एक लाख रुपये हर महीने किया गया। अब इसमें 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गई है। बहरहाल, बदली हुई परिस्थितियों में वेतन वृद्धि की जरूरत समझी जा सकती है। चूंकि सभी सेक्टर में वेतन में बढ़ोत्तरी हो रही है, तो जन प्रतिनिधियों के वेतन में भी भी बढ़ोत्तरी होनी ही चाहिए।
ऐसे में भी ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में सांसदों का बेसिक वेतन उनके भारतीय सांसदों से तीन गुना अधिक है। भारतीय सांसदों को बड़े देशों के सांसदों की तुलना में भी कम वेतन मिलता है। दुनिया भर में सांसदों और जनसंख्या के बीच का अनुपात अलग-अलग है। फ्रांस में एक सांसद करीब 70,000 लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि अमेरिका में यह संख्या 6 लाख से भी ज्यादा हो जाती है। वहीं, चीन में हर सांसद 5 लाख से कम लोगों का प्रतिनिधित्व करता है।
भारत की बात करें तो, यहां एक सांसद करीब 18 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका मतलब है कि अन्य देशों के सांसदों की तुलना में भारत में प्रत्येक सांसद के जिम्मे कहीं ज्यादा जनसंख्या है। इसलिए इस बढ़ोत्तरी का स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि एक वर्ग इसका स्वागत तो एक वर्ग विरोध भी करता है। स्वागत करने वाले वर्ग का तर्क होता है कि सांसदों को ज्यादा वेतन देने से राजनीति में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और उनकी कार्यशैली में भी सुधार होता है। साथ ही, ज्यादा वेतन मिलने से राजनीति में पढ़े-लिखे और पेशेवर लोग आने की संभावना भी बढ़ जाती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हाल ही में 2024 के आंकड़ों से पता चलता है कि चुनाव दोबारा लड़ने वाले सांसदों की औसत संपत्ति में 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो अब 21.55 करोड़ रुपये हो गई है। 18वीं लोकसभा के 543 में से 500 से अधिक सांसदों के पास कम से कम 1 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। विरोध करने वालों का तर्क है कि राजनेता कहते हैं कि वे राजनीति में सेवा के लिए आते हैं, ऐसे में उनको इतनी ज्यादा सैलरी और सुविधाओं की क्या जरूरत है।
दूसरी बात है कि सांसदों का ज्यादा समय संसद में हंगामा में वितता है। सदन देश के सामने मौजूद समस्याओं और चुनौतियों पर बहस का मंच है तथा नीतियां और कानून पारित करने की जगह है। सरकार का कोई प्रस्ताव गलत मालूम पड़े, तो उसका विरोध करना और उसकी तरफ देश का ध्यान खींचना विपक्ष का हक है। मगर जिन मसलों पर कोई टकराहट नहीं होती, कई बार तब भी सांसदों की मौजूदगी अपेक्षा से बहुत कम होती है। कई विधेयक बिना किसी चर्चा के पारित कर दिए जाते हैं। चूंकि हमारी विधायिका की साख लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रह गई है, इसलिए हैरत की बात नहीं कि सांसदों और विधायकों की वेतन वृद्धि पर आम प्रतिक्रिया अमूमन सकारात्मक नहीं होती।
इसलिए जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे संसद मे अपनी सक्रियता बढ़ाए, ताकि उनके वेतन बढ़ोत्तरी का स्वागत आम जनता करें।लेकिन साथ ही जिस तरह से संसद में सांसद लगातार हंगामा विरोध प्रदर्शन कार्यवाही मे बाधा डालते हैं तो ऐसा लगता है कि संसद के माननीय सदस्यों को आम जनता के धन का दुरुपयोग नही करना चाहिए।ये सारी सुविधाएं जनता के द्वारा किसी न किसी परोक्ष अपरोक्ष चुकाए गए टैक्स के बूते पर ही दी जा रही है क्या हमारे माननीय सांसद इन सुविधाओं को मितव्ययता के साथ इस्तेमाल करेंगे? हमारे माननीय ऐसी उपभोग संस्कृति का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं जिसमें बिजली पानी से लेकर तमाम सुविधाओं के मितव्ययता पूर्ण उपयोग की भावना निहित हो ।
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