उपचुनाव चुनाव तय करेंगे प्रदेश की भावी राजनीति
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प्रदेश में उपचुनाव की तारीख पास आते ही राजनैतिक तापमान बढ़ना शुरू हो गया है। बहुजन समाज पार्टी ने अपने सभी नौ प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। जब कि समाजवादी पार्टी ने पहले ही छै प्रत्याशी घोषित कर दिए थे। भारतीय जनता पार्टी की लिस्ट आज या कल आ सकती है। कल देर शाम प्रदेश के दोनों उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या व ब्रिजेश पाठक को आलाकमान ने दिल्ली बुलाया था। सूत्र बताते हैं कि लिस्ट फाइनल करने के लिए उनकी भी राय ली जा रही है। वहीं कल तक सपा से नाराज़ दिखाई दे रही कांग्रेस ने आज मीटिंग बुलाई है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिए एक और तीसरी सीट देने को कह दिया है। कल तक सपा कांग्रेस को केवल दो सीट ही दे रही थी। मायावती की लिस्ट पर गौर करें तो वह कहीं सपा तो कहीं भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। लेकिन ऐसा कम ही नजर आ रहा है कि बसपा को जीत मिल सके। लेकिन वह अच्छा खासा नुकसान कर सकने में सक्षम है।
बसपा ने कानपुर की सीसामऊ सीट और प्रयागराज की फूलपुर सीट से अपने प्रत्याशी बदल दिये हैं। सीसामऊ से पहले रवि गुप्ता को टिकट दिया गया था लेकिन अब उनका टिकट काटकर वीरेंद्र शुक्ला को टिकट दिया गया है जबकि फूलपुर से पहले शिवबरन पासी को टिकट दिया गया था अब उनका टिकट काट कर जितेन्द्र ठाकुर को दिया गया है। कुंदरकी से रफतउल्ला उर्फ नेता को टिकट दिया है। मंझवा से दीपू तिवारी, कटेहरी से अमित उर्फ जितेन्द्र वर्मा को टिकट दिया है। जबकि मीरापुर से शाह नजर और गाजियाबाद से पीएन गर्ग तथा करहल से अवनीश कुमार शाक्य को टिकट दिया गया है। इस तरह यदि देखा जाए तो बसपा ने दो मुस्लिम,चार सवर्ण, दो पिछड़े वर्ग को टिकट दिया है अलीगढ़ की खैर सीट पर अभी संशय बरकरार है। चार सीटों पर बसपा ने जो सवर्ण नीति चली है ये कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल पैदा करेगी। इसके अलावा जिन दो सीटों पर मुस्लिम और दो पर पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को उतारा है यहां बसपा कुछ हद तक समाजवादी पार्टी का नुक़सान कर सकती है।
लेकिन बसपा की लिस्ट देखकर यह तय है कि ये सपा से ज़्यादा भाजपा का नुक़सान करती दिखाई दे रही है। पूरा गणित तभी समझ में आ सकेगा जब भारतीय जनता पार्टी अपने उम्मीदवारों की लिस्ट घोषित कर देगी। मैनपुरी की करहल सीट वैसे तो सपा का गढ़ मानी जाती है लेकिन बसपा ने जिस तरह से शाक्य उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है वह सपा के लिए चिंता का विषय है क्योंकि यादव बाहुल्य इस सीट पर यादवों के बाद दलित और शाक्य वोटों की संख्या अधिक है। यहां अब यह देखना है कि भारतीय जनता पार्टी किस वर्ग के चेहरे को उतार रही है। इधर सपा और कांग्रेस के मनमुटाव पर भी नरमी दिखने लगी है क्योंकि कल तक सपा कांग्रेस को केवल दो सीट गाजियाबाद और खैर ही देने को तैयार थी लेकिन अब फूलपुर सीट देने के भी संकेत दे दिए हैं और आज प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बैठक बुलाई है जिसमें प्रत्याशियों के नामों का चयन किया जा सकता है। साथ ही अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में सपा कांग्रेस का गठबंधन बना रहेगा।
अब जब प्रदेश की दो प्रमुख पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा लगभग कर दी है तब सभी की निगाहें भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट पर लग गई है। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश संगठन और सभी वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श करने के उपरांत ही प्रत्याशी घोषित करना चाहती है। क्योंकि ये उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और वह चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा सीटों पर उसके प्रत्याशी जीत हासिल करें। अभी हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा था। जब 80 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी केवल 33 सीटों पर सिमट कर रह गई थी जब कि उसकी प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी उससे आगे निकल कर 37 सीटें जीतने में कामयाब हो गई। 2027 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं। और सपा ने लोकसभा चुनाव में मिली सफलता का डंका पीटना शुरू कर दिया है। राजधानी में अखिलेश यादव की फोटो के साथ जगह जगह पोस्टर लग गए हैं जिसमें लिखा है कि 2027 के महारथी अखिलेश यादव।
उत्तर प्रदेश में मुकाबला अब एनडीए और सपा कांग्रेस गठबंधन के बीच ही रह गया है। बसपा इन दोनों पार्टियों को नुकसान तो पहुंचा सकती है लेकिन सरकार बनाने की रेस से वह बिल्कुल अलग हट चुकी है। उपचुनाव उत्तर प्रदेश की आगे की दिशा तय कर सकते हैं। कि क्या मतदाताओं का मूड लोकसभा चुनाव जैसा ही है अथवा उसमें परिवर्तन हुआ है। वैसे तो चुनाव की कोई गारंटी नहीं ले सकता क्योंकि हर चुनाव अपने आप में अलग होता है। पिछले चुनावों के परिणामों से उसको तौलकर नहीं देखा जा सकता। लेकिन यह निश्चित है कि भारतीय जनता पार्टी का जो जादू उत्तर प्रदेश में चला था वह कुछ कम हुआ है। इसमें सरकार और संगठन के बीच चली आ रही कुछ लड़ाई भी आड़े आ रही है। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज भी भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री के रूप में अभी भी पहली पसंद हैं। क्यों कि उनका हिंदुत्ववादी चेहरा लोगों को पसंद आ रहा है। जिससे आरएसएस भी इन्कार नहीं कर सकता।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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