पूजनीय है कलियुग में केवल कालाधन
भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में जहाँ भारतीय रहते हैं वहां 31 अक्टूबर और 1 नबंवर को धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा की जाएगी। लक्ष्मी पूजन की परम्परा कितनी पुरानी है ये हम नहीं जानते ,लेकिन हमें पता है कि कलियुग में केवल और केवल ' कालाधन ' ही सबसे ज्यादा संग्रहणीय और पूजनीय है। आम हिंदुस्तानी बचपन से जिन धनों को जानता आया है उनमने ' कालाधन ' 500 सौ साल पहले तो नहीं था किन्तु आज सर्वत्र कालाधन ही व्याप्त है।
हम सनातनी पांच हजार साल पहले की बातों को मानते हों या न मानते हों लेकिन कम से कम मुग़लकाल में जन्में गोस्वामी तुलसीदास जी की बातों को जरूर मानते है। पंडित जी रामचरित मानस लिखकर अमर हो गए। उन्हें अमर होने के लिए न सत्ता की जरूरत पड़ी और न काले धन की ,लेकिन वे सबसे जयादा धनिक व्यक्ति थे, क्योंकि उनके पास उस समय जो सबसे कीमती धन माना जाता था वो धन था। मुग़लकाल में सबसे कीमती धन संतोष धन था। इसकी कीमत अब घटते-घटते डालर के मुकाबले भारतीय रूपये जैसी हो गयी है।
गोसामी तुलसीदास जी धन के बारे में शायद आम आदमी से ज्यादा जानते थे ,इसीलिए उन्होंने एक दोहे में उस समय के सभी धनों के बारे में लिख दिया था। उन्होंने लिखा था - गोधन गजधन बाजिधन, और रतनधन खान। जब आवत संतोष धन, सब धन धूरि समान॥ मुग़लकाल में गौधन आम आदमी के पास था ,लेकिन गजधन [हाथियों की फ़ौज] बाजधन [अश्वरोहणी सेना ] और खदानों से निकलने वाले रतनधन पर शासकों का कब्जा था ,ऐसे में गरीब आदमी के हिस्से में केवल संतोष धन आता था ,मन के लिए गोस्वामी बाबा ने इसे ही सबसे मूलयवान बताकर बाकी के धन को धूल के समान बता दिया था।
बहुसंख्यक जनता ने इसी को ब्रम्हवाक्य मान लिया और संतोष धन की खोज में लग गयी। संतोष का धन अभावों के गर्भ से उपजता है। तब भी और आज भी हमारे अपने शासन में। आज भी कमोवेश हालात बदले नहीं हैं। मुग़ल काल जैसे ही हैं ,क्योंकि गौधन या तो सरकारी गौशालाओं में है या फिर पंतजलि के अदृश्य संस्थान में। गजधन या तो वन विभाग के पास है या फिर बाबाओं के पास। बाजधन भी अब केवल सेना और अर्धसैन्य बलों के पास है।
रतनधन पर तो सरे आम सरकार का या खनन माफिया का कब्जा है। ऐसे में पांच सौ साल पहले भी जनता को संतोष के धन पर गुजर-बसर करना पड़ती थी और आज भी करना पड़ रही है। हम और हमारा समाज सदियों से देवी लक्ष्मी की पूजा करता आरहा है लेकिन वे कभी भी किसी झुग्गी वाले पर प्रसन्न नहीं हुई। उन्हें महल,अट्टालिकाएं ही भाते है। वहां चमक -दमक बेपनाह कहिये या बेशुमार होती है। अब तो जनता से ज्यादा डबल इंजिन की सरकारों में दीपावली पर लक्ष्मी जी को खुश करने की प्रतिस्पर्द्धा चल रही है। सरकारें सरजू का तट हो या क्षिप्रा का वहां असंख्य दीपक जलाकर नए-नए कीर्तिमान बनाने में जुटीं हैं।
जनता के हिस्से में ले-देकर मिटटी के दीपक और चीनी विद्युत प्रकाश बिखेरने वाली झालरें रह गयीं है। मिटटी के दीपकों में भरने के लिए किसी भी प्रकार का तेल खरीदना अब आसमान के तारे तोड़ने जैसा है ,किन्तु धर्मभीरु जनता ये कोशिश लगातार करती है ,ये सोचकर कि शायद किसी दिन लक्ष्मी जी प्रसन्न हो जाएँ और उनकी स्थायी सहायक बन जाएँ। तुलसीदास जी के समय में कालाधन शायद जन्मा नहीं होगा,अन्यथा वे अपने दोहे में काले धन का जिक्र जरूर करते।
मुझे लगता है कि काला धन देश में आजादी के बाद जन्मा है। यानी ये शुद्ध भारतीय धन है। काला धन काला क्यों है ,ये उसी तरह का यक्ष प्रश्न है जैसा योगेश्वर कृष्ण ने अपने बालयकाल में अपनी माँ जसोदा से किया था -'राधा क्यों गोरी ,मै क्यों काला जैसा। काळा धन को काळा अंग्रेज 'ब्लैक मनी ' कहलाता है। काला धन वह भी है जिस पर कर नहीं दिया गया हो। भारतीयों द्वारा विदेशी बैंको में चोरी से जमा किया गया धन का निश्चित ज्ञान तो नहीं है किन्तु श्री आर वैद्यनाथन ने अनुमान लगाया है कि इसकी मात्रा लगभग 7,280,000 करोड रूपये हैं। लेकिन मुझे ये आंकड़ा भी संदिग्ध लगता है।
विश्वषज्ञ बताते हैं कि कालाधन केवल काळा कारनामों से,काळा धंधों से केवल और केवल काळा दिल के लोग कमाते हैं और इसके ऊपर दुनिया की कोई सरकार करारोपण नहीं करती। सरकारों को आशंका रहती है कि कहीं कालाधन से लिया गया कर पूरी अर्थव्यवस्था के साथ हमारे पूजनीय नेताओं का चेहरा ही काला न कर दे ! आपको याद होगा कि तीसरी मर्तबा देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी ने 2014 में विदेशों से भारतियों का जमा कालाधन वापस लाने की गारंटी दी thi ,लेकिन वे भी कामयाब नहीं हुए। हो भी नहीं सकते थे क्योंकि कालाधन आखीर कालाधन है।
आपको शायद पता न हो लेकिन मै आपको बता दूँ कि कालाधन कभी देश की बैंकों ,तिजोरियों में रहना पसंद नहीं करता। कालाधन को दुनिया में स्विट्जरलैंड से बेहतर और कोई दूसरा देश नहीं लगत। ये देश कालेधन के लिए ठंडा-ठंडा,कूल-कूल रहता है।मेरे यहां जो अखबार आता है उसका नाम हिंदुस्तान है। चूंकि मै हिन्दुस्तानी हूँ इसलिए हिंदुस्तान पढ़ना पसंद करता हूँ। इसी अखबार में छपी एक रपट के मुताबिक़ 70 देशों से कालेधन का सुराग मिला. ख़बर के मुताबिक आयकर विभाग को विदेशी लेन-देन से जुड़ी 30 हज़ार से ज़्यादा जानकारियां मिली हैं, जिसमें कई संदिग्ध बताई जा रही हैं. हालांकि विभाग यह भी मान कर चल रहा है कि सभी 30 हज़ार लेन-देन कालेधन की श्रेणी में नहीं होंगे। संदिग्ध लेन-देन को लेकर आयकर विभाग ने इनमें से क़रीब 400 लोगों को नोटिस भी भेजा है।
मेरी आधी-अधूरी जनकारी के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में भारत ने 80 से अधिक देशों के साथ वित्तीय लेन-देन की जानकारी साझा करने के अनुबंध किए थे। स्विट्जरलैंड के साथ दिसंबर 2017 में यह करार हुआ था और उनसे जनवरी 2019 से जानकारी मिलना शुरू होने की उम्मीद थी लेकिन अब तक कोई जानकारी हमारे पास नहीं है। मेरा आपने पाठकों से विनम्र अनुरोध हैकि वो अब कालाधन वापस लाने के लिए सरकार पर जोर न डाले । आखिर सरकार क्या-क्या करे ? 85 करोड़ की भूखी-नंगी आबादी के लिए दो जून भोजन की व्यवस्था करे या कालाधन वापस लाती फिरती रहे।
अपनी पूरी जिदंगी में मुझे तो इस कलियुगी कालेधन के दर्शन नहीं हुए। मेरे पास तो जो धन आया वो खून-पसीने और ' नेमनूक ' का धन आय। इस धन से मैं ज्यादा से ज्यादा कुछ सोना-चंडी क्रय कर सका । हीरा मैंने आजतक खरीदा ही नहीं। खरीदने की ताकत ही सरकार ने पैदा नहीं की। मेरे बच्चे जो अमेरिका में हैं और डालर कमाते हैं ,उन्होंने कोई हीरा खरीदा हो तो मुझे पता नहीं। मै तो गोस्वामी तुलसीदास के झांसे में आकर ' संतोष धन ' ही कमाने में लगा रहा।
आम भारतीय संतोष धन के अलावा कोई दूसरा धन कमा भी नहीं सकता। इसलिए दीपावली पर इसी संतोषध्नन को पूजिये। कालेधन के बारे में जब सरकार कुछ नहीं सोच पायी तो आप भी कुछ मत सोचिये। भगवान से प्राथना करता हूँ कि आपकी दीपावली भी संतोषधन के साथ सुखद है। बहुत-बहुत शुभकामनयें और बधाई। मई तो लक्ष्मी जी को मौसी की तरह पूजता हूँ। मेरी आराध्य तो सरस्वती हैं। वैसे मै धरतीपुत्र हूँ।
राकेश अचल
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