भदोही मे 128वीं जयंती पर याद किये गये नेताजी सुभाष चंद्र बोस
पराक्रम दिवस के रूप मे मनाई गई नेताजी की जयंती
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भदोही। गोपीगंज के स्थित भारत भारती इंटर मीडिएट कॉलेज मे वृहस्पतिवार को नेताजी सुभाष चंद्र के 128वीं जयंती पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जहां कॉलेज के अध्यापकों ने नेताजी के व्यक्तित्व और कृतित्व बारे मे विस्तार से चर्चा की। नेताजी के जन्म जयंती पर पराक्रम दिवस के रूप मे मनाया गया। कार्यक्रम मे सभी लोगों ने नेताजी के चित्र पर पुष्प अर्पित किया और उनके कार्यों के बारे मे चर्चा की।
संगोष्ठी में अध्यापक संतोष कुमार तिवारी ने नेताजी के जीवनी के बारे मे बच्चों को बताया।
कहा कि ब्रिटिश शासन से देश की आजादी की लड़ाई के दौरान नेताजी के दिए नारों ने देशभक्ति की अलख जगा दी थी- तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जय हिन्द, दिल्ली चलो। इसमें से तो 'जय हिंद' का नारा राष्ट्रीय नारा बन गया।अध्यापक संतोष कुमार तिवारी ने बताया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 में ओडिशा के कटक में एक बंगाली परिवार में हुआ था इनकी मां का नाम प्रभावती और पिता का जानकीनाथ था। सुभाष चंद्र बोस 14 भाई बहन थे।
जिसमें से ये 9वें नंबर पर थे। सुभाष चंद्र बोस ने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा भी पास की थी जिसमें उन्हें चौथा रैंक प्राप्त हुआ था, लेकिन उन्होंने अंग्रेजों से मुल्क की आजादी के लिए इस पद की बलि चढ़ा दी। कहा कि सुभाषचंद्र बोस ने साल 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी कर ली। इससे उन्हें एक बेटी हुई, जो वर्तमान में अनीता जर्मनी में अपने परिवार के साथ रहती हैं। देश की आजादी के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 1943 में सिंगापुर में आजाद हिंद फौज सरकार की स्थापना की।
जिसे कई देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी जिसमें जर्मनी, जापान और फिलीपींस भी शामिल थे। यही नहीं सुभाषचंद्र बोस ने 'आजाद हिंद फौज' नाम से रेडियो स्टेशन भी शुरू किया था और नेताजी ने पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व भी किया था। सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 1944 में म्यांमार पहुंचे थे, यहीं पर उन्होंने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा लगाया था।
अध्यापक संतोष कुमार तिवारी ने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सुभाष चंद्र बोस ने सोवियत संघ, नाजी जर्मनी, जापान जैसे देशों से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सहयोग मांगा था। जिसके बाद से सभी राजनीतिक दलों ने उनपर फांसीवादी ताकतों के साथ नजदीकी रिश्ते होने का आरोप लगाया। और 18 अगस्त 1945 को ताइपई में हुए एक विमान दुर्घटना के बाद नेताजी लापता हो गए।
इसके लिए 3 जांच आयोग बैठाए गए जिसमें से दो ने दुर्घटना के दौरान मृत्यु का दावा किया था जबकि तीसरी कमेटी का दावा था कि घटना के बाद सुभाष चंद्र बोस जिंदा थे हालांकि इसको लेकर सुभाष चंद्र बोस के परिवार में भी मतभेद हो गया। इतना कुछ देश के लिए करने के बावजूद भी पूर्व की सरकारों ने कोई खास सम्मान नही दिया लेकिन 2016 में मोदी सरकार में सुभाष चंद्र बोस से जुड़े 100 गोपनीय दस्तावेज को सार्वजनिक कर दिया गया। जिसका डिजिटल संस्करण राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद है और 2021 में सुभाष चंद्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी।
जिसके क्रम मे इस वर्ष भी पराक्रम दिवस के रूप मनाया गया। देश के युवाओं को नेताजी सुभाष चंद बोस की जीवनी से सीख लेने की जरूरत है। इस दौरान सभी अध्यापकों ने भी अपने अपने विचार किये। इस मौके पर माता प्रसाद चौबे, वीके सिंह, सलाउद्दीन, शेखर, राम सजीवन, जीतेन्द्र, विवेक, रिंकू, विशाल समेत सभी अध्यापक और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
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