भारत में हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों का खंडित होना कब रूकेगा?
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भारत को संवैधानिक दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का दर्जा प्राप्त है। स्पष्ट है कि सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है अथार्त अपने धर्म के अनुसार जीवन जीने, पूजा-अर्चना करने की स्वतंत्रता है। वास्तव में यह एक सांस्कृतिक भावना है जहाँ हर धर्म, संप्रदाय और विचारधारा को उचित सम्मान मिलता है। यहाँ राम, रहीम, ईसा, बुद्ध और नानक सभी पूजे जाते हैं। यही विविधता भारत को विशिष्ट बनाती है। धर्मनिरपेक्षता केवल एक संवैधानिक शब्द नहीं, बल्कि भारतीय समाज की आत्मा है,जो लोकतंत्र को मजबूत करती है, सभी को साथ लेकर समरस, शांतिपूर्ण, आत्मनिर्भर तथा प्रगतिशील भारत के निमार्ण के लिए सहयोग करने का संदेश देती है।
किन्तु इसका मतलब यह कदापि नहीं कि कोई भी व्यक्ति या समूह अपने धर्म के नाम पर देश के कानून का उल्लघंन कर सकता है, दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है, हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे सकता है, दूसरे धर्म का मजाक उड़ा सकता है एवं अपमान कर सकता हैं, धार्मिक स्थलों को नुक्सान पहुंचा सकता है, किसी का जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन करा सकता है आदि। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि स्वतंत्रता के कई दशक गुजरने के बाबजूद भी धर्मनिरपेक्षता की मूल अवधारणा को कई बार चुनौती मिलती दिखाई देती है, धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता कमजोर होती नजर आती है।
कई बार विविध कारणों से धार्मिक भावनाओं को भड़का कर कुछ असामाजिक तत्व और देश में अमन, शांति, सौहार्द, सद्भावना, भाईचारे के माहौल से प्यार न करने वाले लोगों द्वारा समाज में तनाव और भेदभाव की स्थिति उत्पन्न की जाती रही है, सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुँचाया गया है।उदाहरण के लिए हैदराबाद, तेलंगाना (अक्टूबर 2024) के सिकंदराबाद के मुथ्यालम्मा मंदिर में देवी की मूर्ति को खंडित किया गया,शमशाबाद, तेलंगाना (नवंबर 2024) में हनुमान मंदिर में नवग्रह मूर्तियों को तोड़ा गया।
अप्रैल 2025 में, उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के कटोरा गांव में स्थित राधा-कृष्ण मंदिर में मूर्तियों के खंडित होने की घटना सामने आई है। क्या इन घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना मात्र उपाय है? इतिहास में विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लूट और आंतक के उद्देश्य, विशिष्ट धर्म के प्रचार प्रसार के लिए ऐसा करना समझ में आता है किन्तु आज के स्वतंत्र धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में ऐसी घटनाओं के लिए कोई स्थान कैसे हो सकता है?
क्या यह धार्मिक कट्टरपंथियों की गलत सोच का परिणाम है?या फिर ऐसा करने वाले व्यक्ति के मानसिक दिवालियापन का नतीजा है?या फिर विदिशी ताकतों द्वारा देश के सौहार्द को समाप्त करने की सोची समझी रणनीति का नतीजा है?या फिर धर्म विशेष के लोगों द्वारा क्षेत्र विशेष में डरा धमकाकर अपने प्रभाव को बढ़ाने का एक हथकंडा है?या फिर देश की गंगा-यमुना तहजीब को नुक्सान पहुंचाने की कोशिश है?या फिर विविध धर्मों के अनुयायियों को आपस में लड़ाकर देश को आगे बढ़ने से रोकने की साज़िश है?
कारण कुछ भी हो देश की प्रगति के लिए, सामाजिक सौहार्द के लिए इस तरह के कृत्यों को कभी भी अच्छा नहीं कहा जा सकता।केवल कानून या प्रशासन से इन समस्याओं का स्थाई समाधान नहीं निकल सकता जब तक समाज स्वयं जागरूक, जिम्मेदार, संवेदनशील होकर सभी धर्मों और उनके धर्म स्थलों को आदर और सम्मान देना नहीं सीखता है।
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