शोधकर्ताओं ने खोजा बायोएथेनॉल बनाने में उपयोगी एंजाइम

स्वतंत्र प्रभात
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (इंडिया साइंस वायर): भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने रुमिनोकोकस फ्लेवफैसियंस नामक बैक्टीरिया से एक विशिष्ट बैक्टीरियल एंडोग्लुकेनेस एंजाइम का पता लगाया है, जो लकड़ी-जन्य बायोमास को तोड़कर बायोएथेनॉल में रूपांतरित कर सकता है।
शोधकर्ताओं ने RfGH5_4 नामक एंजाइम के प्रभाव का अध्ययन किया गया है, जो वुडी जैव-उत्पाद को साधारण शर्करा में तोड़ सकता है, जिसको बायोएथेनॉल उत्पादन के लिए किण्वित किया जा सकता है। बायोएथेनॉल एक भरोसेमंद अक्षय ईंधन है, जो पेट्रोलियम आधारित ईंधन प्रणालियों की जगह ले सकता है। औषधि में भी इस एंजाइम के विस्तारित अनुप्रयोग हो सकते हैं।
ईंधन के रूप में बायोएथेनॉल के औद्योगिक उत्पादन के लिएपौधों से प्राप्त लिग्नोसेल्युलोज को जैविक उत्प्रेरक (एंजाइम), जिसे सेल्यूलेस कहा जाता है, का उपयोग करके विखंडित किया जाता है, और फिर किण्वित किया जाता है। इसी प्रकार का एक एंजाइम एंडोग्लुकेनेस भी है। लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास को बायोएथेनॉल में बदलने की अड़चन इन एंजाइमों की खराब दक्षता है। लेकिन, लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास में सेल्युलोस के साथ-साथ हेमिकेलुलोस होता है, जिसे अधिकांश एंडोग्लुकेनेस द्वारा तोड़ा नहीं जा सकता।
शोधकर्ताओं ने बायोएथेनॉल में रूपांतरण के लिए लिग्नोसेल्यूलोसिक और हेमिकेलुलोसिक बायोमास को तोड़ने में RfGH5_4 नामक एंडोग्लुकेनेस की प्रभावकारिता दिखाई है। इस एंजाइम को रुमिनोकोकस फ्लेवफैसियंस नामक बैक्टीरिया से प्राप्त किया गया है। गाय और जुगाली करने वाले अन्य पशुओं की आँतों में पाये जाने वाले रुमिनोकोकस फ्लेवफैसियंस को सेल्यूलोसिक दबाव का सामना करने के लिए जाना जाता है।
सेल्यूलस एंजाइमRfGH5_4 को एनकोड करने वाले विशेष जीन को रुमिनोकोकस फ्लेवफैसियंस से प्राप्त किया गया है। इस प्रकार शोधकर्ताओं ने RfGH5_4 की कुशल मशीनरी को सेल्यूलोस और सेल्यूलोसिक संरचनाओं को सरल शर्करा में तोड़ने के लिए विकसित किया है। उनका कहना है कि बैक्टीरिया में कम से कम 14 अलग-अलग मल्टीमॉड्यूलर एंजाइम होते हैं, जो सेल्युलोस को तोड़ सकते हैं, जिनमें से एक RfGH5_4 है।
आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर अरुण गोयल के नेतृत्व में यह अध्ययन उनके शोधार्थी परमेश्वर विट्ठल गावंडे द्वारा यूनिवर्सिटी ऑफ लिस्बन, पुर्तगाल के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किया गया है। यह अध्ययन शोध पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्समें प्रकाशित किया गया है।
प्रोफेसर अरुण गोयल बताते हैं कि "हमने एंडोग्लुकेनेस, RfGH5_4 की विशेषताओं का पता लगाने का प्रयास किया है। हमें पता चला है कि यह हाइड्रोलाइज्ड कार्बोक्सिमिथाइल सेलुलोज के साथ-साथ अधिक उत्प्रेरक दक्षता के साथ सामान्य रूप से अव्यवस्थित सेल्यूलोज है। एंजाइम को कृषि अवशेषों जैसे - कपास के डंठल, ज्वार के डंठल, गन्ने की खोई आदि से निकले लिग्नोसेल्यूलोसिकसबस्ट्रेट्स पर प्रभावी पाया गया है। हेमीसेल्यूलोसिक सबस्ट्रेट्स के साथ-साथ β-ग्लुकन, लिचेनन, जाइलोग्लुकन, कोनजैक ग्लूकोमैनन, ज़ाइलान और कैरब गैलेक्टोमैनन पर भी इसके बेहतर नतीजे देखे गए हैं।”
प्रोफेसर अरुण गोयल ने बताया कि “कृषि अपशिष्ट बायोमास आमतौर परयूँ हीं नष्ट हो जाते हैं, या फिर जला दिए जाते हैं। इससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न पर्यावरणीय खतरे पैदा होते हैं। RfGH5_4 द्वारा ऐसे अपशिष्टों का विखंडन खाद्य चिकित्सा में भी हो सकता है।” आगे वह कहते हैं कि यह अध्ययन संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को संबोधित करने में भी उपयोगी हो सकता है।
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
About The Author
Related Posts
Post Comment
आपका शहर
.jpg)
अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel

खबरें
शिक्षा

Comment List