स्लाटर हाउस व टेनरियों की मनमानी जनजीवन पर भारी
जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते हवा पानी हो रहा दूषित

मानकों को ताक पर रखकर की जा रही धांधली
मो.अरमान विशेष संवाददाता
उन्नाव। जनपद में संचालित स्लाटर हाउसों व टेनरियों में की मनमानी से लोगों के जीवन पर जो असर पड़ रहा है शायद जिम्मेदार उससे अनजान नही है। लेकिन बड़ी कंपनियों की बड़ी व्यवस्था, मोटी मलाई अच्छी मिठाई के चलते अथवा कुछ अन्य कारणों से जिम्मेदार इनपर कार्यवाही से कोसों दूर हैं। नदी और भूगर्भ के पानी में जहर घोलती ये इकाइयां जिनसे क्षेत्रीय जनमानमस ही परेशान नहीं हैं बल्कि, जनप्रतिनिधि भी इनसे त्रस्त हैं।
आमजन अपनी पीड़ा विभागीय अफसरों समेत डीएम व सिटी मजिस्ट्रेट आदि से कई बार बताकर लिखित व मौखिक शिकायत कर चुके हैं। आए दिन समाचार पत्रों में भी इनके द्वारा हवा पानी को दूषित करने के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं लेकिन सेटिंग गेटिंग के खेल के आगे सारी शिकायतें तुच्छ साबित होती है और कोई सुनवाई नहीं होती।
यदि बात की जाए जनप्रतिनिधियों की तो वे भी जिले की इस गंभीर समस्या को विभागीय सचिव, शासन, सीएम के सामने रखने के साथ ही सदन तक में उठा चुके हैं। इसके बाद मामले की जांच के निर्देश भी हुए लेकिन, इन बड़े उद्यमियों और उनकी पहुंच के सामने विभागीय अफसर भी नतमस्तक हो जाते हैं। मिलीभगत होने से जिम्मेदार अधिकारी जांच का कोरम पूरा कर देते हैं और फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल देते हैं।
आपको बता दें कि जनपद में सात स्लाटर हाउस संचालित हैं। इनमें सभी मानकों को ताक पर रख धज्जियां उड़ाते हुए दिनरात जमकर धांधली की जा रही है। इस धांधली की शिकायतें आमजन तो स्थानीय अफसरों से अक्सर करते रहते हैं। इस पर प्रशासन, पुलिस व प्रदूषण बोर्ड के अफसर कार्रवाई का कोरम पूरा कर देते हैं और वहां पर हो रहा मानक विहीन काम और तेज हो जाता है।
हद तो तब हो गई जब करीब दो वर्ष से लगातार इस जन समस्या को लेकर सत्ता पक्ष से विधान परिषद सदस्य रामचंद्र प्रधान की लाख शिकायत के बाद भी कहीं नहीं सुनी जा रही है। उनके अनुसार, दो साल पहले उन्होंने प्रमुख सचिव पर्यावरण को पत्र भेजकर इसकी शिकायत की थी।
सचिव के यहां से इसका जवाब मांगने पर विभागीय अफसरों ने स्लाटर हाउस संचालकों से मिलीभगत के चलते खानापूर्ति कर मामला ठंडे बस्ते में डालकर धांधली शुरू कर दी। एमएलसी ने पत्र में बताया था कि जिले के स्लाटर हाउस प्रदूषण मानकों को दरकिनार कर काम कर रहे हैं। जिसमें क्षमता से अधिक मवेशियों का वध किया जा रहा है।
500 की परमीशन पर वहां हजारों मवेशी काटे जाते हैं। साथ ही वहां पर गर्भवती, बीमार व अवयस्क पशु भी काटे जाते हैं। जानकारों के अनुसार पशु चिकित्साधिकारियों की मिलीभगत के चलते होता है। मवेशियों को काटने के दौरान निकलने वाले रक्त को खुले नालों में बहाने के साथ इसे रिबोर के जरिये भूगर्भ में डाला जा रहा है। जो चिंताजनक है।
वहीं टेनरियों से निकलने वाले प्रदूषित व केमिकलयुक्त पानी को नालों के जरिये सीधे लोन नदी में बहाया जा रहा है जिससे कभी जिले की जीवन दायिनी रही लोन नदी बेहद प्रदूषित हो गई है। अब केवल नाम की ही नदी रह गई है इसमें नदी नदी और पानी जैसा कुछ भी नही रहा। हजारों बीघे किसानों की भूमि की सिंचाई करने वाली लोन नदी का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया इन इकाइयों ने और जिम्मेदार ध्रत राष्ट्र बने बैठे रहे और आज भी बैठे हैं। इससे लोन के किनारे बसे गावों के खेत तक बंजर हो रहे हैं और वहां के बाशिंदे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
एमएलसी की शिकायतत के बाद प्रमुख सचिव पर्यावरण द्वारा जिले के प्रशासनिक, पुलिस व प्रदूषण बोर्ड के अफसरों से जवाब-तलब किया गया था। इसके बाद प्रशासन की ओर से स्लाटर हाउसों में औचक निरीक्षण कर खानापूर्ति की गई और मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
सदन में भी आवाज बुलंद कर उठाएंगे आवाज-एमएलसी
एमएलसी रामचंद्र प्रधान ने बताया कि हमने इसकी शिकायत कई बार की। लेकिन, नतीजा शून्य रहा। उन्नाव में स्लाटर हादसों व टेनरियों में हो रही धांधली के चलते वहां की पर्यावरणीय स्थिति बेहद खराब होती जा रही है।
मुख्यमंत्री से की थी नालों की ऊंचाई बढ़ाने की मांग – एमएलसी
एमएलसी ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर औद्योगिक क्षेत्र से निकले नालों की ऊंचाई बढ़ाने की मांग की थी। जिससे किसानों के खेतों में दूषित जल न जा सके और उनकी फसलें नष्ट न हों।
क्या बोले जिम्मेदार…
उप्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय के एई ओम प्रकाश ने बताया कि इसकी रिपोर्ट जिला कृषि विभाग, जल निगम व मुख्य पशु चिकित्साधिकारी से मांगी गई थी। रिपोर्ट मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
विभागीय आंकड़ों के अनुसार स्लाटर हाउस में मवेशियों की स्लाटरिंग की परमीशन
स्लाटर हाउस---------------स्लाटरिंग की क्षमता
स्टैंडर्ड फ्रोजेन फूड्स---------------500
रुस्तम फूड्स---------------------800
ए. ओ. वी. एक्सपोर्ट-------------------750
इंडाग्रो फूड्स--------------------1500
एग्रीकाम फूड्स-------------------500
मास एग्रो फूड्स-------------------300
अलसुपर फ्रोजेन फूड्स-------------150
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